–विनय कुमार विनायक
आत्मा की निरंतरता काया में ही नहीं
काया के बाहर भी होती
जिसकी अनुभूति सोने के बाद भी होती!
जीवित जीवंत काया के साथ जुड़े लोगबाग रिश्ते
दिन भर दिखाई देते किन्तु रात्रि या कभी
सो जाने पर स्वप्निल हो जाने पर
अचेतन आत्मा से कमोबेश हट जाते सारे के सारे!
अचेतावस्था में दिखाई देते अलग अलग चेहरे
जाने अनजाने वैसी ही स्वाभाविकता के साथ
जैसे खुली आंखों से दिखते रोज-रोज की चीजें!
स्वप्न की दुनिया के लोग
वास्तविक दुनिया के लोगों से अलग भी होते
और अलग नहीं भी होते पर स्वाभाविक सा होते
ये देखने की क्रिया चेतना अचेतावस्था में होती रहती
यही है आत्मा की निरंतरता!
जो वर्तमान काया से हट जाने पर
जुड़ जाते अवचेतन आत्मा के साथ
और इस स्थिति में वर्तमान काया के
सारे रिश्ते नाते लगभग धूमिल ओझल हो जाते
यही वजह है कि आत्मा शरीर त्यागने के साथ
हर्ष विषाद और दैहिक रिश्ते नाते से परे हो जाती!
तनिक भी परेशान नहीं होती
जितनी चिंता परेशानी दोस्ती दुश्मनी होती
निवर्तमान धारित काया की रुप आकृति से ही!
आत्मा अगर मोहग्रस्त या घृणास्पद स्थिति में होती
तो आत्मा द्वारा धारित इस काया की आकृति से ही!
आत्मा जो भी देखती इन कायिक आंखों से
वो आत्मा नहीं सिर्फ काया होती
प्रिय या अप्रिय आत्मा की आत्मा के साथ
कोई रिश्तेदारी नहीं होती
जो भी रिश्तेदारी होती इस काया की वजह से होती!
जीव जुड़ा है एक दूसरे से आत्मिक नहीं कायिक कारण से
आत्मा आत्मा से योग नहीं करती संभोग नहीं करती
यही कारण है कि जबतक कोई आकृति नहीं लक्षित होती
तबतक प्यार या घृणा की भावना जाग्रत नहीं होती!
कोई जीव, जीव का आत्मिक नहीं कायिक सम्बन्धी होता
कोई भी आत्मा किसी आत्मा की सम्बन्धी नहीं होती
काया के मिटते ही दैहिक मोह माया भी मिट जाती!
काया रहित स्वतंत्र आत्मा दूसरी स्वतंत्र आत्मा से
कभी प्यार या घृणा दोस्ती या दुश्मनी नहीं कर सकती!
आत्मा का कोई लिंग नहीं होता
आत्मा ना ही नर होती ना ही नारी होती
नर नारी की अनुभूति काया की वजह से ही होती!
काया के छूटते टूट जाते सारे कायिक रिश्ते
मगर आत्मा की निरंतरता काया में ही नहीं
काया के बाहर भी होती
आत्मा की निरंतरता पिछली धारित काया की
इच्छा वासना कामना के साथ भटकती रहती!
अस्तु देह त्याग के पूर्व
समस्त इच्छा वासना कामना त्यागने से छूट सकती
आत्मा की निरंतरता विलीन होकर आत्मा परमात्मा में!
—विनय कुमार विनायक