कहो रेणुका तुम्हारा क्या अपराध था?

—विनय कुमार विनायक
कहो रेणुका तुम्हारा क्या अपराध था
जो तुम्हारे पुत्र ने तुम्हारी गर्दन काट दी
शास्त्र कथन है पूत कपूत हो सकता
मगर माता कुमाता कभी नहीं हो सकती!

यदि ये शास्त्र कथन सही है
तो माता रेणुका कुमाता कभी नहीं हुई होगी
न कल थी न आज है ना कल होगी
मां रेणुका तुम्हारे साथ जरूर कोई छल हुई होगी!

माता रेणुका तुम सूर्यवंशी राजकन्या, वाक्दत्ता थी
एक चंद्रवंशी सम्राट सहस्त्रार्जुन माहिष्मतीधीष की,
तुम्हारे पिताश्री के यज्ञ पुरोहित वृद्ध जमदग्नि ने
गोधन स्वर्णधन के साथ तुम्हें दान में मांग ली थी!

तुम्हारे पिताश्री ने मनमसोस कर तुम्हें दान किया
तुमने भी भावी पति को भुलाकर वृद्ध जमदग्नि को
पति स्वीकार कर उनके पांच पुत्रों की जननी बनी
जिन्होंने पंचम पुत्र परशुराम से तुम्हारी ग्रीवा कटा दी!

तुम्हारे पति ने तुझपर एक मनगढ़ंत आरोप लगाकर
कि चित्रसेन गंधर्व की जलक्रीड़ा देख तुम कामासक्त हुई
ये कोई अपराध नहीं, मानव मन पर एक शंकालु की पाबंदी
उस वक्त तुम पांच युवा पुत्रों की माता थी पैंसठ वर्षीय वृद्धा होगी
और पचासी से कम नही होगा तुम्हारा अतिवृद्ध पति जमदग्नि!

क्या ये उम्र है एक वेदमन्त्र द्रष्टा भार्गव ब्राह्मण की
अपनी ब्याहता को लांछित कर पुत्र से वध कराने की
पुनः मंत्र से जीवित करने की क्या एक ढकोसला नहीं?

अगर मंत्र से मानव को मारा और जिलाया जा सकता
तो क्या जरूरी था एक बखेड़ा पूत को कपूत करने का?

यह तय था कि तुम अपने क्रूरकर्मा पुत्र
परशुराम के हाथों मार दी गई
पर तुम्हारे पुनर्जीवित होने की झूठी कथा
शास्त्र पुराणों में गढ़ ली गई
तुमसे इक्कीस बार छाती पिटवाने के लिए
बिना पति जमदग्नि के मरे ही
तुम्हारे पितृ जाति क्षत्रियों को समूल संहार के लिए
हे रेणुका! सिर्फ तुम नहीं मारी गई
तुम्हारी छोटी बहन वेणुका की भी मांग उजाड़ दी गई
तुम्हारे सपूत परशुराम के हाथों
जिसे तुम्हारे जीवित पति ने कुकर्म दुष्कर्म कहकर
पुत्र परशुराम को धिक्कारा था-
‘राम राम परशुराम तुमने व्यर्थ ही
सर्वदेवमय नरदेव सहस्त्रबाहु का वध किया!’

हे माते रेणुका! तुम्हारा पुत्र इतने से ही संतुष्ट नहीं हुआ
तुम्हारी बहन के सभी पुत्रों को एक गो हरण के लिए मारा
इतना ही नहीं तुम्हारी बहन के इक्कीस पीढ़ियों के बेकसूर
बालिग नाबालिग प्रपौत्रों को संहारा उसी एक गौ हरण के लिए
तुम्हारे पुत्र ने वंश नाश कर दिया वीर क्षत्रियों का मगर
तुम्हारा पुत्र परशुराम आज भी अजर अमर वैष्णव अवतार है!

कितना आश्चर्य है कि भार्गवों के मूल पुरुष जिस भृगु ने
विष्णु से घृणावश उनकी छाती में पद प्रहारकर भृगुलता उगाया
उसी भृगुवंशी परशुराम को शास्त्रों में विष्णुवतार घोषित किया
शस्त्र शास्त्र जिनके हाथ हो उनके लिए कुछ असंभव नहीं होता!

ऐसा प्रतीत होता है कि आरंभ में ईरानी भार्गव थे आक्रांता
भारतीय अहिंसक प्रजापालक सूर्य-चंद्र-नागवंशी क्षत्रियों का!

जो गौ धन स्वर्ण और कन्या अपहरण के ढूंढते थे बहाने
शर्याति पुत्री सुकन्या का वृद्ध च्यवन से विवाह ऐसा ही था
च्यवन भी ईरानी अहुर माजदापुत्र असुरयाजक भृगुवंशी था!

भृगु व भार्गव थे आदित्य विष्णु-सूर्य-मनुवंशी आर्यद्रोही,
असुरप्रेमी, दानवरक्षी, मनुस्मृतिकार भृगु और शुक्राचार्य,
च्यवन,जमदग्नि,परशुराम थे क्षत्रिय संहारक धनशोषक!

यद्यपि कन्या धन नहीं थी, किन्तु धन लोलुपता में
ब्राह्मणों ने कुलीन राजकन्याओं को धन बना दी थी!

