देश की आबरू के लुटेरे हैं यह बलात्कारी

0
148

rape
निर्मल रानी
पिछले दिनों बुलंद शहर जि़ले की सीमा में नोएडा से शाहजहांपुर जा रहे एक परिवार की मां व बेटी के साथ हुए सामूहिक बलात्कार कांड ने एक बार फिर देश में बलात्कार पर प्राय: होती रहने वाली चर्चाओं को बल प्रदान किया है। खबरों के अनुसार लगभग पंद्रह मानव रूपी दरिंदों ने एक पिता के सामने पहले लूटपाट की घटना को अंजाम दिया। तत्पश्चात उसकी बेटी व पत्नी का बलात्कार किया। इस बलात्कार कांड ने उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक की सत्ता में खलबली मचा दी है। बताया जा रहा है कि पीडि़त परिवार कार में सवार होकर नोएडा से शाहजहांपुर जा रहा था तभी कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा इस शर्मनाक घटना को अंजाम दिया गया। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस घटना के प्रति गंभीरता दिखाते हुए बुलंदशहर के एसएसपी सहित कई अन्य पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर दिया तथा राज्य के मुख्य सचिव,गृह सचिव तथा प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को इस गैंगरेप से संबंधित संपूर्ण जांच प्रक्रिया को सीधेतौर पर स्वयं अपनी निगरानी में कराए जाने का निर्देश भी दिया है।
इस घटना से चंद दिनों पूर्व ही दिल्ली की एक चौदह वर्षीय बलात्कार पीडि़त युवती ने अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया था। युवती के परिजनों के अनुसार लगभग आठ महीने पूर्व पीडि़त युवती के साथ बलात्कार हुआ था। परिजनों का आरोप है कि इस युवती के साथ बलात्कार करने के आरोपी व्यक्ति ने ही गत् मई माह में इसी युवती का पुन:अपहरण कर लिया और लगभग एक सप्ताह तक उसका यौन उत्पीडऩ किया। हमारे देश में इस प्रकार की घटनाएं आए दिन देश के किसी न किसी राज्य में होती ही रहती हैं। कहीं-कहीं तो बलात्कार पीडि़ता या तो स्वयं सामाजिक भय के कारण ऐसी घटनाओं को छुपा जाती है या फिर उसके परिवार के लोग ही समाज में होने वाली बदनामी के चलते ऐसे मामलों में पर्दा डालने में अपनी भलाई समझते हैं। बलात्कार संबंधी कई घटनाएं हमारे देश में ऐसी भी होती हैं जिनपर पुलिस विभाग संज्ञान नहीं लेता और पीडि़त परिवार के लोगों को ही बहला-फुसला कर या डरा-धमका कर वापस भेज देता है। इस प्रकार के मामले ऐसे भी होते हैं जिसमें बलात्कारी दबंग व बाहुबली होते हैं और पीडि़त परिवार गरीब व कमज़ोर। ऐसे मामले डरा-धमका कर या पैसों का लेन-देन कर दबा दिए जाते हैं। यकीनन अगर देश में होने वाली बलात्कार की सभी घटनाओं की खबरें पूरी पारदर्शिता के साथ सार्वजनिक होने लगें तो यह आंकड़ा इतना बड़ा है कि हमारा देश मात्र इन्हीं घटनाओं के कारण दुनिया में सिर उठाने के लायक भी न रहे।
