राजनीति का केंद्रबिंदु बनती हमारी गाय

मृत्युंजय दीक्षित

दादरी कांड के बाद गाय देश की राजनीति का एक महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु उभर कर सामने आ रही है। गाय को अब हर कोई वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल करना चाह रहा है। यह तब से राजनीति के केंद्रबिंदु में आ गयी हैं जब से महाराष्ट्र में गोवध पर पुर्ण प्रतिबंध लगाने का विधेयक पारित हुआ। महाराष्ट्र विधानसभा से पारित विधेयक व राष्ट्रपति से अनुमति मिलने के बाद वहां पर तथाकथित गाय मांस का भक्षण करने वाले फिल्मी दुनिया के व अपने आप को अतिआधुनिक धर्मनिरपेक्ष बताने वाले लोगों ने मीडिया के माध्यम से हल्ला बोल दिया था और तब महाराष्ट्र के स्थानीय समाचार पत्रों  व  टिवटर के माध्यम से   हल्ला बोल दिया था। अब दादरी कांड के बाद गाय का मांसभक्षण करने वाले लोंगो को एक बार फिर मौका मिल गया है।

गाय का मांस भक्षण करने वला व्यक्ति अपने आप को सुपरहीरो बताने के लिए ऐसे बयान दे रहा है कि अब गाय का मासं ही एकमात्र भोजन रह गया है। इसे बिहार विधानसभा चुनावों में एक बड़ा मुददा भी बना लिया गया है। दादरी कांड के बाद गाय का मांसभक्षण करने वाले लोगों के आंसू नहीं रूक पा रहे हैं। सर्वोच्च नयायालय के cowसेवानिवृत्त न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू  हों या फिर शोभा डे तथा उससे आगे बढ़कर अमर सिंह सभी गाय का मांस खाने की बात कहकर अपने  आपको सबसे बड़ा सेकुलर सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं। उधर इस मामले में देश की अदालतें भी कूद पड़ी हैं। गाय पर सर्वाधिक ज्ञान का ढिंढोरा बिहार में लालू प्रसाद यादव  व  उनके चहेतों ने उगला है। लालू के चहेते रघुवंश प्रसाद ने बयान दिया है कि गाय तो साधु- संत भी खाते थे। रघुवंश प्रसाद के अनुसार यह धार्मिक ग्रंथों में लिखा है। अब पता नहीं रघुवंश प्रसाद को यह ज्ञान कहां से हो गया। आजकल सेकुलर दलों को  बहुसंख्यक हिंदू समाज की भावनाओं को अपमानित करने में बड़ा मजा आ रहा है। गाय पर सबसे बड़ा महासंग्राम जम्मू – कश्मीर में छिड़ा जहां अदालत के निर्णय  के बाद गाय समर्थक व विरोधी सड़कों पर उतर आये और यहां तक कि विधानसभा कार्यवाही के दौरान श्रीनगर के निर्दलीय विधायक की एक भाजपा विधायक ने जोरदार पिटाई भी कर दी।

दूसरी ओर अब गाय की बयानबाजी में हरियााणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खटटर भी कूद पड़ें है। पहले एक अग्रेंजी दैनिक में उनका  बयान आता है कि मुसलमानों को यदि भारत मंे रहना है तो बीफ खाना छोड़ना होगा । बस फिर क्या था सेकुलर दलों और मीडिया को एक और बहाना मिल गया  खटटर और पीएम मोदी से सवाल -जवाब करने का । हालांकि बाद में दबाव बढ़ने पर और बिहार की राजनीति के मददेनजर मुख्यमंत्री खटटर साहब को अपने बयान पर खेद जताना पड़ गया और कहाकि उन्होनें इस प्रकार कोई बयान नहीं दिया है तथा उसे मीडिया में तोड़मरोड़कर प्रकाशित किया गया है।

गाय पर बयानबाजी को लेकर सर्वाधिक चर्चा में रहे मार्कण्डेय काटजू। अभी अक अपने पूर्व सहयोगी सरकारों में बड़े आराम की जिंदगी काट रहंे थे लेकिन अब उनके यह दिन फिर से वापस नहीं आने वाले और न ही उन्हें कोई उच्चपद मिलने जा रहा है। इसलिए खाली समय में उन्होंने अपनी भड़ास बिचारी गाय पर ही निकाल दी है। आज यह लोग गाय को ऐसे खाने -पीन के बातें कर रहे हैं जैसे कि गाय का कोई मानवाधिकर ही नहीं हैं। यह लोग विद्वान तो है। लेकिन उसमंे इनकी मूर्खता की पराकाष्ठा भी झलकती है साफ ही यह भी प्रतीत हो रहा है कि जब यह लोग वास्तव में न्याय की कुर्सी पर विराजमान रहे होंगे तब इन लोगों ने देश व समाजहित में किस प्रकार के फैसले सुनाये होंगे।

