प्रभुदयाल श्रीवास्तव
न तो हमको भैंस चाहिए ,
नहीं चाहिए गाय |
कड़क ठण्ड है हमें पिला दो,
बस एक कप भर चाय |
चाय कड़क हो थोड़ी मीठी ,
बस थोड़ा अदरक हो|
दूध मिलाकर खुशियों के संग ,
मिला हुआ गुड लक हो |
हो जाती छू मंतर सुस्ती ,
बढ़िया चाय,उपाय |
जब भी बनती चाय घरों में ,
मोहक गंध निकलती |
लाख सम्भालो जीभ परन्तु ,
बिलकुल नहीं संभलती |
समय नहीं कटता है काटे ,
चाय न आई हाय !
गरम घूँट की चुस्की देती ,
दिव्य भव्य आनंद |
मन करता कविता लिख डालूँ ,
ह्रदय बांटता छंद |
बड़े काम की चीज़, न समझो ,
इसे अलाय -बलाय |