धरती का छुपा स्वर्ग – ‘तवांग’

‘तवांग’, यह नाम लेते ही मेरा मन हर्षोल्लास से भर जाता है। आज मै आपको तवांग की सुंदर वादियों की सैर कराना चाहती हूँ, जिससे बहुत कम लोग परिचित हैं। तवांग भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश राज्य के पश्चिमोत्तर भाग में स्थित है। भूटान और चीन तवांग के सीमावर्ती देश हैं। यह शक्तिशाली हिमालय में समुद्र तल से 3400 मीटर की ऊंचाई पर है। यहाँ अधिकतर सर्दी का मौसम रहता है और अक्सर बर्फ गिरती रहती है। तवांग यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा समय जून और अक्टूबर के बीच है। यहाँ अक्टूबर   में ‘टूरिज्म फेस्टिवल’ होता है।

धरती का छुपा स्वर्ग, तवांग के पहाड़ों के दृश्य, दूरस्थ, विलक्षण और छोटे गाँव, जादुई गोम्पा, विषम पहाड़ियाँ, बर्फ से ढकी चोटियाँ, पतली नदियाँ, गूंजते झरने, शांत सरोवर आदि को दर्शाता है। तवांग शब्द अपने आप में एक रोचकीय कहानी समेटे हुए है। तवांग शब्द उद्धृत है त+वांग से जिसमे ‘त’ अर्थ है ‘घोडा’ ; ‘वांग’ का अर्थ है ‘चुनना’, अर्थात घोड़े द्वारा चुना गया। पौराणिक कहानियों के अनुसार तवांग मठ का स्थान ‘मेरा लामा’ के घोड़े द्वारा चुना गया था। ‘मेरा लामा’ को एक मठ बनाने का आदेश दिया गया था। वह मठ बनाने के लिए सही जगह का निर्धारण नही कर पा रहा था। एक दिन वो गुफा में दैवीय शक्ति की मदद के लिए प्रार्थना कर रहा था। जब वह बाहर आया तो उसका घोड़ा खो गया था। बाद में वह एक पहाड़ की ऊंचाई पर मिला। ‘मेरा लामा’ ने भगवान का इशारा समझकर उसी स्थान को तवांग मठ बनाने के लिए चुना।

तवांग अपने 400 वर्ष पुराने मठ के लिए प्रसिद्ध है। कहते हैं यह मठ दलाई लामा का जन्म स्थान है। तिब्बत की राजधानी ल्हासा में बने मठ के बाद यह एशिया का सबसे बड़ा मठ है। इस मठ के परिसर में 65 भवन हैं। दलाई लामा ने तवांग के रास्ते ही भारत में शरण ली थी। यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहाँ बुद्ध की 7 मीटर ऊँची स्वर्ण प्रतिमा देखने लायक है। किसी ने इस मठ को ‘स्पिरिचुअल वंडर ऑफ़ इंडिया’ कहा है। इसमें लामा के लिए घर, स्कूल, पुस्तकालय और एक म्यूजियम भी है। इस मठ को ‘गाल्देन नामग्याल ल्हास्ते’ भी कहा जाता है जिसका अर्थ है धरती का स्वर्ग और जब रात की रोशनी में मठ की तरफ देखते हैं तो एहसास होता है कि इसका नाम कितना सटीक है। तवांग मठ ऊंचाई पर स्थित होने के कारण वहा से तवांग शहर का और तवांग शहर से इस मठ का नज़ारा काफी सुंदर दिखाई देता है।

तवांग में मुख्यतः मोनपा जाति निवास करती है। मोनपा लोग बुद्ध धर्म के अनुयायी हैं। यहाँ का पहनावा यहाँ के लोगों को रंगों से भर देता है। यहाँ की औरतें तिब्बती स्टाइल का गाउन पहनती हैं जिसे ‘चुपा’ और आदमी तिब्बती स्टाइल की शर्ट पहनते हैं जिसे ‘तोह-थुंग’ कहते हैं। और ये लोग जो  तिब्बती स्टाइल का कोट पहनते हैं उसे खंजर कहते हैं। यहाँ के लोग एक खास तरह की टोपी पहनते हैं जिसे ‘गामा शोम’ कहते हैं और ये याक के बालों से बनी होती है।

यहाँ तवांग मठ के अलावा भी कई अन्य मठ और भी हैं। ‘अरगलिंग मठ’ दलाई लामा का जन्म स्थान है। इसमें दलाई लामा के हाथ और पैरों के निशान हैं जिसे दर्शन करने के लिए सुरक्षित रखा गया है। ‘रिग्यलिंग मठ’ हरियाली और शांत वातावरण में स्थित है। यह बैठने, ध्यान लगाने और अंतरात्मा की खोज के लिए सबसे अच्छी जगह है। यहाँ पर एक मठ ‘तक- सांग’ भी है जिसे ‘टाइगर्स डेन’ भी कहा जाता है क्यूंकि यहाँ के लोगों के अनुसार जब इनके गुरु पद्मसंभव आए थे तो एक टाइगर ने ही उनका स्वागत किया था। तवांग में और भी अनेक मठ हैं जिनकी अपनी अपनी विशेषताएं हैं।

