भारतीय जनता पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र

डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री 

राम नवमी से एक दिन पहले सात अप्रेल को भारतीय जनता पार्टी ने अपना चुनाव घोषणा पत्र जारी कर दिया और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का अपना संकल्प दोहराया । लेकिन भाजपा का कहना है कि मंदिर के निर्माण में वह  सांविधानिक तरीक़े से मंदिर निर्माण के लिये प्रयास करेगी । ध्यान रहे पिछले कुछ अरसे से देश के विभिन्न वर्गों से माँग आ रही है कि राम मंदिर के निर्माण के लिये भी सभी को विश्वस में लेकर संसद उसी प्रकार पहल करें जिस प्रकार सरदार पटेल के प्रयासों से संसद ने सोमनाथ मंदिर के निर्माण के लिये की थी , जिसे शताब्दियों पहले अफ़ग़ानिस्तान के महमूद गजनवी ने खंडहर में तब्दील कर दिया था । लेकिन सोनिया माईनो गान्धी की पार्टी का कहना है कि भाजपा के इस घोषणा पत्र को तुरन्त प्रतिबन्धित कर दिया जाना चाहिये क्योंकि इसमें राम और मंदिर का ज़िक्र किया गया है । सोनिया के इन लोगों के अनुसार राम और मंदिर की बात करना घोर साम्प्रदायिकता है । ध्यान रहे सोनिया गान्धी की पार्टी की सरकार ने उच्चतम न्यायालय में बाक़ायदा हलफ़नामा दाख़िल किया था कि राम नाम का कोई व्यक्ति नहीं था । यह सब काल्पनिक गप्पें हैं । सोनिया गान्धी ने एक बार फिर भारत में राम नवमी के दिन ही राम और उनके मंदिर पर आपत्ति दर्ज की है , इससे पार्टी की भारत को लेकर लम्बी सांस्कृतिक नीति के संकेत मिलते हैं । शायद भाजपा को सोनिया गान्धी और उनकी पार्टी के इस छिपे एजेंडा का पूर्व आभास था ही , इसलिये उसने अपने चुनाव घोषणा पत्र के प्रारम्भ में ही भारत की सांस्कृतिक पहचान को लेकर एक लम्बा व्क्तव्य दिया है ।
                       इसके अनुसार -- "भाजपा मानती है कि कोई भी राष्ट्र अपने आपको , अपने इतिहास को , अपनी जड़ों को और अपनी सफलताओं को जाने बिना अपनी घरेलू या विदेश नीतियों का निर्माण नहीं कर सकता । बेहद गतिशील और वैश्वीकृत जगत में किसी भी राष्ट्र के लिये अपनी उन जड़ों को जानना जरुरी है जो उसके लोगों को सहारा देतीं हैं । "नये भारत के निर्माण के लिये और युगानुकूल परिस्थितियों के अनुसार देश को विश्व राजनीति में प्रासांगिक बनाने के लिये कार्य करते समय भाजपा का यह सूत्र मंत्र है जिसे घोषणा पत्र में शुरु में ही स्पष्ट कर दिया है । भाजपा जड़ता की पक्षधर नहीं है और न ही केवल भूतकाल को लादे प्रतिगामी राहों की ओर लालसा भरी नज़रों से देखने तक में ही सिमटी हुई है । यह प्रस्तावना स्पष्ट करती है कि भविष्य की योजना बनाते समय भी यह अपने देश की मूल पहचान को समाप्त करने की विरोधी है । दरअसल सोनिया गान्धी के लोगों और साम्यवादी टोलों के साथ भाजपा का यही विरोध है ।
