कोरोना की अंधेरी सुरंगें: भारत की संजीवनीरूपी रोशनी

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-ःललित गर्गः-

कोरोना महाव्याधि एवं कहर के डरावनी तस्वीरें एवं आंकड़े एवं इनके बीच पूरी दुनिया को वायरस पर काबू पाने के लिए एक वैक्सीन का इंतजार है। सुरक्षित और कारगर वैक्सीन पूरी दुनिया के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं होगी। यही संजीवनी न केवल मानव अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरों के बीच रोशनी बनेगी बल्कि जीवन-रक्षा का माध्यम भी बनेगी। यह संजीवनी अस्त-व्यस्त हो गयी जीवनशैली को पटरी पर लाएगी, यही ध्वस्त हो गयी अर्थव्यवस्थाओं में नये प्राण फूंकेगी और लोगों की छीन चुकी मुस्कान कों लौटायेंगी। संजीवनी यानी वैक्सीन। इसी वैक्सीन की प्रगति एवं शीध्र गति के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अहमदाबाद, पुणे एवं हैदराबाद की यात्राएं की है।
समूची दुनिया कोरोना से निराश एवं हताश हो गये लोगों के जीवन में स्वास्थ्य और जीवन-सुरक्षा की खोज में जुटी हैं। दुनिया भर में वैक्सीन के अंतिम ट्रायल चल रहे हैं। भारत में भी वैक्सीन का तीसरे और अंतिम ट्रायल हो रहा हैं। भारत में वैक्सीन के मोर्चे पर अच्छी एवं खुशी देने वाली खबरें मिल रही हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वैक्सीन के मोर्चे को खुद सम्भाल लिया है। उन्होंने एक ही दिन में अहमदाबाद में जाइडस कैडिला, हैदराबाद में भारत बायोटेक और पुणे में सीरम इंस्टीच्यूट का दौरा कर वैक्सीन की तैयारियों का जायजा लिया। उनका उद्देश्य देश में टीकाकरण में आने वाली चुनौतियों, तैयारियों और रोडमैप जैसे पहलुओं की जानकारी प्राप्त करना था। प्रधानमंत्री के दौरेे के काफी सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कम्पनी पुणे स्थित सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ आदर पूनावाला का कहना है कि कोरोना वैक्सीन में देरी की कोई सम्भावना नहीं है।
कोरोना महामारी के बढ़ते संक्रमण के दौर में वैक्सीन का जल्दी आना, उसका कारगर होना, उसका जन-जन तक पहुंचना और उससे जीवन-रक्षा के काम में गति ज्यादा जरूरी हो गया है। क्योंकि कोरोना ने अनेक अपनों को हमसे छीन लिया है। कोरोना की तीसरी लहर ने तो कहर ही बरपा रखा हेै। ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने तो बहुत पहले ही कहा भी था कि यह एक ऐसी महामारी है, जो हमसे हमारे तमाम अपनों को छीन सकती है, लेकिन ऐसी चेतावनियां तब तक पूरी तरह असर नहीं करतीं, जब तक हमारी चमड़ी में उनका डंक न प्रविष्ट कर जाए। आज देश का ऐसा कोई परिवार नहीं है, जिसका कोई सदस्य इसका शिकार न हुआ हो। अब तक समूची दुनिया में 14 लाख से अधिक लोग इसका शिकार हो चुके हैं और लगभग छह करोड़ संक्रमित पाए गए हैं। खुद हमारे अपने देश में कोरोना से संक्रमित लोगों का आंकड़ा एक करोड़ की भयावह गिनती क्रॉस करने वाला है।
सर्दी गहराने के साथ कोरोना की तीसरी लहर की मारक क्षमता बढ़ते हुए डरावने एवं खौफनाक दृश्य दिखा रही है। विडम्बना तो यह है कि यह महामारी ज्यों-ज्यों खतरनाक एवं जानलेवा होती गयी त्यों-त्यो हम और हमारी सरकारें अधिक लापरवाह, उदासीन एवं संवेदनहीन होती गयी है। अस्पतालों के बिस्तर भरते जा रहे हैं और एक बार फिर चिकित्सा का संकट विकराल हो रहा है। दिक्कत अकेले कोरोना के मारों की नहीं है। पहले से अन्य रोगों से जूझ रहे लोगों के लिये भी कोरोना कहर बनी है। आवश्यक सर्जरी रुकी पड़ी हैं, आउटडोर पर डॉक्टर देखने से कतरा रहे हैं और मधुमेह या रक्तचाप जैसी बीमारियां तक जानलेवा साबित हो रही हैं। कोरोना पीड़ितों का तो तब भी रिकॉर्ड सहेजा जाता है, पर इन बीमारियों से मरने वालों का कोई रिकाॅर्ड भी नहीं है। सच यह है कि आपदा से अघियाए इन दिनों में जितने कोरोना से मरे, उससे कहीं ज्यादा इंसानों को अन्य व्याधियां लील गईं।
