व्यंग्य साहित्य व्यंग्य ; हे अतिथि, कब आओगे?? February 1, 2012 / February 1, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम हे परमादरणीय अतिथि! अब तो आ जाओ न! माना सर्दियों में घर से बाहर निकलना मुश्किल होता है, पर अब तो वसंत गया। विपक्ष ने चुनाव आयोग से कह जिन हाथियों को ढकवा दिया था वे भी वसंत के आने पर कामदेव के बाणों से आहत होकर चिंघाड़ने लग गए हैं। सच कहूं […] Read more » guest vyangya कब आओगे व्यंग्य हे अतिथि
खेल जगत व्यंग्य साहित्य व्यंग्य ; क्रिकेट के नायक और खलनायक – राजकुमार साहू January 30, 2012 / January 29, 2012 by राजकुमार साहू | Leave a Comment इतना तो है, जब हम अच्छा करते हैं तो नायक होते हैं। नायक का पात्र ही लोगों को रिझाने वाला होता है। जब नायक के दिन फिरे रहते हैं तो उन पर ऊंगली नहीं उठती और जो लोग ऊंगली उठाते हैं, उनकी ऊंगली, उनके चाहने वाले तोड़ देते हैं। नायक की दास्तान अभी की नहीं […] Read more » Cricket vyangya क्रिकेट के नायक और खलनायक व्यंग्य
कविता व्यंग्य साहित्य व्यंग्य कविता ; काम वालियां – प्रभुदयाल श्रीवास्तव January 30, 2012 / January 29, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment काम वालियां नहीं कामपर बर्तन वाली दो दिन से आई इसी बात पर पति देव पर पत्नि चिल्लाई काम वालियां कभी समय पर अब न आ पातीं न ही ना आने का कारण खुलकर बतलातीं बिना बाइयों के घर तो कूड़ाघर हो जाता बड़ी देर से कठिनाई से सूर्य निकल पाता छोटी बच्ची गिरी फिसल […] Read more » poem vyangya काम वालियां व्यंग्य कविता
व्यंग्य साहित्य अटेंशन – एक व्यंग्य कथा !!! January 28, 2012 / January 30, 2012 by विजय कुमार सप्पाती | 1 Comment on अटेंशन – एक व्यंग्य कथा !!! कुछ दिन पहले तक मेरी हालत बहुत खराब थी। मुझे कहीं से कोई भी अटेंशन नहीं मिल रही थी। हर कोई मुझे बस टेंशन देकर चला जाता था, जैसे मैं रास्ते का भिखारी हूँ और मुझे कोई भी भीख में टेंशन दे देता था। मैं बहुत दुखी था। कोई रास्ता नहीं दिखाई देता था। मुझे […] Read more » vyangya अटेंशन व्यंग्य कथा
व्यंग्य व्यंग्य – अनजाने चेहरों की दोस्ती August 4, 2011 / December 7, 2011 by राजकुमार साहू | Leave a Comment राजकुमार साहू यह बात अधिकतर कही जाती है कि एक सच्चा दोस्त, सैकड़ों-हजारों राह चलते दोस्तों के बराबर होता है। यह उक्ति, न जाने कितने बरसों से हम सब के दिलो-दिमाग में छाई हुई है। दोस्ती की मिसाल के कई किस्से वैसे प्रचलित हैं, चाहे वह फिल्म ‘शोले’ के जय-वीरू हों या फिर धरम-वीर। साथ […] Read more » vyangya दोस्ती
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य/ मदर भैंसलो पब्लिक स्कूल July 27, 2011 / December 8, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य-व्यंग्य/ मदर भैंसलो पब्लिक स्कूल पंडित सुरेश नीरव शिक्षा और भैंस का संबंध पुराणकाल से ही फसल और खाद तथा सूप और सलाद की तरह घनिष्ठ रहा है। ये बात और है कि हमारा अपना व्यक्तिगत संबंध शिक्षा के साथ वैसा ही है जैसा कि भट्टा-पारसौल के किसानों का संबंध बिल्डरों के साथ। अगर ज़मीन