दिल्ली पुलिस है गजेंद्र की मौत की जिम्मेदार

– प्रवीण दीक्षित-

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जंतर-मंतर में बुधवार को हुई आम आदमी पार्टी की रैली और उसमें हुई राजस्थान के दौसा निवासी किसान गजेंद्र सिंह के दिनदहाड़े सार्वजनिक तौर पर आत्महत्या करने पर समूचे मुल्क में बहस चल रही है। फिर बात चाहे न्यूज चैनल्स की हो या फिर सोशल मीडिया की। हर तरफ चर्चाओं का जोर है। एक साथ कई सवाल किये जा रहे हैं।

इसमें सबसे प्रमुख है जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल अपने मंत्रिमंडल के सभी मंत्रियों के अलावा पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ भाषण दे रहे थे किसी ने कार्यक्रम रोककर गजेन्द्र को बचाने का प्रयास नहीं किया। लेकिन अफसोस कि गजेंद्र की मौत की जों वजहें व तर्क दिए जा रहे हैं उनमें सिर्फ और सिर्फ सियासत हो रही है। लेकिन मुझे यकीन है कि चंद ऐसे लोग भी हैं जो अब भी इस मुद्दे पर तटस्थ होकर सोचते हैं। ऐसे ही कुछ लोगों के लिए है यह लेख। इस पूरे प्रकरण में अगर कोई सबसे ज्यादा दोषी है तो वह है दिल्ली पुलिस। जी हां, दिल्ली पुलिस। वह दिल्ली पुलिस जो मूकदर्शक बनी रही। वह दिल्ली पुलिस जो केंद्र में बैठे अपने राजनीतिक आकाओं को नाराज न करने के लिए अपने काम से भागते हैं। वह दिल्ली पुलिस जो किसी विदेशी मुल्क के मुखिया के देश में आने पर उसकी खिदमत में दिन-रात एक कर देती है। वह दिल्ली पुलिस जो यह भूल चुकी है कि पुलिस का काम इस देश और जनता की जान माल की हिफाजत करना है।

वह दिल्ली पुलिस जिसके दिलेरी के किस्सों पर आएदिन मेडल सजाए जाते हैं, लेकिन अफसोस कि दिल्ली पुलिस के जिन जवानों के गले में बहादुरी के मेडल सजते हैं, गजेंद्र की मौत के वक्त वही जवा न कायरों की तरह मौत को किसी तमाशे की तरह देखते रहे। गजेंद्र के गले में फांसी का फंदा देखते वक्त उन जवानों का दिल नहीं पिघला जो अपने गले में हंसते-हंसते बहादुरी का मेडल पहन लेते है। अगर यही है दिल्ली पुलिस तो वही गजेंद्र की मौत की जिम्मेदार है।

आप सोच रहे होंगे कि मैं बार-बार दिल्ली पुलिस को कटघरे में क्यों खड़ा कर रहा हूं? इसकी वजह यह है कि दिल्ली पुलिस को कहीं अन्य राज्य की पुलिस एक स्पेशल नजरिये से देखा जाता है। स्पेशल नजरिये का सीधा मतलब है दिल्ली पुलिस पर राज्य सरकार का नियंत्रण न होना। गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी की रैली में गजेंद्र की आत्महत्या के बाद विरोधी पक्ष मुखर होकर सामने आया। लेकिन ऐसी मुखरता का क्या मतलब जिनसे किसानों की जान भी न बचाई जा सके? मोदी-केजरीवाल खेमा सामने आया। मोदी खेमा गजेंद्र की मौत का जिम्मेदार केजरीवाल को ठहरा रहा है तो वहीं केजरीवाल खेमा नरेंद्र मोदी की उस पटना रैली को सामने लेकर आया है जिसमें ब्लास्ट हुआ था।

केजरीवाल खेमे का तर्क है कि क्या मोदी ने उस वक्त मंच से कूदकर लोगों को बचाने की कोशिश की थी? जवाब है नहीं। लेकिन जहां तक मेरा मानना है तो पटना रैली और जंतर मंतर रैली में एक समानता है। वह यह है कि दोनों शहरों और राज्य की पुलिस का मूकदर्शक बने रहना। पटना में बम ब्लास्ट हुए, निश्चित रूप से पुलिस की नाकामी का एक उदाहरण है।

