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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा बलिदान था “15 फरवरी 1932 का तारापुर शहीद दिवस”

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देश को आजादी कितनी कुर्बानियों के बाद हासिल हुई है, इसका अंदाजा शायद नई पीढ़ी को नहीं होगा. इसमें उनका दोष भी नहीं है. वे आजाद भारत में पैदा हुए हैं और बिल्कुल अलग परिवेश में जी रहे हैं. इन 70 वर्षों में काफी कुछ बदल चुका है. लेकिन उन्हें इस बारे में बताया जाना चाहिए कि यह आजादी कितनी मुश्किलों का सामना कर हमें हासिल हुई है ?


अगर स्वतंत्रता सेनानियों की बात करें तो हम इतिहास की पुस्तकों में, फिल्मों में , गानों में और सरकारी माध्यमों में चर्चित नामों को तो जानते है लेकिन सैकड़ों क्रांतिवीरों के बलिदान के बारे में नहीं जानते हैं जो आज आजादी के 70 साल बाद भी कहीं गुमनामी के अंधेरे में खोए हुए हैं. उन्हें या तो भूला दिया गया है या फिर वे हाशिये पर डाल दिए गए. कई सेनानियों का तो कुछ अता पता भी नहीं मालूम क्योंकि उनके बारे में कभी कुछ जानने और बताने की कोशिश ही नहीं की गई |
आप और हम सभी जलियाँवाला बाग़ की घटना को जानते हैं लेकिन शायद किसी को पता हो भी या न हो कि आजादी की लड़ाई में बिहार के तारापुर का गोलीकांड कितनी महत्वपूर्ण घटना थी. इस घटना की जितनी चर्चा होनी चाहिए थी, शायद उतनी हो नहीं पाई है. आपको बता दें कि तारापुर बिहार के मुंगेर जिले का एक अनुमंडल है. यह कस्बानुमा शहर तारापुर 15 फरवरी 1932 को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा हुए भीषण नरसंहार के लिये प्रसिद्ध है. आजादी के दीवाने 34 वीरों ने तारापुर थाना भवन पर तिरंगा फहाराने के संकल्प को पूरा करने के लिए सीने पर गोलियां खायी थीं और वीरगति को प्राप्त हुए थे. जिनमें से मात्र 13 शवों की हीं पहचान हो पाई थी |

दरअसल,1931 में हुआ गाँधी–इरविन समझौता भंग होने के बाद ब्रिटिश हुकुमत ने कांग्रेस को प्रतिबंधित कर सभी कांग्रेस कार्यालय पर ब्रिटिश झंडा यूनियन जैक लहरा दिया था | महात्मा गांधी ,सरदार पटेल और राजेंद्र बाबू सहित बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया था | तो इसकी प्रतिक्रिया देश भर में होने लगी |
बिहार में तो युद्धक समिति के प्रधान सरदार शार्दुल सिंह कवीश्वर द्वारा जारी संकल्प पत्र कांग्रेसियों और क्रांतिकारियों में आजादी का उन्माद पैदा कर गया | संकल्प पत्र में आवाहन था कि 15 फ़रवरी सन 1932 को सभी सरकारी भवनों पर तिरंगा झंडा लहराया जाए और योजना थी कि प्रत्येक थाना क्षेत्र में पांच सत्याग्रहियों का जत्था झंडा लेकर धावा बोलेगा और शेष कार्यकर्त्ता दो सौ गज की दूरी पर खड़े होकर सत्याग्रहियों का मनोबल बढ़ाएंगे |
उसी आवाहन को पूरा करने के लिए वर्तमान में संग्रामपुर थाना के सुपोर-जमुआ के श्रीभवन में एक गुप्त बैठक हुई जिसमें इलाके भर के क्रांतिकारियों , कांग्रेसियों और अन्य देशभक्तों ने हिस्सा लिया | सैकड़ों लोगों ने धावक दल को अंग्रेजों के थाने पर झंडा फहराने का जिम्मा दिया था।
15 फरवरी की दोपहर में क्रांतिवीरों का जत्था निकला , लोग घरों से बाहर आने लगे , तारापुर थाना भवन के पास भीड़ जमा हो गयी | धावक दल तिरंगा हाथों में लिए बेख़ौफ़ बढते जा रहे थे और उनका मनोबल बढ़ाने के लिए जनता खड़ी होकर भारतमाता की जय, वंदे मातरम् आदि का जयघोष कर रही थी । मौके पर थाना में कलेक्टर ई.ओ. ली व एसपी डब्लू एस मैग्रेथ ने निहत्थे स्वतंत्रता सेनानियों पर अंधाधुंध गोलियां चलवा दी थी. आजादी के दीवाने नौजवान वहां से हिले नहीं और सीने पर गोलियां खायीं. इसी बीच धावक दल के श्री मदन गोपाल सिंह, श्री त्रिपुरारी सिंह,श्री महावीर सिंह,श्री कार्तिक मंडल,श्री परमानन्द झा ने तिरंगा फहरा दिया.
अंग्रेजी हुकूमत की इस बर्बर कार्रवाई में 34 स्वतंत्रता प्रेमी शहीद हो गये थे. इनमें से 13 की तो पहचान हुई बाकी 21 अज्ञात ही रह गये थे. आनन—फानन में अंग्रेजों ने कायरतापूर्वक वीरगति को प्राप्त कई सेनानियों के शवों को वाहन में लदवाकर सुल्तानगंज भिजवाकर गंगा में बहवा दिया था.