किसान की जायदाद है तो […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य/ मेट्रों में आत्मा का सफर July 24, 2011 / December 8, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य-व्यंग्य/ मेट्रों में आत्मा का सफर पंडित सुरेश नीरव सब शरीर धरे के दंड हैं। इसलिए जब भी किसी स्वर्गीय का भेजे में खयाल आता है तब-तब मैं हाइली इन्फलेमेबल ईर्ष्या से भर जाता हूं। सोचता हूं कितनी मस्ती में घूमती हैं ये आत्माएं। जिंदगी का असली मजा तो दुनिया में ये आत्माएं ही उठाती हैं। न गर्मी की चिपचिप न […] Read more » vyangya हास्य-व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य : इस देश का यारों क्या कहना.. July 20, 2011 / December 8, 2011 by विजय कुमार | 1 Comment on व्यंग्य : इस देश का यारों क्या कहना.. विजय कुमार छात्र जीवन से ही मेरी आदत अति प्रातः आठ बजे उठने की है; पर आज सुबह जब कुछ शोर-शराबे के बीच मेरी आंख खुली, तो घड़ी में सात बज रहे थे। आंख मलते हुए मैंने देखा कि मोहल्ले में बड़ी भीड़ थी। कुछ पुलिस वाले भी वहां दिखाई दे रहे थे। मोहल्ले की […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य साउथ के राजा की मंडी July 9, 2011 / December 9, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 2 Comments on साउथ के राजा की मंडी पंडित सुरेश नीरव बहुत समय पहले की बात है। भरतखंडे,जंबूद्वीपे, आर्यावर्ते दक्षिण में दयानिधान,भक्तवत्सल करुणानिधान नानके एक राजा हुए। राजा की कार्यकुशलता का ही चमत्कार था कि राज्य की कुल संपत्ति से कई गुना ज्यादा खुद राज़ा की संपत्ति थी। और अपनी संपत्ति को कैसे बढ़ाया जाए राजा इसी फिक्र में रात-रातभर जागता और दिन-दिनभर […] Read more » vyangya
व्यंग्य व्यंग्य/मुश्क़िल June 23, 2011 / December 11, 2011 by संजय ग्रोवर | Leave a Comment संजय ग्रोवर वह एक-एकसे पूछ रहा था। जनता से क्या पूछना था, वह हमेशा से भ्रष्टाचार के खि़लाफ़ थी। विपक्षी दल से पूछा, ‘‘मैंने ही तो सबसे पहले यह मुद्दा उठाया था।’’ उनके नेता ने बताया। उसने शासक दल से भी पूछ लिया, ‘‘हम आज़ादी के बाद से ही इसके खि़लाफ़ कटिबद्ध हैं। जल्द ही […] Read more » vyangya
व्यंग्य व्यंग/ मुफ्तखोरी की बीमारी June 14, 2011 / December 11, 2011 by राजकुमार साहू | Leave a Comment राजकुमार साहू बीमारी की बात करते हैं तो हर व्यक्ति, कोई न कोई बीमारी से ग्रस्त नजर जरूर आता है। बीमारी की जकड़ से यह मिट्टी का शरीर भी दूर नहीं है। सोचने वाली बात यह है कि बीमारियों की तादाद, दिनों-दिन लोगों की जनसंख्या की तरह बढ़ती जा रही है। जिस तरह रोजाना देश […] Read more » vyangya
व्यंग्य व्यंग्य – पदपूजा का आभामंडल June 14, 2011 / December 11, 2011 by राजकुमार साहू | Leave a Comment राजकुमार साहू पदपूजा का आभामंडल हर किसी को भाता है। जिसे देखो, वह पद के पीछे, अपना पग हमेशा आगे रखना चाहता है। मैं तो यह मानता हूं कि जिनके पास कोई बड़ा पद नहीं है, समझो वह कुछ भी नहीं है। उसकी औकात उतनी है, जितनी सरकार की उंची कुर्सी में बैठे सत्तामद के […] Read more » vyangya