कविता
साधना
/ by बीनू भटनागर
आज मेरी साधना के फूल धरती पर खिले हैं। ये न मुरझायें कभी ये न कुम्हलायें कभी, इनके साथ, मेरे सभी सपने जुड़े हैं। मोती जो बिखरे हुए हैं, इनसे मै माला बनाऊँ, उलझे शब्दों से, एक कविता बनाऊँ, कल्पना से मै मन बहलाऊँ। पर मन बहलता ही नहीं है, कोई ख़ालीपन है अभी, इस […]
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