वीरेन्द्र जैन
मुम्बई में हुए दुखद बम विस्फोटों पर संघ परिवारियों की बाछें खिल गयीं हैं, और उनके बयान वीरों ने ही नहीं अपितु इंटरनैटियों ने भी अपने अपने हिस्से की राजनीति खेलना शुरू कर दी। लाशों पर राजनीति करने वाले इन बयानबाजों ने गोयबल्स के सिद्धांत के अनुसार बहुत जोर शोर से वे कहानियां बनानी और फैलानी शुरू कर दीं जिससे जाँच या किसी स्वीकारोक्ति से पहले ही लोग एक खास गुट और वर्ग को अपराधी मानना शुरू कर दें। मालेगाँव, अजमेर, हैदराबाद,.समझौता एक्सप्रैस बगैरह के जिन मामलों में जाँच के बाद असली संदिग्ध पकड़ में आये हैं, उन मामलों में भी पहले दुष्प्रचार के कारण कतिपय कट्टरवादी आतंकी मुस्लिम संगठनों को दोषी समझा गया था और नाकारा पुलिस भी बाहरी तत्वों के सिर पर इसका ठीकरा फोड़ कर चैन करना चाहती थी। भले ही लोग मरते रहें, और आपस में कट मरें, पर आंतरिक सुरक्षा की एजेंसियां सरल लक्ष्य तलाश कर अपनी जाँचें बन्द कर देती हैं। यह प्रवृत्ति बेहद खतरनाक है। यदि करकरे की लगन नहीं होती तो सारे लोग मेहनत से बचने वाली प्रैस को पहुँचा दी गयी पकी पकायी कहानी से गलत निष्कर्ष निकाल कर, साम्प्रदायिकों के उद्देश्यों को मदद पहुँचा रहे होते। पर एएसटी की जाँच ने दृष्य ही उलट दिया था। पिछले दिनों देर शाम को मुम्बई में घटी बम विस्फोट की घटना में तुरंत केवल इतने संकेत मिले थे कि ये बम विस्फोट उसी तरह की आई ई डेवाइस से किये गये हैं जैसे पिछले वर्षों में हुये थे जिनमें इंडियन मुजाहिदीन का हाथ पाया गया था, किंतु घटना की कुछ ही घंटों के अन्दर भोपाल में बैठे मध्यप्रदेश के भाजपा पदाधिकारी इस तरह से बयान दे रहे थे जैसे कि किसी अदालत ने फैसला सुना कर किसी को दोषी साबित कर दिया हो। उनके संकेत मिलते ही संघ परिवार के प्रचार से जुड़ी सारी एजेंसियां इसी काम में जुट गयी थीं। आतंकी घटनाएं अनजान और अज्ञात लोगों को मारने की दृष्टि से नहीं की जाती हैं अपितु इनका उद्देश्य समाज में डर और अविश्वास पैदा करके पहले से पैदा कर दिये गये मनमुटाव को दंगों में बदल देने का होता है। जाँच से पूर्व ही एक आतंकी गुट और वर्ग को नामित करके जोर शोर से उसके विरुद्ध जुट जाने वाले आतंकियों के काम में मदद कर रहे होते हैं।
अनुभवी पत्रकार रहे मध्यप्रदेश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने तुरंत बयान दिया कि “बुधवार को कसाब का जन्मदिन है इसलिए आतंकियों ने उसे ये बर्थडे गिफ्ट दी है। कसाव और अफजल गुरू को सजा होने के बाद भी आजतक फांसी पर नहीं लटकाया गया इससे आतंकियों के हौसले बुलन्द हैं। मुम्बई में बम धमाकों की घटना इसी का नतीजा है।