प्रमोद भार्गव
भारत एवं बांग्लादेश के बीच 25 वर्षों में पहली बार दोनों देशों के बीच बहने वाली नदियों के जल बंटवारे का नया अध्याय शुरू हुआ है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परस्पर हुई बातचीत के बाद कुशियारा नदी के संदर्भ में अंतरिम जल बंटवारा समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं। 1996 में गंगा नदी जल-संधि के बाद इस तरह का यह पहला समझौता है। इसे अत्यंत महत्वपूर्ण समझौता माना जा रहा है। यह भारत के असम और बांग्लादेश के सिलहट क्षेत्र को लाभान्वित करेगा। 54 नदियां भारत और बांग्लादेश की सीमाओं के आरपार जाती हैं और सदियों से दोनों देशों के करोड़ों लोगों की आजीविका का मुख्य साधन बनी हुई हैं। इन नदियों के किनारों पर मानव सभ्यता के विकास के साथ सृजित हुए लोक गीत और लोक कथाएं, धर्म एवं संस्कृति की ऐसी धरोहर हैं ,जो मानव समुदायों को लोक कल्याण का पाठ पढ़ाने के साथ नैतिक बल मजबूत बनायें रखने का काम करती हैं। बावजूद दोनों देशों के बीच बहने वाली तीस्ता नदी के जल बंटवारे पर फिलहाल कोई बात आगे नहीं बढ़ पाई। क्योंकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नाराजी पानी की मात्रा को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समय से ही नाराज बनी हुई है। इस मर्तबा तो वे मोदी से इतनी खफा हैं कि हैदराबाद हाउस में हुए द्विपक्षीय वार्तालाप में शामिल ही नहीं हुईं। लेकिन अब उम्मीद है.देर-सवेर तीस्ता के जल-बंटवारे का रास्ता खुल जाएगा।
नदियों के जल-बंटवारे का विवाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी विवाद का विषय बना रहा है। ब्रह्मपुत्र को लेकर चीन से, तीस्ता का बांग्लादेश से, झेलम, सतलुज तथा सिंधु का पाकिस्तान से और कोसी को लेकर नेपाल से विरोधाभास कायम है । भारत और बांग्लादेश के बीच रिश्तों में खटास सीमाई क्षेत्र में कुछ भूखंडों, मानव-बस्तियों और तीस्ता नदी के जल बंटवारे को लेकर पैदा होती रही है। हालांकि दोनों देशों के बीच संपन्न हुए भू-सीमा समझौते के जरिए इस विवाद पर तो कमोबेस विराम लग गया, लेकिन तीस्ता की उलझन बरकरार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2015 में बांग्लादेश यात्रा पर गए थे, तब ढाका में द्विपक्षीय वार्ता भी हुई थी, लेकिन तीस्ता की उलझन, सुलझ नहीं पाई थी। अब शेख हसीना की भारत यात्रा के दौरान अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर होने के बावजूद तीस्ता का विवाद यथावत बना रह जाना हमारी कूटनीतिक कमजोरी को दर्शाता है।
विदेश नीति में अपना लोहा मनवाने में लगे नरेंद्र मोदी से यह उम्मीद इसलिए ज्यादा थी, क्योंकि शेख हसीना दोनों देशों में परस्पर दोस्ती की मजबूत गांठ बांधने के उद्देश्य से भारत आती रही हैं । यह उम्मीद इसलिए भी थी, क्योंकि 2016 में मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने बांग्लादेश के साथ कुछ बस्तियों और भूक्षेत्रों की अदला-बदली में सफलता प्राप्त की थी। इसलिए उम्मीद की जा रही थी, कि तीस्ता नदी से जुड़े जल बंटवारे का मसला भी हल हो जाएगा। ऐसा माना जाता है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और केंद्र सरकार के बीच राजनैतिक दूरियों के चलते इस मुद्दे का हल नहीं निकल पा रहा है। यह विवाद 2011 में ही हल हो गया होता, यदि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अड़ंगा नहीं लगाया होता ?
तीस्ता के उद्गम स्रोत पूर्वी हिमालय में स्थित सिक्किम राज्य के झरने हैं। ये झरने एकत्रित होकर नदी के रूप में बदल जाते हैं। नदी सिक्किम और पश्चिम बंगाल से बहती हुई बांग्लादेश में पहुंचकर ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है। इसलिए सिक्किम और पश्चिम बंगाल के पानी से जुड़े हित इस नदी से गहरा संबंध रखते हैं। तीस्ता नदी सिक्किम राज्य के लगभग समूचे मैदानी क्षेत्रों में बहती हुई बंग्लादेष की सीमा में करीब 2800 वर्ग किमी क्षेत्र मे बहती है। नतीजतन इन क्षेत्रों के रहवासियों के लिए तीस्ता का जल आजीविका के लिए वरदान बना हुआ है। इसी तरह पष्चिम बंगाल के लिए भी यह नदी बंग्लादेष के बराबर ही महत्व रखती है। बंगाल के छह जिलों में तो इस नदी की जलधारा को जीवनरेखा माना जाता है। भारत और बांग्लादेष के मध्य द्विपक्षीय सहयोग की षुरूआत इस देष के अस्तित्व में आने के वर्श 1971 में ही हो गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान से अलग होने वाले स्वतंत्र राश्ट्र बांग्लादेष का समर्थन करते हुए अपनी षांति सेना भेजी और इस देष को पाक की गुलामी से मुक्त कराया। इस कारण दोनों देषों के बीच भावनात्मक संबंध हिंदुओं पर अत्याचार के बावजूद कायम हैं। 1983 में दोनों देषों के बीच एक तदर्थ जल हिस्सेदारी पर संधि हुई थी, जिसके तहत 39 एवं 36 प्रतिषत जल बंटवारा तय हुआ। इस समझौते द्वारा तीस्ता नदी क ेजल वितरण का समान आवंटन का प्रस्ताव ही नई द्विपक्षीय संधियों का अब तक आधार बना हुआ है।