                         दरअसल इस दस्तावेज़ को चुनाव घोषणा पत्र न कह कर इसे भाजपा का इक्कीसवीं शताब्दी के लिये भाजपा का संकल्प पत्र कहना ज़्यादा सही होगा । नये भारत के निर्माण के लिये भाजपा ने अपनी कार्य योजना को तो स्पष्ट किया ही है , लेकिन इसके साथ ही अपने मूलाधार के प्रति अपनी प्रतिबद्धताएँ को भी दोहराया गया है । भाजपा का यह घोषणा पत्र मोटे तौर पर विकास को समर्पित है और उस ताक़तवर भारत की कल्पना करता है जिसे कोई देश धमका अथवा डरा न सके । ऐसा भारत जो दूसरे देशों से आँख से आँख मिला कर बात कर सके । लेकिन इसका अर्थ अमेरिका की तरह दादागिरी नहीं है । घोषणा पत्र में स्पष्टकिया गया है कि भारत पड़ोसियों समेत सभी देशों के साथ शान्ति से रहना चाहता है ।
                       घोषणा पत्र में इनफलेशन रोकने , मंहगाई कम करने , भ्रष्टाचार रोकने , काले धन के प्रसार को समाप्त करने , नगरों का वैज्ञानिक तरीक़े से विकास करने , रेल नेटवर्क में तेज़ गति से चलने वाली गाड़ियाँ चलाने , प्रशासन को चुस्त दुरुस्त बनाने और उसमें पारदर्शिता लाने , शहरों में भी ग़रीब तबके के लोगों के कल्याण हित योजना बनाने , कराधान में सुधार करने , मैडीकल सुविधाएँ बढ़ाने , हर राज्य में बढ़िया स्तर के मैडीकल संस्थान स्थापित करने की बात कहीं गई है। सोनिया गान्धी के लोग घोषणा पत्र के इन्हीं अंशों को लेकर सबसे ज़्यादा छटपटा रहे हैं और बच्चों की तरह कूद कूद कर बता रहे हैं कि उन्होंने अपने चुनाव घोषणा पत्र में यह सब बातें पहले ही लिख दीं हैं । उनका कहना है कि भाजपा ने उनके घोषणा पत्र की नक़ल की है । वे अपने घोषणा पत्र को लेकर उसके पन्ने तक दिखा रहे हैं । लेकिन सोनिया गान्धी और उनके लोगों का सबसे बड़ा संकट उनकी प्रतिबद्धता और  विश्वसनीयता का है । ऐसी बातें यदि सोनिया  के लोग दिखा रहे हैं तो यह नया नहीं है । पिछले दस साल से वे भारत की सत्ता पर क़ब्ज़ा किये बैठे हैं । लेकिन उन्होंने किया कुछ नहीं । वे केवल शब्दजाल ही बुनते रहे । पिछले दस साल का शासन इसका प्रमाण है । यही कारण है कि सोनिया गान्धी की पार्टी और उनके चुनाव घोषणा पत्र की विश्वसनीयता पर ही प्रश्न चिन्ह लग गया है । प्रश्न उनकी नीयत का है । सोनिया गान्धी की पार्टी यदि भ्रष्टाचार को समाप्त करने और प्रशासन में पारदर्शिता लाने की बातें अपने चुनाव घोषणा पत्र में करेगी और व्यवहार में उनकी सरकार क्वात्रोची को बचाने के लिये पूरा ज़ोर लगायेगी तो उन पर कौन विश्वास करेगा ? भाजपा का घोषणा पत्र पिछली सरकारों से निराश हो चुके लोगों में नया विश्वास ही नहीं जगाता बल्कि भविष्य के प्रति आशा  भी जगाता है । इस विश्वास के पीछे नरेन्द्र मोदी  द्वारा पिछले दस साल में गुजरात में किया गया विकास है , उनकी तप और साधना है । मोदी ने इस घोषणा पत्र में देशवासियों से प्रतिज्ञा की है -- मैं सर्वाधिक परिश्रम करूँगा । मैं बद नीयत से कोई काम नहीं करूँगा और मैं अपने व्यक्तिगत हित और स्वार्थ को ध्यान में रख कर कोई काम नहीं करूँगा । शायद देश के इतिहास में १९४७ के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि अमीर ग़रीब के बीच खाई इतनी तेज़ी से बढ़ रही है , दौड़ में पिछड़ रहे लोगों में निराशा आना स्वाभाविक ही है । नरेन्द्र मोदी के कृतित्व ने देश के लोगों को नई आशा ही नहीं बंधाई , यह विश्वास भी दिलाया है कि इस दौड़ में वे उस आम आदमी के साथ खड़े हैं जो बंचित की श्रेणी में आता जा रहा है । देश का विकास हो , लेकिन उसका फल कुछ घरानों में न सिमट कर आम आदमी तक पहुँचे , भाजपा का घोषणा पत्र इसी ओर इंगित करता है ।