“ कहना न होगा कि उन्होंने योजनाबद्ध ढंग से माहौल बनाना और जाँच से पहले ही निष्कर्ष थोपना शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप प्रैस ने भी उसी लीक पर दौड़ना शुरू कर दिया। इंडियन मुजाहदीन भी एक धार्मिक कट्टरतावादी आतंकी संगठन है और उसके भी हाथ होने से इंकार नहीं किया जा सकता, किंतु आतंकी संगठन अपना दबदबा बनाने के लिए घटना के बाद अपना दावा भी कर देते हैं। बिना किसी दावे और जाँच निष्कर्ष के जोर शोर से एक संगठन विशेष को इंगित कर देने से जाँच की दिशा भटक भी सकती है और असली अपराधी को लाभ मिल सकता है। यह जानना महत्वपूर्ण होगा कि कसाव का जन्मदिन 13 जुलाई नहीं अपितु 13 सितम्बर को पड़ता है, किंतु राजनीतिक दुष्प्रचारकों ने विकीपेडिया पर दो बार उसकी जन्मतिथि बदल कर उसे 13 जुलाई करने का प्रयास किया। इससे संकेत मिलता है कि इस दुर्भाग्यपूर्ण अमानवीय घटना से लाभ उठाने के इरादे किसके हैं।
आतकियों का लक्ष्य चन्द जानें लेना नहीं होता है अपितु इससे वे पूरे समाज के बीच डर और टकराव पैदा करना चाहते हैं, यदि लोग डरना और आपस में अविश्वास करना छोड़ देते हैं तो कुछ अनजान लोगों को मारकर, जिनमें किसी भी समुदाय के सदस्य हो सकते हैं, उनका लक्ष्य पूरा नहीं होता। मुम्बई वालों ने एक बार फिर संकेत दिया है कि वे आतंकियों के मंसूबों को पूरा नहीं होने देंगे। इस अवसर पर सत्तारूढ दल के नेताओं के बयान बेढंगे, बेडौल, बेहूदे रहे। भले ही इसमें कोई सन्देह नहीं है कि इस इतने बड़े बहुसंस्कृतियों वाले विकासशील लोकतांत्रिक देश में अकेले पुलिस के सहारे ऐसी आतंकी घटनाओं का स्थायी तौर पर रोकना कभी भी सम्भव नहीं हो सकता फिर भी उसके आगे हार भी स्वीकार नहीं की जा सकती। आपत्ति काल में तात्कालिक मरहम की जरूरत होती है न कि विश्लेषण की। सच तो यह है कि कट्टरता किसी भी किस्म की हो वह खतरनाक होती है और एक धार्मिक कट्टरता का जबाब दूसरी धार्मिक कट्टरता से नहीं दिया जा सकता अपितु उसका जबाब होता है एक मजबूत धर्मनिरपेक्ष समाज। दुर्भाग्य से हमारे यहाँ यह समाज कमजोर है और इस पर हर तरह की कट्टरता के हमले होते रहते हैं। जिस दिन धर्मनिरपेक्ष समाज मजबूत हो जायेगा उस दिन आतंकियों को ऐसी घटनाओं का लाभ नहीं मिलने के कारण ये हमले बन्द हो जायेंगे। इसके विपरीत जब तक कट्टरवादी धार्मिक समाज फलते फूलते रहेंगे तब तक आतंकी हमलों को रोकना कठिन रहेगा।
में बार बार कहता आया हूँ की ये सिमित धर्मनिरपेक्षता जो इस देश में सिर्फ हिन्दुओ के लिए है. ( मुसलमानों को तो सब कुछ इस्लामिक चाहिए, चाहे वो पर्सनल कानून हो, इस्लामिक बैंकिंग, या शरिया अदालते ) इस देश को खा जाएगी. जिस सर्कार का उद्देश्य बम ब्लास्ट के दोषियों को पकड़ना नहीं, अपितु अपने वैचारिक एवं राजनितिक विरोधियो को उसमे फ़साना हो, वो कभी भी इस देश की रक्षा नहीं कर सकते.