इसी कड़ी में वर्ष 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डाॅ मनमोहन सिंह के बांग्लादेश दौरे से पहले इस नदी जल के बंटवारे पर प्रस्तावित अनुबंध की सभी शर्तें सुनिश्चित हो गई थीं,लेकिन पानी की मात्रा के प्रश्न पर ममता ने आपत्ति जताकर ऐन वक्त पर डाॅ सिंह के साथ ढाका जाने से इनकार कर दिया था। हालांकि तब की शर्तें सार्वजनिक नहीं हुई हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि वर्षा ऋतु के दौरान तीस्ता का पश्चिम बंगाल को 50 प्रतिशत पानी मिलेगा और अन्य ऋतुओं में 60 फीसदी पानी दिया जाएगा। ममता की जिद थी कि भारत सरकार 80 प्रतिशत पानी बंगाल को दे, तब इस समझौते को अंतिम रूप दिया जाए। लेकिन तत्कालीन केंद्र सरकार इस प्रारूप में कोई फेरबदल करने को तैयार नहीं हुई, क्योंकि उस समय केंद्रीय सत्ता के कई केंद्र थे। नतीजतन लाचार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह शर्तों में कोई परिवर्तन नहीं कर सके। लिहाजा ममता ने मनमोहन सिंह के साथ ढाका जाने की प्रस्तावित यात्रा को रद्द कर दिया था। लेकिन अब राजग सरकार ने तब के मसौदे को बदलने के संकेत दिए हैं। लिहाजा उम्मीद की जा रही थी कि पश्चिम बंगाल को पानी देने की मात्रा बढ़ाई जा सकती है। हालांकि 80 प्रतिषत पानी तो अभी भी मिलना मुश्किल है, लेकिन पानी की मात्रा बढाकर 65-70 फीसदी तक पहुंचाई जा सकती है ? परंतु नतीजा ठन-ठन गोपाल ही रहा। ममता बनर्जी राजनीति की चतुर खिलाड़ी हैं, इसलिए वे एक तीर से कई निशाने साधने की फिराक में भी रहती हैं। तीस्ता का समझौता पश्चिम बंगाल के अधिकतम हितों को ध्यान में रखते हुए होता तो ममता बंगाल की जनता में यह संदेश देने में सफल होंती कि बंगाल के हित उनकी पहली प्राथमिकता हैं। तब से अब तक ममता इस मुद्दे पर इकतरफा प्रभाव जमाए हुए हैं। नतीजतन परिणाम नहीं निकल पा रहा है।
यदि यह समझौता हो जाता है तो इसके सामरिक हित भाी भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र सामरिक दृश्टि से बांग्लादेष के उदय के समय से ही नाजुक बना हुआ है। इसलिए बांग्लादेष की आर्थिक कमजोरी के चलते बांग्लादेषी घुसपैठियों की निरंतरता बनी हुई है। बांग्लादेष में करीब 10 लाख म्यांमार से विस्थापित रोहिंग्या षरणार्थी बने हुए हैं। यह भी भारत में लगातार घुसपैठ कर सीमावर्ती राज्यों में जनसंख्यात्मक घनत्व बिगाड़ रहे हैं। करीब 40,000 रोहिंग्या भारत में अवैध घुसपैठियों के रूप में अमाद कर चुके हैं। लिहाजा तीस्ता एवं अन्य नदियों के जल बंटवारों पर कोई निर्णायक स्थिति बन जाती है तो बांग्लादेष में कृशि और जल आधारित रोजगार मिलने लग जाएंगे, फलस्वरूप भारत में घुसपैठ थमने की उम्म्मीद की जा सकेगी ? दाोनों देषों ने संधि के उपरांत संयुक्त रूप से बाढ़ और सूखे की आपदा से निराकरण के उपाय तलाषना भी आसान होगा।
कालांतर में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से व्यापार व पर्यटन को बढ़ावा देने के मकसद से बांग्लादेष से भी भारत को मदद मिलेगी। वैसे भी नरेंद्र मोदी सरकार का मुख्य मकसद व्यापार के जरिए देश का चहुंमुखी विकास ही है। लेकिन इन जरूरी समस्याओं के निदान के साथ साहित्य और संस्कृति के आदान-प्रदान की भी जरूरत है। क्योंकि एक समय बांग्लादेश भारत का ही भूभाग रहा है। इसलिए दोनों देशों के बीच तमाम सांस्कृतिक समानताएं हैं। बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल की मातृभाषा भी बंग्ला है। यहां का राश्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला‘ (मेरा सोने जैसा बंगाल) भी भारत के कवि रविन्द्रनाथ टेगोर ने लिखा है। यह बांग्ला भाशा में लिखा गया है। गुरुदेव ने इसे ‘बंग-भंग‘ आंदोलन के समय 1906 में लिखा था। तब क्रूर और कुटिल अंग्रेजों ने मजहब के आधार पर बंगाल को दो भागों में बांट दिया था। इस गीत का पवित्र उद्देष्य बंगाल के एकीकरण के लिए वातावरण निर्माण करना था। बनाने के लिए लिखा गया था। ध्यान रहे सांस्कृतिक समानताएं सांप्रदायिक सद्भाव की पृष्ठभूमि रचने का काम करती हैं और इसमें साहित्य का प्रमुख योगदान रहता है। बहरहाल, तीस्ता जल बंटवारें का समझौता हो गया होता तो दोनों देशों के बीच शांति और समन्वय के और नए आयाम खुलते ?
प्रमोद भार्गव