रेणुका के पूर्वकाल राजकन्याओं की और बुरी हाल थी,
जब सम्राट ययाति से उनकी सुन्दर कन्या माधवी को
ब्राह्मण गालव ने दक्षिणा धनार्जन हेतु दान मांग ली!

विप्र गालव ने राजकन्या से विवाह करने के बजाए
धनार्जनार्थ वृद्ध राजाओं को उसे पारी-पारी से बेच दी,
उन राजाओं ने माधवी की देह से तबतक खेल की थी
जबतक राजकुमारी बिनब्याही मां नहीं हो जाती थी!

तत्कालीन ब्राह्मणों की पतनगाथा को ढकने के लिए
सदाचारी क्षत्रियों को अधम गौ हरणकर्ता कहे गए थे,
सम्राट सहस्त्रार्जुन के पूर्व महाराज विश्वामित्र को भी
ब्रह्मर्षि वशिष्ठ ने कामधेनु हरण का दोषी ठहराए थे!

ये लोभी पुरोहित जिन राजाओं से लाखों गौ दान लेते
उन्हें साजिश के तहत एक गौ छीनने का दोषी बनाते,
राजा द्वारा कृषि कार्य हेतु वन जलाने के क्रम में गो
यानि भूदान नहीं करने पर आश्रम जलाने का शाप देते!

ये ब्राह्मण भोले नहीं बल्कि हिंसक शस्त्र शास्त्रधारी थे
कई राजाओं के संयुक्त सलाहकार हो आपस में लड़ाते थे
खुद ये मांसभक्षी होते पर क्षत्रियों को शाकाहारी बनाते थे
शास्त्र गवाह है श्रोत्रिय ब्राह्मण मांसयुक्त मधुपर्क पीते थे
क्षत्रिय निरामिष मधुपर्कसेवी, वे युद्ध के सिवा अहिंसक थे!
वैदिक ब्राह्मणधर्म पूर्व सब जैन तीर्थंकर अहिंसक क्षत्रिय थे!

क्षत्रिय तीर्थंकरों का अहिंसावादी जैन धर्म की उद्भावना हुई
प्रथम मन्वंतर में स्वायंभुव मनुपुत्र प्रियव्रतवंशी ऋषभदेव से,
जबकि यज्ञ पशुबलिवादी ब्राह्मण धर्मारंभ सातवें मन्वंतर से,
ये वैवस्वत मनु थे विवश्वान सूर्यपुत्र पूर्वज आर्य क्षत्रियों के!

अहिंसक क्षत्रिय परम्परा स्वायंभुव मनु से चली
प्रथम स्वायंभुव मनुपुत्र ऋषभदेव से भरत व भारती
तब से भारतवासी कहलाने लगे क्षत्रिय मनुर्भरती!

क्षत्रियों की परम्परा सातवें मनु तक अविरल रही
सातवें सूर्यपुत्र वैवस्वत मनुवंशी मानव कश्यपगोत्री
क्षत्रिय आर्य हो गए सूर्यवंशी चंद्रवंशी व नागवंशी!

आज कश्यपगोत्र है क्षत्रिय विखंडित सब जातियों का,
जबकि भृगु पुलस्त्य अंगिरा गोत्र है मात्र ब्राह्मणों का,
भृगु पुलस्त्य असुर याजक थे वे आर्य क्षत्रियों के द्रोही
भार्गव परशुराम क्षत्रियहंता, पुलस्त्यवंशी रावण आर्यवैरी
वशिष्ठ आर्य याजक थे मगर क्षत्रिय पतन के आकांक्षी!

वैदिक कालीन अधिकांश याजक थे अज्ञात कुल शील के,
कहीं प्रकट हो जाते औ राज आश्रय पाकर आश्रम चलाते,
अस्त्र शस्त्र अश्व बेचते या फिर राजपुरोहित पद पा जाते
ये स्त्रीविहीन याजक जन स्थानीय स्त्रियों से संबंध बनाते
आज ये ब्राह्मण कहलाते मगर ये ब्राह्मण नारी विहीन थे!

सारे याजक पुरोहितों की उत्पत्ति वृतांत रहस्यमय थे,
अगस्त वशिष्ठ अवैध अप्सरा पुत्र, कोई द्रोणपात्र से,
सभी अधमयोनिजा शूद्रा कैवर्त्या अप्सरा से जन्मे थे,
फिर कुलीनता की दौर चली क्षत्रिय कन्या दान मिली!

ये स्त्रीविहीन ईरानी याजक बड़े क्रोधी कृतघ्न अभिमानी थे,
जिनसे कन्यादान लेते उनसे रिश्तेदारी कभी नहीं निभाते थे,
गोधन भूखण्ड पाकर भी असंतुष्ट रहते औ शापित करते थे,
ब्रह्मर्षि वशिष्ठ व राजा विश्वामित्र से भार्गव परशुराम और
राजा सहस्त्रार्जुन संघर्ष में ब्राह्मण निष्काम नहीं धनकामी थे!
—-विनय कुमार विनायक

1 COMMENT

  1. कहो रेणुका तुम्हारा क्या अपराध था? काव्य तो कामचलाउ है पर भावना पवित्र नही दिखती। काश के एम मुंशी की परशुराम रेणुका विषयक ग्रंथ का चिन्तन किए होते तो और पवित्र भावना बनती।

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