आप जितना रोकेंगें
हम उतना बढेंगें
सनद रहे, हम उतना बढेंगें
षड्यंत्रों से कभी संकल्प डिगे हैं
बाधाओं से कभी इरादे झुके हैं
सत्य के आगे कभी प्रपंच टिके हैं
अवरोधों का सीना चीर
हम फिर फूटेंगें, बढेंगें, लहलहाएँगे
आप जितना रोकेंगें
हम उतना बढेंगें
सनद रहे, हम उतना बढेंगें
कल हमसे मनुष्यता अर्थ पाएगी
ऊँचाई मानक तय करेगी
पीड़ित-पददलित जन न्याय पाएँगें
हर बाहरी अँधेरे को
हम अपने भीतरी उजालों से पराजित करेंगें, फिर उठेंगें
हर अँधेरे को चीर
फिर…… फिर… उठेंगें
आप जितना रोकेंगें, हम उतना बढेंगें
सनद रहे, हम उतना बढेंगें
आप बादल बन
सूरज को कब तक ढंकेंगें
कब तक उसकी चमक कुंद करेंगें
कब तक उसके व्यक्तित्व पर
कुंडली मारे बैठे रहेंगें
बादल हटेगा, अँधेरा छँटेगा
हम सूरज बन फिर दमकेंगें
अपनी अरुणिम आभा से
प्राची के मस्तक पर
फिर धर्म-ध्वजा फहराएँगे
हम फिर निकलेंगें
आप जितना रोकेंगें
हम उतना बढेंगें
सनद रहे, हम उतना बढेंगें
खुशबू को कैद में रखने की आपकी अभीप्सा-महत्त्वाकांक्षा
कभी कामयाब नहीं होगी
हर बासंती बयार के साथ
हम मलयज बन बहेंगें, फैलेंगें
हर आती-जाती साँस को
अपने होने के सुखद एहसासों से
भर जाएँगे, आप जितना रोकेंगें
हम उतना बढेंगें
सनद रहे, हम उतना बढेंगें
हम सनातनी हैं
हमारा प्रेम जितना ऊँचा होता है
संघर्ष भी उतना ही गरिमापूर्ण होगा
हम संघर्ष को भी नई ऊँचाई देंगें
और गर हम लड़ते-जूझते
मर-खप गए
तो भी व्यर्थ नहीं जाएँगें
चिता की चेतना बन
ऊँचा उठेंगें, और उठेंगें
और उठेंगें…………..
अपनी लपटों से
हरेक को कुंदन बनाएँगे
दिक्-दिगंत में प्रकाश भरेंगें
हर मौन को समवेत सस्वर करेंगें
हम अपनी चिता की राख से भी
नित नव निर्माण करेंगें
सृजन को, स्वप्नों को,
संकल्पों को
पालेंगें-पोसेगें….
और बड़ा करेंगें…
आप जितना रोकेंगें, हम उतना बढेंगें
सनद रहे, हम उतना बढेंगें ||
प्रणय कुमार