पर्यावरण

तापमान नियंत्रण की नई सोच

मनोज श्रीवास्तव ”मौन”

पृथ्वी के तापमान में वृध्दि मानव जाति के लिए चिन्ता का सबब बनी हुई है। दुनिया भर के ताकतवर देशें के कद्दावार नेता आपसी सहमति बनाकर तापमान वृध्दि के नियंत्रण पर प्रयास करने के लिए कोपेनहेगन में एकत्रित हुए थे, इस सम्मेलन में कुछ ठोस हासिल तो नहीं हुआ मगर इतना जरूर हुआ कि दुनिया का ध्यान पृथ्वी को बचाने की ओर जरूर गया।

चार्ल्स डार्विन ने आज से 150 वर्ष पूर्व ही अपनी पुस्तक में बढ़ती हुई उष्णता से होने वाले वैश्विक खतरे से अगाह करा दिया था उष्णता के द्वारा होने वाले खतरों के प्रति आज भी दुनिया भर के तमाम देश असंवेदनशील बने हुए है। वहीं भारत में सामान्य लोगों में आंशिक जागरूकता देखने मिल रही है। यहां लोगों द्वारा विभिन्न सामाजिक संगठनों के सहयोग से जनसामान्य को वृक्षारोपण के प्रति जागरूक करने और विभिन्न स्थानों पर वृक्षारोपण भी कराया जा रहा है लेकिन यह लघु प्रयास तुलनात्मक रूप से पर्याप्त नहीं हो रहा है।

वन को संरक्षित करने और वन्य जीवों की रक्षा के लिए भारत ने विभिन्न वनों को संरक्षित करके पर्यावरण संतुलन का भी प्रयास किया जा रहा है, लेकिन पर्यावरण में बढ़ती उष्णता जैविक रूप से अपने प्रभाव के रूप में जीवनों में जेनेटिक परिवर्तन करके लिंग परिवर्तन तक की स्थित उत्पन्न कर दे रहा है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण लखनऊ स्थित प्रिंस आफ वेल्स जुलोजिक गार्डेन में देखने को मिला है जहां एक मोर में नैसर्गिक रूप से परिवर्तित हो कर मोरीन बन गया था बढ़ती उष्णता से धरती पर जीवों में इस तरह के परिवर्तन हमें सुरक्षा के प्रति सोचने पर विवश कर रहे हैं।

वैज्ञानिक अध्ययनों एवं आंकलन के आधार पर पृथ्वी पर तमाम खतरे मडरा रहे हैं तापमान बढ़ने से लू लगने, मलेरिया, डेंगू तथा दिमागी बुखार जैसी बीमारियां बढ़ेगी विभिन्न देशों में खाद्यान्नों के उत्पादन में 40 प्रतिशत तक कमी हो जाएगी आर्कटिक समुद्र में बर्फ पिघलने से समुद्र तटीय क्षेत्रों में सुनामी व भूकम्प आने की सम्भावना में वृध्दि होगी वर्तमान में चिली देश भूकम्प की भयावह मार झेल रहा है।

भारतीय सरकार अपनी क्षमता के अनुरूप आगामी वर्षों में कार्बन उत्सर्जन में 25 प्रतिशत की कमी लाने का प्रयास कर रही है यह एक बहुत बड़ा कदम है वैसे कुछ छोटे-छोटे उपाय भी है जिसके द्वारा हम सभी मिलकर उष्णता को वैश्विक स्तर पर फैलने से रोक सकते हैं जैसे एयर कंडीशन का फिल्टर यदि स्वच्छ रखा जाए तो 100 किलों कार्बन डाईऑक्साइड कम हो सकती है रेफ्रिजरेटर को रसोई घर से बाहर रखने से 160 किलों कार्बन डाईऑक्साइड कम हो सकती है दिन में एक कप काफी कम पीने से 175 किलो कार्बन डाईऑक्साइड कम हो सकती है। दुनिया भर में छोड़ी जा रही कुल कार्बन डाईऑक्साइड से 40 गुना अधिक अर्थात् 300 अरब टन गैस दुनिया भर के जंगल अवशोषित करते हैं इसलिए पेड़ों का जंगल और पेड़ों का संरक्षण काफी आवश्यक हैं

एक तरफ वैज्ञानिक स्तर पर जेनेटिक परिवर्तन करके अप्राकृतिक तरीके से मानव निर्मित पेड़-पौधे के निर्माण करने में लग गये है कुछ जीयों इंजीनियरों का मानना है कि अगले 10 से 20 वर्षो के अन्दर दुनिया भर में करीब एक लाख अप्राकृतिक या मानव निर्मित वृक्ष लगा दिए जाएंगे जो कार्बन उत्सर्जन को कम करेंगे इन पौधों की वजह से प्रदूषण के स्तर में कमी आएगी, डॉ. टिम के अनुसार यह जीयो इंजीनियरिंग प्रदूषण को कम करने के लिए सर्वाधिक उपयोगी सिध्द होंगे।

* लेखक पर्यावरणप्रेमी हैं।