                         जम्मू कश्मीर के बारे में भाजपा ने यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाया है । जम्मू , कश्मीर और लद्दाख तीनों क्षेत्रों का समान विकास हो , इसकी व्यवस्था की जायेगी । इस प्रदेश में आम लोगों का यही आरोप है कि सरकारें जम्मू व लद्दाख के साथ विकास के मामले में सौतेला रवैया अख़्तियार करती है । राज्य के कुछ हिस्सों , जो अभी तक भी पाकिस्तान के अवैध क़ब्ज़े में है , से विस्थापित लोगों की समस्याओं का निराकरण किया जायेगा । कश्मीर घाटी से निकाल दिये गये हिन्दुओं को पुनः बसाने की व्यवस्था की जायेगी । प्रदेश में आम आदमी मानता है कि अनुच्छेद ३७० के कारण , राज्य के अल्पसंख्यकों , पहाड़ियों , गुज्जरों , बकरबालों , लद्दाखियों , बल्तियों , शियाओं , जन जातियों , महिलाओं , अनुसूचित जातियों से बहुत अधिक भेदभाव हो रहा है और इनकों मानवीय अधिकारों से भी इस अनुच्छेद की आड़ में महरुम रखा जा रहा है । भाजपा ने इस अनुच्छेद को समाप्त करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है । सोनिया गान्धी के लोग और उनकी सहयोगी महरुम शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला की पारिवारिक पार्टी नेशनल कान्फ्रेंस की नज़र में जम्मू कश्मीर के आम आदमी के कल्याण की बात करना ही घोर साम्प्रदायिकता है ।
                           भाजपा ने आन्तरिक और बाहरी सुरक्षा को पुख़्ता करने की बात कहीं है । इन दोनों क्षेत्रों में कोई लिहाज़ नहीं किया जायेगा ।  इन दोनों फ्रंटों पर सोनिया गान्धी जानबूझकर या अयोग्यता के कारण असफल रही है । देश के भीतर पाकिस्तान समर्पित आतंकवाद और चीन समर्पित माओवाद और सीमान्त पर चीनी सेना की निरन्तर घुसपैठ इसका प्रमाण है । चीन के ख़तरे को देखते हुये पूर्वोत्तर भारत में आधारभूत संरचना को मज़बूत किया जाना चाहिये था , लेकिन सरकार ने उसके पिछड़ेपन को तो छुआ नहीं अलबत्ता अलगाववादियों को खुल खेलने का मौक़ा अवश्य दे दिया । इसी को देखते हुये भाजपा ने कहा है कि सत्ता में आने पर वह सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में आधारभूत संरचना को मजबूत करेगी । हिमालयी क्षेत्रों के विकास के लिये अलग से नीति बनाई जायेगी । हिमालयी क्षेत्रों और सीमान्त प्रान्तों के लिये भाजपा की इस नीति के कारण सोनिया के आदमी तो तिलमिला ही रहे हैं , चीन भी बौखला गया लगता है । घोषणा पत्र जारी होने के तुरन्त बाद चीन ने अरुणाचल पर अपना दावा जिताया । लेकिन समाचार आ रहे हैं कि इसी मुद्दे के कारण अरुणाचल में जगह जगह भाजपा के घोषणा पत्र का स्वागत किया गया ।