जब-जब देश के किसी भी कोने में ऐसी घटनाओं की खबरें आती हैं उसी समय इन खबरों के साथ-साथ राजनैतिक दलों द्वारा अपनी सियासी सरगर्मियां भी शुरु कर दी जाती हैं। ऐसी घटनाओं के बाद विपक्षी दलों द्वारा लगाए जाने वाले आरोपों से तो ऐसा प्रतीत होने लगता है गोया सत्तापक्ष के लोगों की नाकामियों की वजह से ही ऐसी घटना हुई हो। विपक्ष इन घटनाओं का राजनैतिक लाभ उठाने के लिए सत्तापक्ष को तथा प्रदेश की कानून व्यवस्था को सीधेतौर पर दोषी ठहराने लगता है। समाज के कई स्वयंभू ठेकेदार,राजनेता तथा धर्मगुरु भी अपने-आप को ऐसी घटनाओं से दूर नहीं रख पाते और अपनी समझ,सूझबूझ,सामथ्र्य तथा अपने पूर्वाग्रह या नफे-नुकसान के मद्देनज़र वे भी तरह-तरह की बयानबाजि़यां करने लग जाते हैं। मिसाल के तौर पर कोई यह कहते सुनाई देता है कि महिलाओं को देर रात बाहर निकलने अथवा कहीं नौकरी करने हेतु आने-जाने की ज़रूरत ही क्या है? कोई कहता सुनाई देता है महिलाओं के लिबास उनके साथ होने वाली बलात्कार की घटनाओं का कारण होते हैं। कोई लड़कियों की उच्चस्तरीय शिक्षा तथा महाविद्यालयों में सहपाठी के नाते लड़कियों व लडक़ों के मध्य होने वाली मित्रता पर ही सवालिया निशान खड़ा कर देता है। परंतु वास्तव में इनमें से कोई भी बात ऐसी नहीं है जो बलात्कार का कारण बनती हो तथा जिसकी वजह से बलात्कारी मानसिकता रखने वाले लोगों को प्रोत्साहन मिलता हो।
हमारे देश में बलात्कार के आरोप बुलंदशहर कांड की तरह केवल घुमंतरू या आवारा िकस्म के लोगों पर ही नहीं लगते। बल्कि देश के अनेक स्वयंभू धर्मगुरू,कई उच्चाधिकारी,नेता,संपन्न व प्रतिष्ठित लोग यहां तक कि हमारे देश की सेना व पुलिस विभाग के लोगों के नाम भी इस प्रकार की शर्मनाक घटनाअें में सामने आ चुके हैं। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि बलात्कार का संबंध किसी विशेष तबके अथवा श्रेणी के लोगों तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह एक ऐसा मानसिक रोग है जिसका शिकार कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी वर्ग,श्रेणी अथवा ओहदे का क्यों न हो, हो सकता है। बलात्कार का संबंध गरीबी-अमीरी,धर्म-जाति, रंग-भेद तथा शिक्षित व अशिक्षित जैसी श्रेणियों से कतई नहीं है। यह एक ऐसा मानसिक रोग है जो बलात्कारी व्यक्ति अथवा इस दुष्कर्म में शामिल सभी लोगों को दरिंदगी की किसी भी सीमा तक ले जा सकता है। मिसाल के तौर पर पूर्वाेत्तर में कुछ सैनिकों द्वारा एक महिला के साथ न केवल बलात्कार किया गया था बल्कि उसके गुप्तांग में पत्थर तक ठूंस दिए गए थे। ऐसी रुग्ण मानसिकता रखने वाले लोगों के बारे में आिखर क्या राय कायम की जानी चाहिए? इसी प्रकार दिल्ली का निर्भया कांड भी पूरे देश के लोगों के रोंगटे खड़े कर गया। किस प्रकार दरिंदों ने निर्भया के साथ बलात्कार किया तथा उसके शरीर के निजी हिस्सों को इस दरिंदगी के साथ क्षति पहुंचाई कि आिखरकार उस युवती ने दम तोड़ दिया।
इसमें कोई शक नहीं कि ऐसी घटनाएं केवल कोई घटना या जघन्य अपराध मात्र नहीं हैं बल्कि इन घटनाओं ने हमारे देश के माथे पर कलंक लगाने का काम किया है। हमारे देश में ऐसी ही मानसिकता रखने वाले दरिंदों द्वारा केवल भारतीय महिलाओं के साथ ही ऐसी घटनाएं अंजाम नहीं दी जाती बल्कि महिलाओं की अस्मिता के भूखे इन दरिंदों द्वारा विदेशी महिलाओं को भी नहीं बख्शा जाता। देश की अस्मिता व प्रतिष्ठा को कलंकित करने वाले ऐसी मानसिकता के लोग बजाए