तुझसे पहले जो तखत नशीं था
उसे भी खुदा होने का इतना ही यकीं था
कांग्रेस पार्टी को आगामी चुनाव के परिपेक्ष
५०० पैर का तलुआ चाटने वाले पढ़े लिखे प्र्बुधो की आवस्यकता है ,
जो राजमाता वा उनके परिवार पर कीचड़ उछलने वालो को करारा जवाब दे सके ,
बायोडाटा के साथ दिग्विजय सिंह से शीघ्र सम्पर्क करे
नियम वा शर्ते लागु
जैन साहब दिग्गी जैसे देश द्रोह की बाते कर रहे है, शायद कांग्रेस के खास है इसलिए देशप्रेम की भावना मर गई= है
इस्वर इन्हें सत्गति प्रदान करे
बकवास लेख है इसमें से धर्मनिरपेक्षता की बदबू आ रही है
जैन साहब आप अपने प्यारे नन्हे मुन्ने कसाब को बचाने के जितने प्रयास कर सकते हैं, कर लीजिये| अभी सरकार उसी के रिश्तेदारों की है, अत: उसे मजे मारने दीजिये|
जिस दिन भारत में राष्ट्रवादी लोग सत्ता सिंहासन पर बैठेंगे, जिस दिन देश की जनता जाग जाएगी, उस दिन कसाब तो क्या, उसके संरक्षकों का भी वही हाल होगा जो मुंबई में हमारा हुआ है|
हम इसी काम में लगे हैं|
तिवारी जी को उत्तर देना बेकार है|
श्री श्रीकांत तेवरी जी ने मेरे द्वारा तसलीमा नसरीन और अस्मा जेहंगिर का उल्लेख किये जाने पर टिपण्णी की है. मेरा उद्देश्य केवल जनवादी लेखकों की सामान्य मानसिकता पर प्रकाश डालना था क्योंकि जब कभी तसलीमा नसरीन को भारत का वीसा बढ़ने की बात उठती है वामपंथी/ जनवादी लेखकों और उनके मेंटरों को मुस्लिम वोते बैंक की चिंता सताने लगती है. इसी कारन से पश्चिम बंगाल की पिछली वामपंथी सर्कार के द्वारा तसलीमा नसरीन को कोलकाता से बहार का रास्ता दिखा दिया गया. प्रारंभिक जांच से इन्डियन मुजाहिदीन व तालिबानियों द्वारा विस्फोटों का संकेत मिल रहा है ऐसे में दिग्विजय सिंह द्वारा संघी आतंकवाद का शोर मचाना कहाँ तक जायज है? क्या इससे भारत में आतंकवाद को प्रायोजित करनेवाले पाकिस्तान को दुष्प्रचार का मौका नहीं मिलता? इसके बावजूद लेखक श्री वीरेंद्र जैन द्वारा लेख की शुरुआत ही इन शब्दों से करना की, ” बम्ब विस्फोट पर संघ परिवारियों की बांछे खिल गयी हैं…” क्या दर्शाता है?क्या यह एक निष्पक्ष और ऑब्जेक्टिव टिपण्णी है? अगर अनर्गल लिखोगे तो आलोचना सुनने का माददा भी रखो. हर घटना के लिए संघ को कोसना या गली देना देश को कमजोर करके देशभक्त नागरिकों के मनोबल को गिराता है. क्रप्या कोई भी लेख लिखते समय इस बात का ख्याल रखना चाहिए की लोग पढने के बाद उसपर अपनी टिपण्णी भी करेंगे. लोग आज बेवकूफ नहीं हैं. वो सब देख कर भी यदि चुप रहता है तो इसका यह मतलब नहीं है की वो आपकी गलत बैटन को सही मानता है. उसका केवल यही अर्थ है की वो श्री जैन जैसे लोगों से बहस में अपना समय ख़राब नहीं करना चाहता.
श्री वीरेन्द्र जैन तथा उनके समर्थकों ने यह सिद्ध कर दिया है की सोनिया गाँधी राहुल गाँधी और दिग्विजय सिंह इत्यादि सेकुलरवाद का ढोंग करने वाले सत्ता के शीर्ष पर विराजमान लोग कैसा ही अनर्गल प्रलाप करें उनके पिछलग्गू हर क्षेत्र में उसी महामंत्र का प्रचार करने में कोई कसार नहीं छोड़ेंगे.सब बेचारों की अपनी अपनी मजबूरियां हैं.