                               जब से सोनिया गान्धी की पार्टी ने भारत की सत्ता सँभाली है तब से उसके तानाशाही रवैये के कारण केन्द्र और राज्यों में तनाव बढ़ता जा रहा है । कई मामलों में तो यह चरम सीमा तक भी पहुँच जाता है । यह केवल व्यवहार के कारण है या फिर पार्टी की लम्बी दूरगामी नीति का हिस्सा है , इस पर तो फ़िलहाल कुछ भी कहना संभव नहीं है । लेकिन भाजपा ने इस तनाव को कम करने के लिये कहा है कि वह सरकार बनाने पर राज्यों के सहयोग से चलेगी । केन्द्र और राज्य परस्पर पूरक होंगे न कि प्रतिद्वंद्वी । भाजपा ने इसे एक भारत-श्रेष्ठ भारत कहा है ।
                भाजपा ने देश की परमाणु नीति पर पुनर्विचार करने की बात भी कहीं है । ध्यान रहे आज से सोलह साल पहले भी भाजपा सरकार ने ही परमाणु बंम्ब का निर्माण कर देश को परमाणु क्लब में शामिल करवाया था । सोलह साल बाद फिर भाजपा इसे देश हित में बदलना चाहती है ताकि इस क्षेत्रों में कुछ गिने चुनें देशों की दादागिरी समाप्त हो । भारत की परमाणु नीति भारत के हितों को देखते हुये तय होनी चाहिये न कि अमेरिका के रुख़ को देखते हुये । भारत पहले परमाणु युद्ध का प्रयोग नहीं करेगा- इस नीति पर पुनर्विचार होगा ।
        शिक्षा के क्षेत्र में मदरसों की ओर भी भाजपा के घोषणा पत्र में विशेष ध्यान दिया गया है । मदरसों का आधुनिकीकरण किया जायेगा । उनमें युगानुकूल विषयों की पढ़ाई भी होगी । पिछले कुछ अरसे से सोनिया गान्धी की सरकार का प्रयत्न रहा है कि मदरसों को शेष समाज से अलग थलग रखा जाये । ताज्जुब तो यह कि यह मुसलमानों की सुरक्षा और सहायता के नाम पर किया जा रहा था । भाजपा का मानना है कि इस प्रकार की संकुचित मनोवृत्ति से डरी हुई फ़सल तैयार होती है । मदरसों के आधुनिकीकरण से सरकार द्वारा प्रयत्नपूर्वक दबडों में बंद करके रखे गये समाज को प्रगति के समान अवसर उपलब्ध होंगे । इसी को ध्यान में रखते हुये भाजपा ने समान सिविल कोड की बात कही है । उच्चतम न्यायालय ने भी अपनी एक टिप्पणी में समान नागरिक समहिता अपनाने की बात कहीं है । लेकिन दुर्भाग्य से कांग्रेस इसे वोट बैंक से जोड़ती है और इसका साम्प्रदायिक आधार पर विरोध करती रही है । उसकी इस साम्प्रदायिक सोच से मुल्ला मौलवी तो ख़ुश होतें हैं , लेकिन आम मुसलमान मध्यकालीन अरबी दासता में पिसता है । इसे दूर करने के लिये भाजपा ने समान सिविल कोड को अपने घोषणा पत्र का हिस्सा बनाया है । गौ संरक्षण का विशेष तौर पर उल्लेख किया गया है । उनकी हत्या रोकी जायेगी । कहने की जरुरत नहीं की सोनिया की पार्टी इसे भी घोर साम्प्रदायिकता मानती है ।
                              भाजपा के इस घोषणा पत्र , जिसे कुछ मीडियाकर्मियों ने मोदी का संकल्प भी कहा है , का मुख्य स्वर है कि भविष्य में भारत को एजेंडा निर्धारित करने वाला देश बनना है न कि पिछलग्गू देश । फिर चाहे वह आर्थिक क्षेत्र हो , सांस्कृतिक क्षेत्र हो या फिर हथियारों के उत्पादन का । सबसेबडी बात यह है कि देश के आम लोगों को यह विश्वास है कि यह काम नरेन्द्र मोदी ही कर सकते हैं । आमीन ।

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