प्रधानमंत्री की असुरक्षा पर राजनीति के दुष्परिणाम

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जब पाकिस्तान की ओर से परमाणु हमले की धमकियाँ दी जारही थीं और जनता को कुछ अनहोनी होने या शत्रु देश द्वारा किसी धोखे से हमले की आशंका थी तब भारत के इन्हीं प्रधानमंत्री ने दिल्ली मेट्रो में आम आदमी की भांति यात्रा करके देश वासियों को सन्देश दिया कि निश्चिन्त रहिये, मैं आपके साथ हूँ,देश सुरक्षित है …..| चीन की धमकियों के सामने कभी न झुकने वाले प्रधानमंत्री को आज अपने ही देश की एक राज्य सरकार ने इतना आहत कर दिया कि पंजाब हवाई अड्डा छोड़ते समय उनके मुंह से निकल पड़ा ‘अपने सीएम को थैंक्स कहना कि मैं एयरपोर्ट तक जिन्दा पहुँच पाया’ | चरणजीत सिंह चन्नी प्रधानमंत्री के संदेश का उत्तर अत्यंत अमर्यादित और आपत्तिजनक भाषा में दे रहे हैं वे ‘देश के प्रधानमंत्री को ‘तू’ कहकर संबोधित कर रहे हैं | एक संवैधानिक पद पर वैठे व्यक्ति द्वारा अपने से बड़े संवैधानिक पर वैठे व्यक्ति के लिए इस प्रकार की शब्दावली,और वाक्य विन्यास ‘तुझे एक भी पत्थर पड़ा क्या’ जैसे निम्नस्तरीय संवाद लोकतंत्र का अपमान नहीं हैं क्या यह भारत के संविधान पर दोहरा हमला नहीं है ? क्या एक मुख्यमंत्री का इतना अहंकार और ईर्ष्या कि वह देश के प्रधानमंत्री के राज्य में आगमन पर न तो स्वयं प्रोटोकोल का पालन करे और न हीं अपने अधीनस्थों को करने दे और बाद में अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करे अक्षम्य अपराध नहीं है ?
यदि देश का प्रधानमंत्री राज्य में सरकार चलाने वाले दल से सम्बंधित नहीं हो तब क्या भारत का संविधान राज्य सरकार को ऐसा व्यवहार करने की अनुमति देता है ? क्या यह नैतिक रूप से भी उचित है ? स्मरण रहे देश/राज्य में भाजपा, कांग्रेस या अन्य किसी दल का नहीं, संविधान का शासन है | राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री सभी संवैधानिक पद हैं | ये स्वयं या इनके साथ मनमाना व्यवहार नहीं किया जा सकता | जिस संविधान ने राजनीतिक दलों को सरकार चलाने का अधिकार दिया है उसी ने संघीय ढाँचा कैसे चलेगा इसकी व्यवस्था भी की है | बात-बात पर संविधान खतरे में है का रोना-रोने वाले अब चीन,पाकिस्तान,खालिस्तानियों, माओवादियों सहित संसार के सभी आतंकवादियों की ओर से जिम्मेदारी लेते हुए इस बात की दुहाई दे रहे हैं कि प्रधानमंत्री की जान कोई खतरा नहीं था ! वे ट्वीट करके लेख-लिख कर या अन्य माध्यमों से देश की जनता को बता रहे हैं कि जिस फ्लाईओवर पर बीस मिनट तक प्रधानमंत्री जी को घेरकर या फंसा कर रखा गया,वहाँ भले ही इससे पहले बम धमाके हो चुके हों उन्हें इससे कोई मतबल नहीं | वे कहना चाहते हैं कि जो लोग दिल्ली में लालकिले पर तलबारें लहरा रहे थे और जो ट्रेक्टरों से पूरी दिल्ली को दहशत में डाल गए थे | जो दिल्ली में संसद का घेराव करना चाहते थे, पंजाब पुलिस ने भारत के प्रधानमंत्री को उन्हीं शांतिप्रिय प्रदर्शनकारियों के ठीक सामने ले जाकर खड़ा कर दिया कि लो करलो इनसे बात….!
