धर्म-अध्यात्म ‘वेदों का प्रवेश-द्वार ऋषिदयानन्दकृत ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश April 30, 2018 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment ‘वेदों का प्रवेश–द्वार ऋषिदयानन्दकृत ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश’ –मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। सत्यार्थप्रकाश धार्मिक वं सामाजिक शिक्षाओं का एक विश्व विख्यात ग्रन्थ है। यह ऐसा ग्रन्थ है कि जिसमें ऋषि दयानन्द के जीवन में देश व विश्व में प्रचलित सभी मत-मतान्तरों की अवैदिक, असत्य व अज्ञानयुक्त मान्यताओं पर प्रकाश डाला गया है। इस ग्रन्थ ने भारत […] Read more » Featured ईश्वर जयकृष्ण दास परमात्मा मनुष्य वेदों शान्ति सत्यार्थप्रकाश समाज सुख स्वामी दयानन्द
धर्म-अध्यात्म सत्यार्थप्रकाश वैदिक साहित्य का प्रमुख ग्रन्थ होने सहित वर्तमान आधुनिक युग का सर्वाधिक तर्कसंगत धर्म ग्रन्थ है March 10, 2018 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य मनुष्य का कर्तव्य सत्य का धारण करना और असत्य का त्याग करना है। सत्यासत्य का निर्णय करने के लिए एक ऐसे ग्रन्थ की आवश्यकता होती है जिसमें मनुष्य जीवन के सभी पक्षों व सभी कर्तव्यों एवं कर्मों का उल्लेख व अकरणीय कार्यों का निषेध दिया गया हो। इस उद्देश्य की पूर्ति के […] Read more » satyarth prakash सत्यार्थप्रकाश
धर्म-अध्यात्म सत्संग का उत्तम साधन वेद, सत्यार्थप्रकाश आदि का स्वाध्याय February 10, 2018 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य मनुष्य को अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए सत्संग की आवश्यकता होती है। सत्संग का अभिप्राय है कि हम जीवन को सुख, समृद्धि व सफलता आदि प्राप्त करने के लिए सत्य को जानें। यदि हमें सत्य का ज्ञान नहीं होगा तो हम सही निर्णय नहीं ले सकेंगे। हो […] Read more » Featured knowledge of Vedas Satyartha Prakash The best means of satsang वेद सत्यार्थप्रकाश सत्संग का उत्तम साधन
धर्म-अध्यात्म सत्यार्थप्रकाश की महत्ता और ऋषि भक्त महात्मा दीपचन्द आर्य November 27, 2017 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। ऋषि भक्त महात्मा (लाला) दीपचन्द आर्य जी ने अपने जीवनकाल में वैदिक विचारधारा के प्रचार प्रसार के लिए अनेक अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय कार्य किये। उनका प्रमुख कार्य आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली की स्थापना था। इस न्यास से दयानन्द सन्देश नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया गया जिसने वेद एवं स्वामी […] Read more » सत्यार्थप्रकाश
धर्म-अध्यात्म सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन अविद्या दूर कर ज्ञानी बनाता है October 20, 2017 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment दीपावली एवं ऋषि दयानन्द बलिदान दिवस पर मनमोहन कुमार आर्य दीपावली का पर्व कार्तिक अमावस्या की रात्रि के अन्धकार को दीपमाला जलाकर, अन्धकार को किंचित मात्रा में दूर कर मनाया जाता है। जो लोग इस दीपमाला का इतना ही महत्व मानते हैं वह दीपावली का अधूरा ज्ञान रखते हैं। दीपक सीमित मात्रा में अन्धकार दूर […] Read more » Satyarthaprakash सत्यार्थप्रकाश
धर्म-अध्यात्म सत्यार्थप्रकाश आदि समस्त ग्रन्थ मनुष्यों को सद्ज्ञान देकर उन्हें ईश्वर का सच्चा भक्त बनाकर मोक्षगामी बनाते हैं July 3, 2017 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment ऋषि दयानन्द रचित सत्यार्थप्रकाश आदि समस्त ग्रन्थ मनुष्यों को सद्ज्ञान देकर उन्हें ईश्वर का सच्चा भक्त बनाकर मोक्षगामी बनाते हैं मनमोहन कुमार आर्य ऋषि दयानन्द (1825-1883) सच्चे ऋषि, योगी, वेदों के पारदर्शी विद्वान, ईश्वर भक्त, वेद भक्त, देश भक्त, सच्चे व सुपात्र समाज सुधारक, वेदोद्धारक, वैदिक धर्म व संस्कृति के अपूर्व प्रचारक आदि अनेकानेक गुणों […] Read more » सत्यार्थप्रकाश
