व्यंग्य व्यंग्य/ हे गण, न उदास कर मन!! January 26, 2011 / December 16, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ हे गण, न उदास कर मन!! अशोक गौतम गण उठ, महंगाई का रोना छोड़। महंगाई का रोना बहुत रो लिया। पहले मां बच्चे को रोने से पहले खुद दूध देती थी। तब देश में लोकतंत्र नहीं था। अब समय बदल गया है। बच्चा रोता है तो भी मां उसे दूध देने के लिए सौ नखरे करती है। मां और तंत्र को […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य: वर्तमान परिदृश्य December 24, 2010 / December 18, 2011 by विजय कुमार | Leave a Comment विजय कुमार बहुत पुरानी बात है। एक रानी के दरबार में राजा नामक एक मुंहलगा दरबारी था। रानी साहिबा मायके संबंधी किसी मजबूरी के चलते गद्दी पर बैठ नहीं सकीं। बेटा छोटा और अनुभवहीन था, इसलिए उन्होंने अपने एक विश्वासपात्र सरदार को ही गद्दी पर बैठा दिया। वे उस राज्य को महारानी की कृपा समझ […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ चातक वैष्णव प्याज पुकारे December 24, 2010 / December 18, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम उनकी पार्टी के बीसियों समाज सेवकों के पास बीसियों धक्के खाने के बाद बड़ी मुश्किल से अपनी चिंता पर उनकी चिंता व्यक्त करा अपनी चिंता से मुक्त होने के लिए उनके दरबार में हाजिर हुआ तो देखता क्या हूं कि वे तो चिंताओं से मुझसे भी अधिक शोभायमान हैं। सिर से पांव तक […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य/ रेडियोएक्टिव साहित्यकार December 22, 2010 / December 18, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव अपने लपकू चंपक जुगाड़ीजी आजकल रेडियो एक्टिव साहित्यकार हो गए हैं। यूरेनियम-जैसे रेडियो एक्टिव पदार्थ में और रेडियोएक्टिव साहित्यकार में सिर्फ इतना फ़र्क होता है कि रेडियोएक्टिव साहित्यकार हमेशा अपनी दम पर सक्रिय रहता है वहीं रेडियोएक्टिव साहित्यकार सिर्फ रेडियो में नोकरी लगने के बाद ही सक्रिय होता है। और जैसे ही […] Read more » vyangya
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य/ निजी कारणों से हुई सरकारी मौत December 17, 2010 / December 18, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव बांसुरी प्रसादजी ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि ज़िंदगीभर चैन की बांसुरी बजानेवाले बांसुरी प्रसाद की मौत सरकार के जी का जंजाल बन जाएगी। संवेदनशील सरकार का एक कलाकार की मौत पर परेशान होना लाजिमी है। और फिर बांसुरी प्रसादजी तो सरकार के बुलाने पर ही लोक-कला-संगीत के जलसे में भाग […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ किरकिटवा उर्फ किस्सा ए सत्र December 17, 2010 / December 18, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम पहाड़ों से ऊंचे पेड़ों से सूरज पूरी तरह ढका होने के बाद भी जनता के हिस्से की चुराई गुनगुनी धूप का आंनद ले रहा था कि सामने अपने सरकारी प्राइमरी स्कूल में छुट्टियां होने के बाद अपने बेड़े के बच्चे तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार गुड्डू मौसी के फटे कुरते की गेंद, छिंबा ताऊ […] Read more » vyangya
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य /हवासिंह हवा-हवाई December 13, 2010 / December 18, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव जब से हवासिंह किसी ऊपरी हवा के प्रभाव में आए हैं बेचारे की तो हवा ही खराब हो गई है। और हवा हुई भी इतनी खराब है कि नाक की प्राणवायु और कूल्हे की अपान वायु में कोई भेद नहीं रह गया है। हवा का ऐसा हवाई सदभाव हवाईसिंह-जैसे बिरलों को ही […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य / सत्यवीरजी के झूठे बयान December 6, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 2 Comments on हास्य-व्यंग्य / सत्यवीरजी के झूठे बयान पंडित सुरेश नीरव सत्यवीरजी का दावा है कि वे कभी झूठ नहीं बोलते और उनके जाननेवालों का दावा है कि सत्यवीरजी से बड़ा झूठा उन्होंने अपनी ज़िंदगी में आजतक नहीं देखा है। उनके जन्म को लेकर किंवदंती प्रचलित है कि जिस गांव में सत्यवीरजी का जन्म हुआ वहां सत्यवीरजी के जन्म से ठीक पहले सौ […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य / चक्कर करोड़पति बनने का December 3, 2010 / December 19, 2011 by गिरीश पंकज | 1 Comment on व्यंग्य / चक्कर करोड़पति बनने का -गिरीश पंकज हम अपने मित्र लतखोरीलाल के घर पहुँचे। देखा तो वे सामान्य ज्ञान की किताबों से घिरे हुए हैं। मैं चकराया। इस प्रौढ़ावस्था में ये पट्ठा कौन-सी परीक्षा की तैयारी में भिड़ा हैं। पूछने पर शरमाते हुए बोले – ”हे…हे…बस, ऐसे ही…” ”अरे, शरमाओ मत, बता भी दो। कहीं से कोई अच्छी संभावना हो […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य : रपट कूकर कॉलौनी की November 29, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 2 Comments on हास्य-व्यंग्य : रपट कूकर कॉलौनी की मैं नगर के सबसे पॉश इलाके में रहता हूं। चाय के उत्पादन से लिए जैसे दार्जिलिंग और बरसात के मामले में चेरापूंजी की प्रतिष्ठा है,ठीक वैसे ही कुत्तों के मामले में हमारी कॉलौनी का भी अखिल भारतीय रुतबा है। एक-से-एक उच्चवर्णी और कुलीन गोत्रों के कुत्ते इस कूकर कॉलौनी में निवास करते हैं। इसलिए ही […] Read more » vyangya पंडित सुरेश नीरव हास्य-व्यंग्य
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य/ मुन्ना बदनाम हुआ धन्नो ये तेरे लिए November 26, 2010 / December 19, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य-व्यंग्य/ मुन्ना बदनाम हुआ धन्नो ये तेरे लिए पंडित सुरेश नीरव हम बदनाम भी हुए तो कुछ गम नहीं…चलो इस बहाने नाम तो हुआ। नामचीन होने के तमाम बहाने आजमाने के बाद दुनियाभर के आम आदमी ने सर्वसम्मति से नामचीन होने के लिए बदनाम होने के फार्मूले को ही सबसे सुविधापूर्ण और सम्मानजनक नुस्खा पाया है। इसमें सबसे बड़ा लाभ तो उसे ये […] Read more » vyangya व्यंग
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य : हैसियत नजरबट्टू की November 12, 2010 / December 20, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य-व्यंग्य : हैसियत नजरबट्टू की बैचेनियां समेटकर सारे जहान की,जब कुछ न बन सका तो मुझे कवि बना दिया।वैसे तो यह हर कवि का आत्मकथ्य है,जो जिंदगी के दंगल में चौतरफा शिकस्त हासिल करता है,वो जुझारू व्यक्ति अचानक कविता का मुकुट पहनकर साहित्य के सिंहासन पर उछलकर चढ़ जाता है ठीक वैसे ही जैसे कि शोले फिल्म में वीरू निराशा […] Read more » vyangya व्यंग्य