उधर इन  सब गतिविधियों के बीच हिमांचल प्रदेश के हाईकोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने अपने एक आदेश में केंद्र सरकार से कहा है कि,” वह तीन माह के अंदर देशभर में गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध का कानून लागू करे।“ वहीं कई मुस्लिम धर्मगुरूओं का भी अब मानना है कि अब समय आ गया है कि गाय की हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया जाये। निश्चय ही मोदी सरकार के लिये यह समय काफी चुनौतियों भरा आ गया है। गाय समर्थक और विरोधी आमने सामने आ गये हैं और देश की अदालतें अलग हैं। यह भाजपा का नारा भी रहा है कि जब वह सत्ता में आयेंगे तो गाय वध पर पूर्ण प्रतिबंध लागू किया जायेगा। आज की तारीख में देश के कई राज्यों में गोवध पर पूर्ण प्रतिबंध लागू है लेकिन राजनैतिक कारणों से इस पर सख्ती से अमल नहीं किया जा रहा है। गायों के मांसभक्षण पर जोरदार बयानबाजी के बीच लोग यह भूल रहे हैं कि आज गाय की दुर्दशा के लिए वास्तव में कौन लोग जिम्मेदार हैं? आज देश में गायों की वास्तविक हालात बहुत ही खराब हैं। इसकी िचंता न तो मांसभक्षण करने वालों को है और नहीं उसे माता मानकर उसकी पूजा करने वालो कांे। आज हर दूसरीगया बीमार है। गायों में दूध की मात्रा कम हो रही है। अधिक दूध निकालनेके लिए इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जा रहा है। गायों को पालने वाले लोगों की संख्या बहुत कम होती जा रही है। एक समय था जब गाय एक बहुत बड़ा  आर्थिक स्रोत थी।लेकिन आज गाय की दुर्दशा जगजाहिर है। गायों की तस्करी हो रही है। अब गाय हरा चारा खाने की बजाय आम जनता द्वारा फेंका गया झूठा और बासी भोजन ग्रहण कर रही हैं। प्लास्टिक पालाीथिन आदि का सेवन भी गायें कर रहीं है। आल लोगों को गायों का धार्मिक महत्व पता तो है लेकिन उनके संरक्षण के लिए कुछ खास नहीं किया जा रहा। लोगों को यह तो पता है कि गाय का मांस खने से भरपूर प्रोटीन मिलता है लेकिन इन लोगों का यह नहीं पता कि गाय का दूध ही सबसे ताकतवर होता है और अगर यहीं हाल रहा तो आगे आने वाली पीढ़ियां गाय का दूध पीने को तरस जायेंगी।वहीं दूसरी ओर गाय का गोबर भी खेतों के लिए बेहद उपयोगी व उर्वराशक्ति से भरपूर होता है। गांवों के घरों में गाय के गोबर से लेपन किया जाता था। राजद नेता रघुवंश प्रसाद का कहना है कि साधु-संत भी गोमांस खाते थे पता नहीं उन्होंनें किस गं्रथ में पढ़ लिया है निश्यच ही उन्हें यह बात एनसीआरटी व अन्य विदेशी ज्ञान की किताबों से मिली होगी। इस काम के लिए उन्हांेनें ने माफी भी नहीं मागी है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खटटर ने गाय का मांस खाने वालों को पाकिस्तान जाने के लिए क्या कह दिया वैसे ही सोशल मीकडिया और टी वी चैनलों मंे इस प्रकार से बहस होने लग गयी की कि मानों पूरा देश  अब साम्प्रादायिकता की ज्वाला में बैठ गया है और देश के सामने कोई समस्या नहीं रह गयी है। हरयिाणा के मुख्यमंत्री के बयान को लेकर जिस प्रकार से टी वी पर बहसे की गयीं  वह भी साजिशन ही की जा रही हैं। इस प्रकार की घटनाएं विगत 65 वर्षों से होती आ रही हैं। तब सेकुलर लोग इस प्रकार की चिंता नहीं करते थे आखिर क्यों ? निश्चय पीएम मोदी के विकास के रथ व लोकप्रियता को रोकने के लिए देश के अंदर गाय के बहाने साम्प्रदायिक वातवरण को खराब किया जा रहा है।

मृत्युंजय दीक्षित

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