तवांग पर फ्रोजन लेक भी हैं जिसे सुनकर थोड़ा आश्चर्य भी होता है कि तवांग जैसी जगह में झील भी हैं। वहां पर छोटी बड़ी लगभग 100 से भी जादा झीलें हैं पर उनमे से कुछ बहुत प्रसिद्ध हैं जैसे ‘पंगांग-टेंग-सू’ और ‘संग्त्सर लेक’ जिसे अब माधुरी लेक भी कहा जाता है। इन झीलों को देखकर दिल खुश हो जाता है। ‘पंगांग-टेंग-सू’ लेक से बहुत ही मनमोहक आवाज़ आती है। इस लेक के एक तरफ बौद्ध धर्म के झंडे हैं जिन्हें माना जाता है कि ये हवा को और आसपास के माहौल को शुद्ध करते हैं, लगे हुए हैं औए दूसरी तरफ पहाड़ हैं जिनमे लाल और हरे रंग के पेड़ हैं, जिनपर सर्दियों में बर्फ जमी रहती है। माधुरी लेक के लिए कहा जाता है कि यह 1950  में आए भूकम्प का परिणाम है। इसे माधुरी लेक इसलिए कहा जाता है क्यूंकि माधुरी और शाहरुख़ खान कोयला फिल्म की शूटिंग के लिए यहाँ आए थे। इन लेक्स के पूरे रास्ते पर ‘ओर्किड्स’ दिखते हैं जिनकी वजह से रास्ता बहुत सुंदर दिखता है।

इनके अलावा यहाँ पर्वत शिखर में गोरिचेन पर्वत शिखर, जेशिला पर्वत शिखर, सेलापास पर्वत शिखर आदि मुख्य हैं। और झरनों में नुरनंग और बीटीके बहुत दर्शनीय हैं। तवांग में थिम्बू हॉट वाटर स्प्रिंग और साचू हॉट वाटर स्प्रिंग भी हैं। इस हॉट वाटर स्प्रिंग में गर्म, सल्फर युक्त पानी होता है जो चर्मरोगों से लड़ने में काफी उपयुक्त है। ये पहाड़ियों के बीच स्थित है।

तवांग में बहुत सारे देखने योग्य स्थान हैं। उनमे से एक है ‘तवांग वार मेमोरियल’, जो 40 फीट ऊँचा है। यह स्मारक 1962 में भारत-चीन की लड़ाई में शहीद हुए जवानों की याद में 1999 में बनवाया गया था। इस वार मेमोरियल में बुद्ध धर्म की झलक साफ़ दिखाई पड़ती है। यहाँ का दृश्य देखना अपने आप में स

7 COMMENTS

  1. बहुत बहुत धन्याबाद *अन्नपूर्णा जी*

    आपका लेख हमे काफी काम आया।

  2. It is very beautiful place i spent about one year but road condition is no so good.I admired of people of Tawang .They are living peacefully.

  3. धन्यबाद अन्नपूर्णा जी . आपके लेख ने हमारे भारत के उस भाग की सैर करा दी जिसकी इतनी सुंदर जानकारी हमे न थी |हां १९६२ और १९६५ का युद्ध मुझे अपने पिता श्री की याद दिला देता है क्योकी १० वर्ष की सेना की सर्विस में वो दोनों युद्धों को लडे , बाद में आगे पढाई करके प्रोफेसर होकर सेवा निवृत हुए और मेरे चाचा १०७१ के युद्ध मे परमवीर चक्र की उपाधि प्राप्त करके सेवान्रिव्रत हुए |

  4. अन्नपूर्णा जी आपके लेख से हमे एक नई जगह के बारे में पता चला, आपके लेख में सम्पूर्ण जानकारी छिपी है, आप वाकई में बहुत अच्छा लिखती हैं. इसके लिए मैं आपका दिल से धन्यवाद करता हूँ.

  5. लोग काश्मीर जाते हैं, देश के अन्य भागों में भी जाते हैं लेकिन कोई टूरिस्ट कम्पनी पूर्वोत्तर भारत के भ्रमण का पैकेज नहीं देते. शायद इंसरजेंसी इसकी एक वजह होगी. लेकिन सतत तनाव के बावजूद अगर लोग काश्मीर जा सकते हैं तो फिर पूर्वोत्तर क्यों नहीं? केवल सरकार की उदासीनता और शुरू शे ही अंग्रेजों के ज़माने से इस छेत्र को अलग थलग रखा गया. आज़ादी के वर्षों बाद तक भी यहाँ जाने के लिए इनर लाईन परमिट लागू था. इसका नतीजा ये हुआ की इस छेत्र में शुरू से ही चर्च को खुलकर खेलने का मौका मिला और यहाँ की आबादी ईसाई बहुल हो गयी. चर्च ने अक्सर यहाँ अलगाव बढ़ने और भड़काने का काम भी किया. सी.पी.एम्.ने भी अतीत में इस आशय के आरोप लगाये थे. लेकिन यदि इन क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा दिया जाये तो देश के लोगों को यहाँ की संस्कृति से परिचित होने का अवसर मिलेगा.और राष्ट्रीय एकीकरण को भी बढ़ावा मिलेगा.

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