बिना मेल भेजे आतंकियों तक पहुचती है सारी जानकारी, ट्रेस करने में खुफिया तंत्र फेल
आतंकियों का सबसे बड़ा हथियार बन गया है इंटरनेट। इंटरनेट पर तमामतर ऐसी साईट्स हैं, जिन पर बम बनाने की पूरी विधि दी हुई है। घरेलू उपयोग की चीज़ों से किस तरह बम बनाए जा सकते हैं, ये सब बताता है इंटरनेट। असंतुट नोसिखियों से लेकर ख़तरनाक आतंकी गुटों के लिए इंटरनेट साफ्ट वेपन बन गया है। अपनी आईडियोलॉजी का प्रचार करने से लेकर अपनी ताक़त ब़ाने तक दहशतगर्द इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। कब, कहां और कैसे हमला करना है सारा काम होता है, इमेल के ज़रिए। ताज्जुब की बात तो ये है कि ये ईमेल और ये संदेश खुफिया तंत्र की पंहुच से दूर हैं।
आतंकीए खुफिया तंत्र और पुलिस से दस कदम आगे चलते हैं। एक जगह या एक देश से दूसरे देश भेजा गया ईमेल ट्रेस किया जा सकता है….पकड़ा जा सकता है। लेकिन एक ही मेल एडरेस कितनी जगह चल रहा है, इसे पकड़ पाना मुश्किल है। इसी का फायदा उठा रहे हैं हाईटेक आतंकी। इसके लिए आतंकी एक ही मेल आईडी और एक ही पासवर्ड का इस्तेमाल करते हैं। मसलन, एक इमेल आईडी पर लॉग ईन करके कहीं बैठा दहशतगर्द कोई संदेश लिखता है, और उसे सेंड करने की बजाए डिफॉल्ट में जाकर सेव कर देता है। फिर उसी इमेल आईडी और उसी पासवर्ड का इस्तेमाल करके किसी दूसरी जगह दूसरा आतंकी, जिसे वो आईडी और पासवर्ड मालूम है, वह पूरा संदेश पढ़
लेता है। इस तरह बिना मेल किए मैसेज पहुंच जाता है और किसी को पता भी नहीं चलता। इस तरीके का उपयोग करके दहशतगर्द अपनी पहचान और मिशन दोनों को गुप्त रखते हैं। दहशतगर्द ही नहीं स्लीपर सेल भी इसी तरह काम करते हैं, जो रेकी करते हैं, दहशतगर्दों को पैसा उपलब्ध कराते हैं, वो इस तरह के मेल का उपयोग करते हैं। साईबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल ने बताया कि आतंकी अपना संदेश अपने आका तक पहुंचाने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसे रोक पाना बहुत ही मुश्किल है। इसके साथ ही पवन दुग्गल ने ये भी बताया कि आतंकवादी स्टेनोग्राफी ; गुप्त लेखन पद्धती का इस्तेमाल भी कर रहे है, जिसमें एक तस्वीर दहश्तगर्द अपनी वेबसाईट पर अपलोड करते हैं जो दिखने में सिर्फ सामान्य फोटो जैसी होती है। लेकिन उसके हर 100 वे फिक्सल में कुछ ना कुछ लिखा होता है जिसे मिलाकर आतंकी पढ़ लेता है। टेररिस्ट टेनिग के दौरान ही इसकी टेनिंग भी आतंकी को दी जाती है। आम इंसान के लिए ये सिर्फ एक तस्वीर होती है लेकिन दहश्तगर्दों के लिए पूरी जानकारी। पवन दुग्गल ने कहा इन्हें रोकने के लिए कड़े कानून बनाने की ज़रूरत है। इन्होंने बाताया कि India Cyber Law 2009 के अमल में आने के बावजूद साइबर टेररिज़म पर अभी तक एक भी मुकदमा दर्ज नहीं हो पाया है।
साईबर की दुनिया जितनी तेज़ है उतना ही हमारा खुफिया तंत्र साईबर क्राईम को पकड़ने में अभी धीमा है। दुनिया भर में 1.4 billion इमेल यूजर्स हैं। इमेल यूज़ करने वालो की संख्या चाईना की कुल आबादी से भी कहीं ज़्यादा है। एक दिन में 247 billion मेल भेजे जाते हैं। हर सेकेंड के 0.00000035 वें हिस्से में एक इमेल भेजा जाता है। हर रोज़ इनकी तादाद में इज़ाफा हो रहा है। इतने मेल आईडी में कौन सा मेल आईडी दहशतगर्द का है, इसे पकड़ पाना कितना मुश्किल है, इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है। आतंकियों को पकड़ने के लिए हाईटेक स्पेशल साईबर सेल की आवश्कता है, जो इस तरह के साईबर से जुड़े आतंकी नेटवर्क पर नज़र रखे। नई नई तकनीकी और खुफिया जानकारी रखें, जिसका अभी भी हमारे देश में अभाव है। जब तक ऐसे संदेशों को पकड़ा नहीं जाएगा, तब तक आतंकियों और उनके हमलों पर अंकुश लगा पाना मुश्किल होगा।
आईटी एक्सपर्ट का मानना है कि गूगल मदद करें, तो कुछ हद तक इसे पकड़ना मुमकिन है। इसके अलावा भी याहू, हॉट मेल जैसी तमामतर वेबसाइट्स और सर्च इंजन हैं, जिससे ये पता लगाना मुश्किल कि कोई मेल आइडी एक समय में कितने देशों में इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन दहशतगर्दों की कडी तोडने के लिए स्लिपर सेल के खात्मे के लिए इस तरह के बिना सेंट किए मैसेज पहुंचाने की इस प्रकि्रया पर नजर रखनी ही होगी। तभी कोई इंटेलिजेंस एजेंसी दहशतगर्द वारदातों पर रोक लगा पाएगी। उसके स्लिपर सेल और उसकी साज़िशों की जानकारी हासिल कर पाएगी और तभी दुबारा मुम्बई पर हमला को रोका जा सकता है। वरना फिर कुछ दिनों बाद मुम्बई की तरह कोई दूसरा शहर इन आतंकियों का शिकार बनता रहेगा।