महेश दत्त शर्मा
चक्रवात चक्करदार भीषण हवाएँ हैं। ‘फ्रयान’ नरगिस, सिद्र, विलमा, रीटा, कैटरीना, इसाबेल, पलोमा आदि चक्रवातों ने दुनिया के अनेक हिस्सों में भारी जनधन की हानि की। आरंभ में चक्रवात अक्षांश एवं देशांतर के आधार पर पहचाने जाते थे लेकिन इससे कई बार भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती थी। अतः मौसम विज्ञानियों ने चक्रवातों का नामकरण आरंभ कर दिया।
कई सौ सालों तक वेस्ट इंडीज में संतोंमहापुरुषों के नाम पर चक्रवातों का नामकरण किया जाता रहा। 26 जुलाई, 1825 को पोर्टो रिको में आए एक महाभीषण चक्रवात को ‘हेरिकेन सांता एना’ नाम दिया गया।
19वीं शताब्दी के आरंभ में ऑस्ट्रेलिया में चक्रवातों के नाम भ्रष्ट राजनेताओं के नाम पर रखे जाते थे। एक ऑस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञानी ने 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को महिला नाम देना आरंभ किया। इसके बाद चक्रवातों को महिला नाम देने की होड़ आरंभ हो गई। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान चक्रवातों के महिला नामकरण का व्यापक रूप से प्रयोग हुआ।
सन 1953 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने चक्रवातों का नामकरण केवल महिला नाम पर अंग्रेजी वर्णमाला के क्रमानुसार करने का निर्णय लिया। इस क्रम में कुछ नाम इस प्रकार रखे गए अनिता, बेटसी, कार्ला, डोरा, एडेना, फ्रलोरा इत्यादि। महिला नामों का यह एकाधिकार सन 1978 में समाप्त हुआ और चक्रवातों का नामकरण महिला और पुरुष दोनों नामों के आधार पर किया जाने लगा।
आज अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर, प्रशांत महासागर इत्यादि महासागरों में उठने वाले चक्रवातों का नामकरण आने से पहले ही कर दिया जाता है। नामों की सूची पहले ही तैयार करके विश्व मौसम विज्ञान संगठन, जेनेवा के पास जमा कर दी जाती है। उसकी स्वीकृति के बाद नामसूची अधिकृत हो जाती है। अटलांटिक महासागर में उठने वाले चक्रवातों की छह साल की नामसूची तैयार रहती है। प्रत्येक वर्ष की सूची में अंग्रेजी वर्णमाला के 26 अक्षरों में से क्रमानुसार 21 अक्षरों से चक्रवातों के नाम आरंभ होते हैं। ‘क्यू’, ‘यू’, ‘एक्स’, ‘वाई’, ‘जेड’ इन पाँच अक्षरों से नामकरण करने का प्रचलन नहीं है। छह साल के तय नामों में से अगले छह सालों के लिए नाम लिए जा सकते हैं। लेकिन जो चक्रवात बहुत भयानक होता है, उसका नाम सूची से हमेशा के लिए निकाल दिया जाता है। अटलांटिकीय चक्रवातों के कुछ तय भावी नाम हैं
डॉन 2011, फ्रलोरेंस 2012, तान्या 2013, डॉली 2014 इत्यादि। सूची से हमेशा के लिए निकाल दिए गए कुछ भीषणतम चक्रवात हैं केरॉल 1954, डोना 1960, डोरा 1964, अनिता 1977, ग्लोरिया 1985, मिच 1998, आइरिस 2001, लिलि 2002, फाबियान 2003, नोएल 2007, पलोमा 2008 इत्यादि।
आठ उत्तरी हिंद महासागरीय देशों बँग्लादेश, भारत, मालदीव, म्यानमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाइलैंड भी नामों की सूची पहले ही तैयार कर लेते हैं। यहाँ चक्रवातों का नामकरण सन 2004 से आरंभ हुआ। अटलांटिकीय चक्रवातों के नामों से भिन्न, इन नामों को न तो अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम से तय किया जाता है, न किसी व्यक्तिविशेष के नाम पर और वह भी केवल एक बार। पिछला नाम अगली बार कभी इस्तेमाल नहीं किया जाता। नामों का चुनाव क्षेत्रविशेष की विशेषताओं के आधार पर किया जाता है। जब कोई चक्रवात इन देशों में आकर गुजर जाता है तो सूची में से अगला नाम अगले चक्रवात के लिए ले लिया जाता है। यहाँ आए पिछले कुछ चक्रवात हैं नरगिस, पाकिस्तान द्वारा नामकरण; रश्मि, श्रीलंका; खैमुक, थाइलैंड; निशा, बँग्लादेश; बिजली, भारत; ऐला, मालदीव; फ्रयान, म्यानमार; कृवार्ड, ओमान; लैला, पाकिस्तान इत्यादि।
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