आर्थिकी लेख अब गरीबी नहीं, अमीरी समस्या है December 4, 2019 / December 4, 2019 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ः ललित गर्ग:-देश की प्रति व्यक्ति आय मार्च 2019 को समाप्त वित्त वर्ष में 10 प्रतिशत बढ़कर 10,534 रुपये महीना पहुंच जाने का अनुमान है। इससे पहले वित्त वर्ष 2017-18 में मासिक प्रति व्यक्ति आय 9,580 रुपये थी। प्रति व्यक्ति औसत आय का बढ़ना देश की समृद्धि का स्वाभाविक संकेत है। आम आदमी की औसत […] Read more » difference increasing between poverty snd rich poverty अमीर और ज्यादा अमीर गरीब और ज्यादा गरीब गरीबी प्रति व्यक्ति औसत आय
आर्थिकी 60 साल की संसद, सड़ता अनाज और भूखे लोग May 15, 2012 / May 15, 2012 by हिमकर श्याम | 3 Comments on 60 साल की संसद, सड़ता अनाज और भूखे लोग हिमकर श्याम भारतीय संसद 60 साल की हो गयी है। हमारे पास गर्व करने के लिए बहुत कुछ है तो भविष्य को लेकर चिंताएं भी कम नहीं है। परिस्थितियां विकट हैं, और संकटमय हैं। राजनीतिक व्यवस्था चरमरायी हुई दिखाई देती है। पिछले दशकों में इस व्यवस्था में जो भयावह विसंगति पैदा हुई है उसने देश […] Read more » 60 साल की संसद poverty भूखे लोग सड़ता अनाज
समाज गरीबी व भुखमरी के बीच विकास की एक्सप्रेस रेल April 11, 2012 / July 22, 2012 by अखिलेश आर्येन्दु | Leave a Comment अखिलेश आर्येन्दु संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भारत में बढ़ती भुखमरी और गरीबी की पुष्टिकर केंद्र सरकार के उस दावे की पोल खोल दी है जिसमें विकास की रफ्तार बढ़ने की बात कही गर्इ है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की रपट से केंद्र सरकार के दावे खोखले साबित होते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि केंद्र सरकार […] Read more » poverty starvation गरीबी भुखमरी
आर्थिकी गरीबी की नई परिभाषा April 1, 2012 / April 1, 2012 by रवि शंकर (CEFS) | Leave a Comment रवि शंकर केन्द्र सरकार ने गरीबी की नई परिभाषा फिर तय की है। योजना आयोग की मानें तो देश की शहरी इलाको में प्रतिदिन 28 रुपये 65 पैसे व ग्रामीण इलाकों में रोज 22 रुपये 42 पैसे खर्च करने वाले व्यक्ति को गरीब नहीं कहा जा सकता। अत्याधिक महंगाई और खाद् पदार्थो की बढ़ती कीमतों […] Read more » poverty Poverty Line गरीबी
समाज जो उलझ कर रह गयी है आंकड़ों के जाल में March 23, 2012 / March 23, 2012 by हिमकर श्याम | Leave a Comment हिमकर श्याम गरीबी फिर सुर्ख़ियों में है। हाल के दिनों यह बार-बार सुर्खियों में आयी है। गरीबी इतनी बार सुर्खियों में पहले कभी नहीं रही। हर बार सुर्खियों का वजह बना योजना आयोग। इस बार भी बहस योजना आयोग के नये मापदंड को लेकर है। इन आंकड़ों में गरीबों की संख्या में गिरावट दर्शायी गयी […] Read more » poverty गरीबी
लेख समाज गरीबी का आधुनिकीकरण February 14, 2012 / February 14, 2012 by गंगानन्द झा | Leave a Comment ऐसा बताया जाता रहा है कि बढ़ते हुए परिवर्द्धन के साथ-साथ अभाव की स्थिति में कमी आती जाएगी तथा अन्त में विश्व के हर कोने से गरीबी समाप्त हो जाएगी। परिवर्द्धन (Development) और गरीबी के बीच विलोमानुपाती सम्बन्ध समझा जाता रहा है। पर यह परी-कथा ही निकली। अमीर और गरीब के बीच के फर्क के […] Read more » modernisation of poverty poverty आधुनिकीकरण गरीबी गरीबी का आधुनिकीकरण