श्री वीरेन्द्र जैन के इस इस आलेख में ऐंसा कुछ नहीं कहा गया जिसमें यह निरुपित हो कि तसलीमा या आस्मां जहांगीर के कृतित्व व व्यक्तित्व पर अंगुली उठाई गई हो.मुंबई में १३ जुलाई कीदर्दनाक घटना को वाकई एक खास समुदाय को निशाना बनाकर अधिकांस गैर जिम्मेदार विपक्षियों ने और मीडिया के तथाकथित अधर्मनिर्पेक्ष हिस्से ने अपनी अज्ञानता और अदूरदर्शिता का परिचय दिया है.अभी १५ जुलाई की शाम को इंदौर में प्रभाष न्यास के मंच से महामहिम उपराष्ट्रपति श्री हामिद अन्सारीजी और मद्ध्यप्र्देश के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने भी वही कहा जो वीरेन्द्र जैन कह रहे हैं.जो लोग वीरेन्द्र जैन के आलेख की नुक्ताचीनी कर रहे हैं वे इंदोरे पत्र सूचना कार्यालय से उन दोनों महानुभावों के भाषण की प्रति मंगवा कर पढ़ें.रवीन्द्रनाथ नाट्यगृह में इस अवसर पर में भी उपस्थित था.शिवराज शिंह जी ने और उपराष्ट्रपति जी जो कहा उसका सार यही था कि आतंक का कोई मजहब या रंग नहीं होता ,विना जांच पड़ताल या प्रमाण के मीडिया में धारणाओं को गड़े जाने कीपृवृत्ति से विश्वशनीयता खतरे में है.
इस लेखक को शर्म आनी चाहिए
जैन साहब आपने ही कहा है की “बोम्ब ब्लास्ट के बाद संघ परिवारियो की ……..“ तो क्या ऐसा नहीं लगता की आप कांग्रेस के …………… है. राजा को प्रजा की जान माल की सुरक्षा करनी पड़ती है. इस बारे में इतिहास गवाह है. क्या आपके अनुसार जांच एजेंसियों को भ्रम न होगा ……………………?
श्री वीरेंद्र जैन जी खुदा का शुक्र है की आपने जनवादी लेखन की राष्ट्रविरोधी परंपरा के अनुरूप ही लिखा है. कडवी सच्चाई जनवादियों को हज़म नहीं हो पाती. आप लोगों को तसलीमा नसरीन या अस्मा जहाँगीर पसंद नहीं आती. लेकिन हिन्दू संगठनों को खुल कर कोसने में ही आपकी लेखनी की सिद्धता प्रमाणित होती है. आप मध्य प्रदेश के हैं इसलिए वहीँ का उदाहरणदे रहा हूँ. सुंदर लाल पटवा जी के मुख्यमंत्री काल में वहां के गवर्नर कुंवर महमूद अली साहब थे. एक बार वो उज्जैन के प्राचीन दुर्गा मंदिर में गए. पत्रकारों ने जब उनसे पूछा की मुसलमान होने के बावजूद वो देवी के मंदिर में क्यों आये हैं ये तो बुतपरस्ती है. इस पर कुंवर साहब ने जवाब दिया की सवाल बुतपरस्ती या बुतशिकनी का नहीं है. बल्कि असल बात ये है की ये मंदिर यहाँ के परमार राजपूत राजाओं की कुलदेवी का मंदिर है और मैं परमार राजपूत राजाओं का वंशज हूँ. इसलिए मैं तो अपने पुरखों की कुलदेवी के मंदिर के हालात का जाएजा लेने आया हूँ. ये समाचार उस समय के सभी राष्तिर्य समाचार पत्रों में छपा था. लेकिन ये बातें जनवादियों को समझ नहीं आती हैं. हाँ संघ को गाली देने में दिग्विजय सिंह के बाद जनवादियों का ही नंबर आता है.
जैन साहब १ बात बतायिए माले गाव की आरोपी साधवी प्रज्ञा जेल में है जिसकी केवल मोपेड ब्लास्ट में इस्तमाल हुई थी वो भी बेचने के बाद और नार्को टेस्ट में वो निर्दोष भी साबित हुई थी वो अभी भी जेल में है और मुंबई धमाको में इस्तमाल स्कूटर के मालिक को क्लीन चित दे दी गई ऐसा क्यों ?
जैन साहब पहले अपने पूर्वाग्रहों और संकीर्णता को दूर कीजिये फिर किसी और पर ऊँगली उठाइए. ये सिमित धर्मनिरपेक्षता इस देश की सबसे बड़ी दुश्मन है.