गांधी मैदान में रैली के एक रात पहले नीतीश कुमार ने राज्य के पुलिस महानिदेशक अभयानंद को पूरे गांधी मैदान को सैनिटाइज करने का निर्देश दिया था। लेकिन उस रात आईपीएस मेस में दिवाली पार्टी चल रही थी और बिहार पुलिस के अला अधिकारी और उनके नीचे के अधिकारियों में एक सामान्य धारणा थी कि अगर मोदी की रैली की सुरक्षा को लेकर उन्होंने ज्यादा गंभीरता दिखाई तो शायद राजनैतिक बॉस मतलब नीतीश कुमार नाराज हो जाएंगे। इसलिए पुलिस ने कहीं कोई व्यवस्था नहीं की थी जिसके कारण एक नहीं बल्कि कई बम गांधी मैदान में मिले और कई ब्लास्ट हुए। जिसमें सात लोगों की जान गई।

कुल मिलाकर जंतर-मंतर में हुई आम आदमी पार्टी की इस रैली की सबसे बड़ी असफलता यह है कि जिस मकसद से यह रैली आयोजित की गई थी, गजेंद्र की मौत के
साथ उसका भी दम घुट गया। बात किसान हितों की है। बात नैतिकता की है। बात केंद्र व राज्य सरकार की नाकामियों की है। मुल्क की आजादी के छह दशक बाद
भी किसान अगर मौत को गले लगा रहा है तो इसका जिम्मेदार कोई व्यक्ति विशेष भला कैसे हो सकता है?

आज तक ऐसी व्यवस्था या ऐसी नीतियां क्यों नहीं बन पाईं जो कम से कम किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर न करें। इसमें विफलता किसकी है? किसानों की आत्महत्या के आंकड़ों की संख्या में तो इजाफा हो गया लेकिन दिल्ली पुलिस की नैतिकता के नाम पर जो निष्क्रियता हमेशा से बनी है उसमें सुधार न जाने कब होगा? होगा भी या नहीं होगा। गजेंद्र की मौत यह सवाल छोड़ गई है। दिल्ली पुलिस के लिए, सिस्टम के लिए और हम सबके लिए।

2 COMMENTS

  1. पुलिस को पूर्णतः दोष देना उचित नाही. मान लीजिये की पुलिस उसे पकड़ने पेड़ पर चढ़ती और वह घबराकर पेड़ से कूद जाता और उसे गंभीर चोटें पहुंचती या घबराने से उसे दिल का दौर पड़ता तो आप किसे दोष देते?आप श्रीमान केजरीवाल से पूछिये की वे किसे दोष देते?बिजली कनेक्शन जोड़ने के लिए सत्यवादी हरीशचंद्र के अनुयायी खम्बे पर चढ़ सकते हैं,सोमनाथजी क़ानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए रात्रि दो बजे गश्त पर जा सकते हैं तो ये या इनका कोई सुरमा पेड़ पर चढ़कर जीतेन्द्र को बचा नहीं सकता ?क्या आम आदमी जो अन्ना हजारे के आंदोलन के गर्भ से उत्पनं हुआ और अब मुख्यमंत्री बना वह इस बात का आवाहन नहीं कर सकता ,की मैं अपना भाषण रोकता हूँ ,पाहिले उस आदमी को सकुशल नीचे उतारो. भाषण क्या इतना आवश्यक था?हर बात में स्वयं को पाक ,स्वच्छ ,बताना और हर किसी को दोष देना कहाँ तक न्यायोचित है?

  2. AAP की रैली का मुकाबला आप मोदी की पटना रैली से कर रहे हैं
    फिर AAP और बीजेपी में क्या फर्क रह गया?
    केजरीवाल रैली स्थगित भी तो कर सकते थे….
    बीजेपी कांग्रेस को दोष देने की बजाय इस बात पर दुःख जता सकते थे कि शर्म की बात है हम सब राजनेताओं के लिये किसान जान दे रहा है
    और हम उसकी मदद नहीं कर पा रहे हैं….

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