जिन 13 वीर सपूतों की पहचान हो पाई उनमें श्री विश्वनाथ सिंह (छत्रहार), श्री महिपाल सिंह (रामचुआ), श्री शीतल चमार (असरगंज), श्री सुकुल सोनार (तारापुर), श्री संता पासी (तारापुर), श्री झोंटी झा (सतखरिया), श्री सिंहेश्वर राजहंस (बिहमा), श्री बदरी मंडल (धनपुरा), श्री वसंत धानुक (लौढिया), श्री रामेश्वर मंडल (पढवारा), श्री गैबी सिंह (महेशपुर), श्री अशर्फी मंडल (कष्टीकरी) तथा श्री चंडी महतो (चोरगांव) शामिल थे. इस घटना ने अप्रैल 1919 को अमृतसर के जालियांवाला बाग गोलीकांड की बर्बरता की याद ताजा कर दी थी.

प्रधानमंत्री द्वारा “ मन की बात “ में भी तारापुर शहीद दिवस की चर्चा
साथियो, इस वर्ष से भारत, अपनी आजादी के, 75 वर्ष का समारोह – अमृत महोत्सव शुरू करने जा रहा है। ऐसे में यह हमारे उन महानायकों से जुड़ी स्थानीय जगहों का पता लगाने का बेहतरीन समय है, जिनकी वजह से हमें आजादी मिली।
साथियो, हम आजादी के आंदोलन और बिहार की बात कर रहें हैं, तो, मैं, NaMo App पर ही की गई एक और टिपण्णी की भी चर्चा करना चाहूँगा। मुंगेर के रहने वाले जयराम विप्लव जी ने मुझे तारापुर शहीद दिवस के बारे में लिखा है। 15 फरवरी, Nineteen thirty two, 1932 को, देशभक्तों की एक टोली के कई वीर नौजवानों की अंग्रेजों ने बड़ी ही निर्ममता से हत्या कर दी थी। उनका एकमात्र अपराध यह था कि वे ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माँ की जय’ के नारे लगा रहे थे। मैं उन शहीदों को नमन करता हूँ और उनके साहस का श्रद्धापूर्वक स्मरण करता हूँ। मैं जयराम विप्लव जी को धन्यवाद देना चाहता हूँ। वे, एक ऐसी घटना को देश के सामने लेकर आए, जिस पर उतनी चर्चा नहीं हो पाई, जितनी होनी चाहिए थी।
मेरे प्यारे देशवासियो, भारत के हर हिस्से में, हर शहर, कस्बे और गाँव में आजादी की लड़ाई पूरी ताकत के साथ लड़ी गई थी। भारत भूमि के हर कोने में ऐसे महान सपूतों और वीरांगनाओं ने जन्म लिया, जिन्होंने, राष्ट्र के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया, ऐसे में, यह, बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारे लिए किए गए उनके संघर्षों और उनसे जुड़ी यादों को हम संजोकर रखें और इसके लिए उनके बारे में लिख कर हम अपनी भावी पीढ़ियों के लिए उनकी स्मृतियों को जीवित रख सकते हैं। – PM Shri Narendra Modi , Mann KI Baat 31 January 2021 https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1693671

 

 

 

 

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