राजनीति गरीब को सपना भी नसीब नहीं January 31, 2012 / January 31, 2012 by अब्दुल रशीद | 1 Comment on गरीब को सपना भी नसीब नहीं अब्दुल रशीद सपने देखना अच्छी बात है लेकिन सपनों के लिए गहरी नींद चाहिये। नींद तब आती है जब पेट भरा हो खाली पेट किसी को नींद नहीं आती। गरीबी से बड़ी न तो कोई गाली है,भूख से बड़ी न तो कोई लाचारी है और भ्रष्टाचार से बड़ी न तो कोई बेमारी है। दुर्भाग्यवश यह […] Read more » no dreams for downtrodden poverty गरीब को सपना भी नसीब नहीं
विविधा गरीबी और मजाक October 11, 2011 / December 5, 2011 by राजीव गुप्ता | 1 Comment on गरीबी और मजाक राजीव गुप्ता आज़ादी के इतने वर्षो बाद भी गरीबी और मजाक एक दूसरे का पर्याय बने हुए है अगर ऐसा मान लिया जाय तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी ! कम से कम वर्तमान सरकार के रूख से तो ऐसे ही लगता है ! पहले गलती करना फिर तथ्यों के साथ खिलवाड़ कर तथा उसे तोड़-मरोड़ […] Read more » poverty गरीबी
लेख गरीबी के बदलते पैमाने और मायने October 6, 2011 / December 5, 2011 by राजेश कश्यप | Leave a Comment राजेश कश्यप गत दिनों सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई अपनी एक रिपोर्ट में योजना आयोग ने कहा कि शहर में 32 रूपये और गाँव में 26 रूपये प्रतिदिन खर्च करने वाला व्यक्ति गरीबी रेखा (बीपीएल) की परिधि में नहीं आता है। कमाल की बात तो यह रही कि देश की शीर्ष अदालत में दाखिल […] Read more » poverty गरीबी गरीबी के बदलते पैमाने और मायने
व्यंग्य गरीबी के झटके September 30, 2011 / December 6, 2011 by राजकुमार साहू | 1 Comment on गरीबी के झटके राजकुमार साहू देखिए, गरीबों को गरीबी के झटके सहने की आदत होती है या कहें कि वे गरीबी को अपने जीवन में अपना लेते हैं। पेट नहीं भरा, तब भी अपने मन को मारकर नींद ले लेते हैं। गरीबों को ‘एसी की भी जरूरत नहीं होती, उसे पैर फैलाने के लिए कुछ फीट जमीन मिल […] Read more » poverty गरीबी के झटके
आलोचना सरकार गरीबी नहीं गरीबों को हटाना चाहती है! September 28, 2011 / December 6, 2011 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment इक़बाल हिंदुस्तानी पूंजीवादी नीतियों पर चलकर तो यही होना स्वाभाविक है! अगर कोई आदमी बीमार हो और उसे यही पता नहीं लगे कि उसको क्या रोग है तो वह अपना इलाज कैसे करा सकता है? ऐसा ही आलम हमारी सरकार का है। वह आज तक यही तय नहीं कर पा रही है कि गरीब किसे […] Read more » poverty गरीबी गरीबों
विविधा आंकड़ों में उलझी गरीबों की जिंदगी September 25, 2011 / December 6, 2011 by हिमकर श्याम | 1 Comment on आंकड़ों में उलझी गरीबों की जिंदगी हिमकर श्याम दशकों से गरीबी, देश की सबसे बड़ी चुनौती है। यह चुनौती लगातार गंभीर और व्यापक होती गयी पर, सत्ता पक्ष-विपक्ष किसी ने इसके कारगर उपाय के लिए अपनी पूरी ताकत नहीं झोंकी। गरीबी और गरीबी रेखा का इस्तेमाल हमेशा से ही राजनैतिक फायदे के लिए किया गया। गरीब होने का अर्थ है अभाव […] Read more » poverty गरीबी