धर्म-अध्यात्म मेरा धर्मग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश June 23, 2017 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on मेरा धर्मग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश मनुष्य जब जन्म लेता है तो उसे किसी भाषा का ज्ञान नहीं होता है, अन्य विषयों के ज्ञान होने का तो प्रश्न ही नही होता। सबसे पहले वह अपनी माता से उसकी भाषा, मातृभाषा, को सीखता है जिसे आरम्भिक जीवन के दो से पांच वर्ष तो नयूनतम लग ही जाते हैं। इसके बाद वह भाषा ज्ञान को व्याकरण की सहायता से जानकर उस पर धीरे धीरे अधिकार करना आरम्भ करता है। भाषा सीख लेने पर वह व्यक्ति उस भाषा की किसी भी पुस्तक को जानकर उसका अध्ययन कर सकता है। संसार में मिथ्या ज्ञान व सद्ज्ञान दोनों प्रकार के ग्रन्थ विद्यमान हैं। मिथ्या ज्ञान की पुस्तकें, भले ही वह धार्मिक हां या अन्य, उसे असत्य व जीवन के लक्ष्य से दूर कर अशुभ कर्म वा पाप की ओर ले जाती हैं। Read more » Featured Satyarthaprakash सत्यार्थप्रकाश सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ का उद्देश्य
धर्म-अध्यात्म ऋषि दयानन्द जी का संन्यासियों को उनके कर्तव्यबोध विषयक उपदेश May 5, 2017 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment जो वेदान्त अर्थात् परमेश्वर प्रतिपादक वेदमन्त्रों के अर्थज्ञान और आचार में अच्छे प्रकार निश्चित संन्यासयोग से शुद्धान्तःकरणयुक्त संन्यासी होते हैं, वे परमेश्वर में मुक्ति सुख को प्राप्त होके भोग के पश्चात्, जब मुक्ति में सुख की अवधि पूरी हो जाती है, तब वहां से छूट कर संसार में आते हैं। मुक्ति के बिना दुःख का नाश नहीं होता। जो देहधारी हैं वह सुख दुःख की प्राप्ति से पृथक् कभी नहीं रह सकता और जो शरीररहित जीवात्मा मुक्ति में सर्वव्यापक परमेश्वर के साथ शुद्ध होकर रहता है, तब उसको सांसारिक सुख दुःख प्राप्त नहीं होता। इसलिए लोक में प्रतिष्ठा वा लाभ, धन से भोग वा मान्य तथा पुत्रादि के मोह से अलग होके संन्यासी लोग भिक्षुक होकर रात दिन मोक्ष के साधनों में तत्पर रहते हैं। प्रजापति अर्थात् परमेश्वर की प्राप्ति के अर्थ इष्टि अर्थात् यज्ञ करके उसमें यज्ञोपवीत शिक्षादि चिन्हों को छोड़ आह्वनीयादि पांच अग्नियों को प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान इन पांच प्राणों में आरोपण करके ब्राह्मण ब्रह्मवित् घर से निकल कर संन्यासी हो जावे। जो सब भूत प्राणिमात्र को अभयदान देकर धर्मादि विद्याओं का उपदेश करने वाला संन्यासी होता है उसे प्रकाशमय अर्थात् मुक्ति का आनन्दस्वरूप लोक प्राप्त होता है। Read more » सत्यार्थप्रकाश
धर्म-अध्यात्म सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ का उद्देश्य और प्रभाव November 28, 2016 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य “सत्यार्थ प्रकाश” विश्व साहित्य में महान ग्रन्थों में एक महानतम् ग्रन्थ है, ऐसा हमारा अध्ययन व विवेक हमें बताता है। हमारी इस स्थापना को दूसरे मत के लोग सुनेंगे तो इसका खण्डन करेंगे और कहेंगे कि यह बात पक्षपातपूर्ण है। उनके अनुसार उनके मत व पंथ का ग्रन्थ ही सर्वोत्तम व महानतम् […] Read more » सत्यार्थप्रकाश सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ का उद्देश्य
धर्म-अध्यात्म श्रीमद्भगवद्गीता व सत्यार्थप्रकाश के अनुसार जीवात्मा का यथार्थ स्वरूप October 1, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment जीवात्मा के विषय में वैदिक सिद्धान्त है कि यह अनादि, अनुत्पन्न, अजर, अमर, नित्य, चेतन तत्व वा पदार्थ है। जीवात्मा जन्ममरण धर्मा है, इस कारण यह अपने पूर्व जन्मों के कर्मानुसार जन्म लेता है, नये कर्म करता व पूर्व कर्मों सहित नये कर्मों के फलों को भोक्ता है और आयु पूरी होने पर मृत्यु को […] Read more » Featured जीवात्मा का यथार्थ स्वरूप श्रीमद्भगवद्गीता सत्यार्थप्रकाश
धर्म-अध्यात्म संसार में मनुष्यों के कर्तव्य संबंधी ज्ञान-विज्ञान का सर्वोत्तम ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश September 9, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment कबीर दास जी ने सत्य की महिमा को बताते हुए कहा है कि ‘सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप, जाके हृदय सांच है ताके हृदय आप’ वस्तुतः संसार में सत्य से बढ़कर कुछ नहीं है। ईश्वर, जीव व प्रकृति सत्य हैं अर्थात् इनका संसार में अस्तित्व है। बहुत से सम्प्रदायों व स्वयं को ज्ञानी […] Read more » Featured सत्यार्थप्रकाश