इन जटिल एवं हताश माहौल में सरकारों को कोसने से काम नहीं चलेगा, सरकारों के हाथ में भी कोई जादूई चिराग नहीं है। केंद्र की सरकार हो या राज्य सरकारें, सबने मिलकर, जो हो सका, अच्छा किया। भले ही कुछ सरकारों ने इस महामारी एवं असंख्य लोगों की जीवन-रक्षा जैसे मुद्दे में भी राजनीति करने एवं राजनीतिक लाभ तलाशने की कोशिशें की है। जबकि कुछ सरकारों ने राजनीतिक लाभ से ऊपर उठकर मानवीयता का उदाहरण प्रस्तुत किया। अपनी सारी शक्ति इस महामारी से जन-जन को बचाने एवं उनके उपचार के उपक्रमों में नियोजित कर दी। उत्तर प्रदेश का उदाहरण सामने है। मार्च 2020 में कोरोना की जांच के लिए पूरे प्रदेश में सिर्फ एक प्रयोगशाला थी। उन दिनों इस रोग के इलाज के लिए अस्पताल तक उपलब्ध न थे। आनन-फानन में वेंटीलेटर्स, बिस्तर और संबंधित दवाओं की आपूर्ति की गई। डॉक्टरों के साथ पैरा-मेडिकल स्टाफ को प्रशिक्षित किया गया। यही वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन तक ने उत्तर प्रदेश सरकार की सराहना की है।
अन्य प्रादेशिक सरकारों ने भी ऐसा ही अनूठा करने की कोशिश की है, फिर भी इतनी बड़ी आबादी में दिन-रात पैर पसारती महामारी से निपटना आसान नहीं है। सरकारों के सामने राजस्व की चुनौती भी रही है, ताकि लोगों का पेट भरा जा सके। जीवन को विषाक्त बनाने वाले और अंधेरी सुरंगों में ले जाने वाले महामारी के तत्व अभी भी हमारे जीवन-परिवेश में कुंडली मारे बैठे हुए हैं। इनसे छुटकारे का प्रयत्न ही कोरोना से मुकाबला करने एवं नये जीवन की शुरूआत हो सकती है। जिसके लिये भारत में उम्मीदें बंधी है, वैक्सीन रूपी रोशनी दिखाई दे रही है। वातावरण में वैक्सीन आने की आहटें सुकून दे रही हैं और उम्मीद है कि अगले साल की शुरुआत में यह लोगों तक पहुंचनी शुरू हो जाएगी, पर टीकों से ही सब कुछ सुधर जाएगा, इसकी गारंटी कोई नहीं ले सकता। कोरोना इंसानों की जीवन-शैली पर लंबा प्रभाव डालने जा रहा है। इसलिये लम्बे समय तक आम लोगों को सावधान एवं सर्तक रहना होगा, माॅक्स का उपयोग एवं सामायिक दूरी का पालन करते हुए कोरोना लाॅकडाउन से पनपी जीवनशैली को ही आधार बनाकर जीना होगा। इस महामारी से जूझने के लिए हमें खुद को बदलना होगा, पर क्या ऐसा हो रहा है? तीज-त्योहार, शादी-ब्याह, घूमने-फिरने, मनोरंजन, मन्दिर-दर्शन और सामाजिक रस्म-ओ-रिवाज में हम सुरक्षा उपायों एवं सरकारी निर्देशों की अनदेखी कर रहे हैं, जो न केवल स्वयं के लिये बल्कि दूसरों के लिये जानलेवा साबित हो रही है।
प्रधानमंत्री न केवल भारत के लोगों को बल्कि दुनिया को कोरोना महामारी से मुक्ति की बात सोच रहे हैं। भारत वैक्सीन बनाने के करीब पहुंच चुका है। इसलिये अब उसके वितरण एवं उपयोग पर चर्चाओं का बाजार गर्म है। सबसे पहले वैक्सीन का वितरण भारत में किया जाएगा और अन्य देशों में सप्लाई के बारे में बाद में सोचा जाएगा। भारत बायोटेक इंटरनेशनल कोवैक्सीन एव जाइडस बायोटैक की स्वदेशी वैक्सीन विकसित हो रही है जिसके तीसरे चरण में परीक्षण में उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं। अन्य कम्पनियां भी वैक्सीन पर युद्धस्तर पर काम कर रही है। सभी कम्पनियां वैश्विक मानदंडों का पालन कर रही हैं। यद्यपि अमेरिका, रूस अपनी वैक्सीन की 90 फीसदी सफलता का दावा कर चुके हैं, लेकिन अभी अंतिम निष्कर्ष आने बाकी हैं। कोई भी वैक्सीन बनाने की प्रकिया जटिल होती है। इन जटिलताओं से भारत की कम्पनियों ने संघर्ष करते हुए सफलताएं पाई हंै, वे अभिनन्दनीय हंै।
भारत की गिनती जैनरिक दवाओं और वैक्सीन की दुनिया में सबसे बड़े निर्माताओं के रूप में होना हमारे लिये गौरव की बात है। भारतीय वैक्सीन कम्पनियां दूसरों से काफी आगे हैं। अकेले सीरम इंस्टीच्यूट 40 से 50 करोड़ डोज बना सकती है। अब वायरस के अंधकार में रोशनी की किरणें दिखाई देने लगी हैं और लोगों को उम्मीद है कि भारत एक सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन बना लेगा। रूस ने भी स्पूतनिक-वी भारत में बनाने के लिए अनुबंध कर लिया है। भारत के सामने अनेक चुनौतियां है, लेकिन इन चुनौतियांे से पार पाते हुए भारत अगस्त-सितम्बर तक भारत 30 करोड़ लोगों को वैक्सीन देने की स्थिति में होगा। नीति आयोग ने हर गांव और पंचायत स्तर पर वैक्सीन पहुंचाने के लिए पूरी योजना तैयार कर ली है। भारत की वैक्सीन यदि सुरक्षित और कारगर हुई तो फिर भारत पूरी दुनिया को संजीवनी देगा। भारत ने विश्व को योग, आयुर्वेद, अध्यात्म एवं अहिंसा दिया है, इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए वैक्सीन रूपी संजीवनी भारत देने को तत्पर है। निश्चित ही वैक्सीन के मामले में भी भारत आत्मनिर्भर बनेगा और समूची दुनिया के लिये नये जीवन का अभ्युदय बनकर प्रस्तुत होगा।

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