जैसी कि मीडिया में खबरे आ रही हैं कि कथित आन्दोलनकारियों को पहले से ही प्रधानमंत्री के रूट की जानकारी लीक कर दी गई थी, तो प्रश्न यह है कि इन पुलिस अधिकारियों ने किसके इशारे पर ये सब किया ? क्या श्रीमती इंदिरा गाँधी जी को उन्हीं की सुरक्षा में तैनात लोगों ने नहीं मारा था ? क्या मोदी जी की सुरक्षा में भी जानबूझकर ऐसे पुलिसवालों को नियुक्त किया गया था जो कथित उपद्रियों के समर्थक या उनसे मिले हुए थे ?
देश में ऐसा कभी नहीं होगा कि सभी राज्यों और केंद्र में सदैव एक ही दल की सरकार रहे | यदि राजनीतिक विरोध का स्तर इस प्रकार गिरने लगा तो फिर किसी भी दल का कोई भी बड़ा नेता सुरक्षित नहीं रह पाएगा | यदि केंद्र और राज्य की सुरक्षा एजेंसियाँ पार्टी हितों अथवा जाति,धर्म और क्षेत्र के अनुसार सुरक्षा से खिलवाड़ करने लगेंगी तो देश का संघीय ढाँचा बिखर जाएगा |
सत्ताएँ आती-जाती रहती हैं किन्तु मर्यादाएँ जब एक बार टूटना आरंभ होती हैं तो उन्हें पुनः सीमाओं में बाँधने में बड़ा समय लगता है | सुरक्षा में चूक के कारण देश इंदिरा जी और राजीव जी को खो चुका है | क्या मोदी जी के साथ भी वैसा ही कुछ होने वाला था ? पंजाब के फिरोजपुर दौरे के समय जिस प्रकार प्रधानमंत्री को एक अराजक भीड़ के मुहाने पर ले जाकर खड़ा कर दिया गया उससे यह संदेह होना स्वाभाविक ही है |
यदि प्रधानमंत्री के पास पाँच सुरक्षा चक्र होते हैं तो इस बात में कोई सन्देह नहीं पंजाब में उन्हें पाँच असुरक्षा चक्रों में फँसाया गया | पहला असुरक्षा चक्र , प्रधानमंत्री को एक ऐसे फ्लाईओवर पर लम्बे समय तक रोके रखना,जहाँ उपद्रवी सामने खड़े हों और जहाँ पहले भी विस्फोट किए जा चुके हों | जिसे धरती व आसमान दोनों ओर से सहज टारगेट किया जा सकता था |
दूसरा असुरक्षा चक्र, लोगों को एक दम समीप तक आ जाने देना जैसा कि कुछ वीडियो में देखा जा सकता है | तीसरा असुरक्षा चक्र, कथित आन्दोलनकारियों (जिनमें खालिस्तानी और माओवादी भी हो सकते हैं)को मार्ग की सूचना देना और संख्या बढ़ाने के लिए पर्याप्त समय देना तथा उन्हें मार्ग से न हटाना | चौथा असुरक्षा चक्र, पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्र में ऐसी लापरवाही करना जहाँ फिदाइन या ड्रोन अटैक होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता | पाँचवा असुरक्षा चक्र,राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा स्वयं दूरी बनाये रखना तथा राज्य के सर्वोच्च अधिकारियों को भी प्रधानमंत्री के साथ न भेजना |
फिल्म सरकार में एक संवाद है ‘सही समय पर की गई हत्या को राजनीति कहते हैं’ ! यह तो सुप्रीमकोर्ट द्वारा गठित जाँच कमेटी की जाँच के बाद ही सामने

आएगा कि यह मोदी को मार्ग से हटाने के लिए की गई राजनीति थी या संयोगवश हुई मानवीय भूल ?
एक जागरुक नागरिक होने के नाते हम सभी को संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों की गरिमा और सुरक्षा के विषय पर गंभीर चिंतन करके ही कोई टिप्पणी करना चाहिए | ध्यान रहे हमारे बॉर्डर अभी भी सुलग रहे हैं ऐसे में अपने ही देशवासियों द्वारा प्रधानमंत्री के विरुद्ध की गई हरकतें,टिप्पणियाँ चीन,पाकिस्तान और आतंकवादियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाभ भी पहुँचा सकती हैं और समर्थक भी उपलब्ध करा सकती हैं |
डॉ.रामकिशोर उपाध्याय

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