इसके कि अपने देश में किसी मेहमान पर्यट्क की सहायता करें, किसी विदेशी युवती के मददगार साबित हों तथा उसे सही रास्ता बताने की कोशिश करें बजाए इसके ऐसे लोग उसकी आबरू से खेलने तथा उसके साथ लूटपाट करने की जुगत में लग जाते हैं। दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद बलात्कारियों के विरुद्ध गुस्से की चिंगारी पूरे देश में भडक़ उठी थी। इस घटना ने तो अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान भी अपनी ओर इस कद्र आकर्षित किया था कि कई देशों में भारत में होने वाली बलात्कार की घटनाओं के विषय में विशेष रिपोर्ट एवं संपादकीय प्रकाशित किए गए थे। कुछ देशों ने अपने देश के भारत जाने वाले पर्यट्कों के लिए स्वयं को सुरक्षित रखने संबंधी गाईडलाईन भी जारी की थी।
सवाल यह है कि निर्भया,बुलंदशहर अथवा रोहतक में नेपाली मूल की लडक़ी के साथ हुई बलात्कार जैसी घटनाओं के चर्चा में आने के बाद खासतौर पर टीवी चैनल्स द्वारा ऐसी घटनाओं से संबंधित खबरें प्रसारित करने के बाद शासन-प्रशासन,नेता तथा सामाजिक संगठन कुछ दिनों तक अपनी सक्रियता दिखाते तो नज़र आते हैं। परंतु इनके पास इस समस्या से निपटने का न तो कोई स्थाई समाधान नज़र आता है न ही इस दिशा में यह लोग कोई स्थाई कदम उठाते या कोई सकारात्मक प्रयास करते दिखाई देते हैं। पिछले दिनों हमारे देश की एक अदालत ने बलात्कार से संबंधित एक फैसले में एक बलात्कारी को केवल इसलिए बरी कर दिया क्योंकि वह हमारे देश के कानून के मुताबिक नाबालिग था। इस फैसले के बाद ही देश में यह बहस छिड़ी थी कि आिखर बालिग व नाबालिग़ होने का निर्धारण कैसे किया जाए। जो युवक बलात्कार कर सकता है वह नाबालिग की श्रेणी में कैसे आ सकता है? आदि-आदि। देश में एक बड़ा तबका ऐसा भी है जो बलात्कारियों के लिए फांसी की सज़ा की मांग करता है। उधर हमारा कानून बलात्कार से लेकर जघन्य हत्याकांड तक में सज़ा-ए-मौत देने से बचने की कोशिश करता है तथा सज़ा-ए-मौत को रेयरआफ द रेयरेस्ट अपराध के लिए सुरक्षित रखने की हिमायत करता है। देश के धार्मिक प्रतिष्ठानों तथा सामाजिक संगठनों द्वारा भी इस दिशा में राष्ट्रीय स्तर पर कोई व्याप्क मुहिम छिड़ती अथवा छिड़ी नज़र नहीं आती। न ही हमारे देश के विद्यालयों में बच्चों को ऐसी कोई शिक्षा दी जाती है जिससे हमारे बच्चों में बलात्कार जैसी घटनाओं के प्रति भय पैदा हो तथा वे ऐसी घटनाओं से दूर रहने की कोशिश करें।
अत: यह कहना गलत नहीं होगा कि इस विषय पर जब तक पारिवारिक,सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षणिक स्तर पर देश में बच्चों को जागृत नहीं किया जाता तथा अपने बच्चों को अन्य बच्चियों व युवतियों के साथ अपने ही परिवार के सदस्य के रूप में पेश आने की शिक्षा नहीं दी जाती तब तक मात्र कानून बनाने या देवी पूजन जैसी धार्मिक कारगुज़ारियों से ऐसी घटनाओं को कतई रोका नहीं जा सकता। और इस प्रकार के मानसिक रोगी तब तक हमेशा किसी न किसी महिला के साथ-साथ देश की आबरू को भी इसी प्रकार लूटते रहेंगे।
निर्मल रानी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress