इस संक्रांति पर शपथ ले प्रदूषण मुक्त गंगा का

0
179

हर बार की तरह इस संक्रांति पर भी गंगा की स्थिति ज्यों की त्यों है क्योकि ना तों प्रदूषण में कमी आई है और न ही गंगा की धारा अविरल हो पाई है।गंगा ही नही सभी नदियों की हालातो में कोई परिवर्तन नहीं हुआ हैं । इस बार भी गंगा की स्थिति हरिद्वार से लेकर वाराणसी तक पहले जैसी ही है । सबसे भयावह स्थिति इलाहाबाद के संगम की है , जहा पर गंगा का अस्तित्व ही दाव पर है । गंगा व यमुना कोई साधारण नदियाँ नहीं है । सदियों से यह हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक रही है । आज इन नदियों का अस्तित्व ही खतरें में पड़ गया है । गंगा के धार्मिक महत्व को छोड़ दे, तो भी गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक इसके किनारें बसें लगभग 30 करोड़ से अधिक आबादी और तमाम जीव – जंतुओं , वनस्पतियों के जीवन का मूल – आधार गंगा ही है । गंगा के बिना गंगा की घाटी में जीवन संभव नहीं हैं , इसलिए इसकी रक्षा , इसे निर्मल बनाए रखने की चिंता और प्रयास जो नहीं करता   है , वह अपने साथ ही आत्मघात कर रहा हैं ।

जल को जीवन का वायु के बाद दूसरा सबसे बड़ा आधार माना गया हैं । जल जीवन का पर्याय है अतः समस्त जीवन – धारा को प्रतीकात्मक रूप से गंगा – प्रवाह कहा जाता हैं । इसकी महिमा फाह्यान , ह्वेनसांग , इत्सिंग आदि विदेशियों ने और रसखान , रहीम ,ताज , मीर आदि मुसलमानों ने भी गाई है । वेदों से लेकर वेदव्यास तक , बाल्मीकि से लेकर आधुनिक कवियों और साहित्यकारों ने इसका गुणगान किया हैं । इसका भौगोलिक , पौराणिक , ऐतिहासिक , सांस्कृतिक के साथ – साथ आध्यात्मिक महत्व भी है । यह वारी – प्रवाह आकाश से पृथ्वी पर यों ही नहीं आया । इसके लिए भागीरथ ने बहुत तप किया था ।

भागीरथ की जिस गंगा में कभी निर्मल जल की धारा बहती थी , वहां आज सड़ांध और दुर्गंध के भभके उठतें है । कानपुर में तो नदी ने एक नाले का रूप ले लिया है और वह अपने स्थान से भी ख़िसक रही हैं । अपनी नदियों को प्रदूषण से बचाना हमारा कर्तव्य है ।इससे जुड़ी योजनाओं को पूरी इच्छाशक्ति से जब तक लागू नहीं किया जाएगा , तब तक हम गंगा – यमुना जैसी जीवन दायी नदी को नहीं बचा सकते है ।

इस प्रमुख नदी की 27 धाराओं में अब तक 11 धाराएं विलुप्त हो चुकी है और शेष धाराओं के भी जलस्तर में तेजी से कमी आ रही हैं । पर्यावरण की दृष्टि से यह स्थिति भयावह है । इसका कारण गंगोत्री ग्लेशियर का तेजी से पिघलना बताया गया है । पिछले 56 वर्षो में गंगा नदी के जलस्तर में लगभग 20 फीसद की कमी आई है । आगामी दशकों में इस कमी के बढ़ने की पूरी संभावना है । यही हाल रहा तो अगले 50 सालों में गंगा नदी सूख जाएगीं । गंगोत्री गोमुख से निकलने के बाद गंगा नदी ने 27 धाराओं को जन्म दिया , इनमे से 11 धाराएं – रुद्रगंगा , खांडवगंगा , नवग्रामगंगा , शीर्ष गंगा , कोटगंगा ,हेमवंतीगंगा , शुद्ध तरंगणी ,धेनुगंगा , सोमगंगा और दुग्ध गंगा विलुप्त हो चुकी है ।

