एक कवि के मन की व्यथा

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पड़े पड़े घर में ऊब गया हूँ ,
घन चक्कर सा घूम गया हूँ |
बाहर जाओ तो पुलिस डाटती है,
घर रहो तो बीबी फटकारती है |
लिखते लिखते कलम थक गयी है ,
बुद्धि भी अब बहुत थक गयी है |
हाथो में अब पड गये है छाले ,
कागजो के भी पड गये है लाले |
अब कही मन नहीं लगता है ,
समझाने में नहीं समझता है |
पूरी रात नींद नहीं है आती ,
दिन में बीबी है धमकाती |
बच्चे भी अब तंग है करते
आइस क्रीम की मांग है करते |
आइस क्रीम अब कहाँ से लाऊ ?,
उनको अब मै कैसे समझाऊ ?
कब खुलेगा ये लॉक डाउन कमीना
अब तो मुश्किल हो गया है जीना ,
कोरोना कर रहा है सबको तंग
इसको देख देख हो रहे है दंग |
बंद पड़े है सभी कवि सम्मेलन ,
लगता नहीं है कही भी मेरा मन |
तालियों को भी अब तरस गया हूँ ,
अपने आप में अब भटक गया हूँ |
अब तो हूँ मै पिंजरे में बंद ,
उठ रहा है मेरे मन में द्वंद|
बाहर निकलने को फडफडा रहा हूँ ,
कोरोना की करनी मै भुगत रहा हूँ |

आर के रस्तोगी

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आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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