वास्तव में विश्व की विभिन्न रूप – रचनाओं में जो सारस्वत एवं सर्वनिष्ठ सत्ता निवास करती है , उसी एक की गति चेतना को गंगा कहा जाता है । भारतीयों के ह्रदय में गंगा के प्रति इतनी श्रद्धा है कि वे सभी नदियों में गंगा का ही दर्शन करते है । इसका उदाहरण मारकंडे पुराण में है –“ सवा गंगाः समुद्रगाः” अर्थात समुन्द्र से मिलने वाली सभी नदियाँ गंगा का ही रुपान्तरण हैं।दुनिया की किसी नदी ने गंगा की भांति न तो मानवता को प्रभावित किया हैं और न भौतिक सभ्यता तथा सामाजिक नैतिकता पर इतना प्रभाव डाला हैं । जितने व्यक्तियों और जितने क्षेत्रों में गंगा के जल से लाभ मिलता है , उतना संसार के किसी भी नदी से नहीं मिलता है । गंगा के प्रवाह के उतार – चढ़ाव ने अनेक साम्राज्यों के चढ़ाव – उतार को भी देखा है ।

कुछ वर्ष पूर्व यूनेस्को के एक वैज्ञानिकों के दल ने हरिद्वार के निकट गंगा के पानी के अध्ययन के बाद कहा था कि जिस स्थान में पानी की धारा में मुर्दे , हड्डियाँ आदि दूषित वस्तुए वह रही थी , वहीँ कुछ फुट नीचे का जल पूर्ण शुद्ध था । अनुसंधानों से पता चला है कि गंगा के जल में हैजे के कीटाणु तीन – चार घंटे में मर जाते हैं । भारत में विकसित देशों ने अपने औद्योगिक अपशिष्ट को बेचने की जो प्रक्रियां पिछले कई वर्षो से अपना रखीं थी । उस भारत के उच्चतम न्यायालय ने जनहित में फैसला देते हुए 1997 में पूरी तरह रोक लगा दी थी , लेकिन इसके बावजूद पता नहीं , किन अज्ञात संधियों और कुटनीतिक समझौतें के अंतर्गत यह अत्यंत विषैला कचरा लगातार अलग – अलग माध्यमों से भारत में निरंतर आता रहा है । भारी में मात्रा में शीशे के अलावा परमाणु रिएक्टरों तथा परमाणु बमों में नियंत्रक तत्वों के रूप में प्रयोग की जाने वाली कैडमियम धातु भी गंगाजल में बड़ी मात्रा में पाई जा रही हैं । इसकी सफाई के लिए चलाई जा रही योजनाओं का अभी तक कोई नतीजा सामने नहीं आया हैं ।

केन्द्र में आयी नई सरकार से लोगों को काफी अपेक्षाएं है । इसका कारण भी साफ है क्योकि ‘ गंगा ’इस सरकार के चुनावी एजेंडा में प्रमुख थी । मोदी सरकार ने इस क्षेत्र में पहला कदम बढ़ाते हुए “ नमामि गंगे ” शुरू की है । इसके बाद भी मोदी सरकार को सुप्रीमकोर्ट ने इस मामले में कड़ी फटकार लगाई जिसके बाद सरकार ने कोर्ट में ब्लू प्रिंट पेस करते हुए कहा कि “ गंगा को पूर्ण रूप से स्वच्छ करने में 18 साल का समय लगेगा तथा 51 हजार करोड़ की लागत आएगी । इस योजना के तहत गंगा किनारे के 118 नगरो में पूर्ण स्वच्छ किया जाएगा तथा 1649 ग्राम पंचायतो को पूर्ण रूप से टायलेट युक्त किया जाएगा । ” हालाकि मोदी ने लोगो को स्वच्छता अभियान के लिये प्रेरित किया हैं लेकिन सबसे जरुरी स्वजागरुकता की है क्योंकि इस चुनौती का मुकाबला किये बिना “ गंगा ” हमारा उद्धार नहीं कर सकती हैं ।

नीतेश राय

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,051 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress