लिमटी खरे
कोरोना कोविड 19 के संक्रमण पर पहले थाली और ताली, फिर टोटल लाक डाउन 01 फिर टू, अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा सोशल डिस्टेंसिंग को बहुत ही सरल शब्दों में लोगों को समझाने का प्रयास किया है। दरअसल, जरूरत इसी की महसूस की जा रही थी कि लोगों को यह बताया जाए कि जो भी हो रहा है उनके स्वास्थ्य की चिंता करते हुए ही किया जा रहा है। देश भर में शासन प्रशासन के द्वारा इस मामले में संजीदगी से प्रयास शायद नहीं किए जा रहे थे।
दरअसल, गांव और ग्राम पंचायत की अपनी दुनिया होती है। देश की सामाजिक संरचना, राजनैतिक परिदृश्य, प्रशासनिक प्रतिबद्धताओं के बीच ग्राम पंचायतें अपनी अलग भूमिका निभाती हैं। हर ग्राम पंचायत का अपना स्वरूप, सियासी मापदण्ड, जटिलताएं होती हैं, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।
देश भर में ग्राम पंचायतों को हर बार बिसार दिया जाता है, पर 24 अप्रैल को जब पंचायत राज दिवस मनाया जाता है तब ग्राम पंचायतों की सुध ली जाती है। इस दिन सियासी कर्णधारों के द्वारा ग्राम पंचायतों की शान में कशीदे अवश्य गढ़े जाते हैं, पर दूसरे ही दिन से सब कुछ कागजी ही नजर आने लगता है।
यह संभवतः पहला ही मौका होगा जब पंचायती राज दिवस पर देश के किसी प्रधानमंत्री ने ग्राम पंचायतों को संबोधित करते हुए सारगर्भित उद्बोधन दिया गया हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 24 अप्रैल को ग्राम पंचायतों से सीधा संवाद किया गया। उनके द्वारा देश भर की लगभग ढाई लाख से ज्यादा ग्राम पंचायतों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए इस बात को रेखांकित किया है कि कोरोना के खिलाफ चल रही जंग का गांव के सतर पर आगाज किया जा सकता है।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि कोराना का कहर लगभग डेढ दो माह में बड़े, छोटे और मंझोले शहरांे में बरपता दिखा है। अभी ग्रामीण अंचल इसके संक्रमण से लगभग मुक्त ही दिख रहे हैं। आने वाले दिनों में यह गांव की ओर रूख न कर ले इस आशंका को भांपते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा एक नायाब पहल की गई है।
अगर यह गांव की ओर बढ़ा तो देश की सत्तर फीसदी आबादी पर इसका खतरा मण्डरा सकता है। यह बात केंद्र, राज्य सरकारों के अलावा चिकित्सा जगत को परेशान तो कर ही रही होगी। गांव गांव में इतनी चिकित्सकीय सुविधाएं नहीं हैं कि इससे वहां आसानी से निपटा जा सके। गांव से अस्पताल बहुत दूर हैं, इन परिस्थितियों में इस बारे में विचार करना और सावधानी बरतना बहुत ही जरूरी समझा जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात को शायद भली भांति समझ चुके हैं कि टोटल लॉक डाउन के बजाए उनके द्वारा अगर कर्फ्यू शब्द का प्रयोग किया जाता तो लोगों के जेहन में यह अच्छे से उतर सकता था। संभवतः यही कारण है कि उनके द्वारा अब सोशल डिस्टेंसिंग के बजाए दो गज की दूरी जैसे शब्द का प्रयोग किया गया है। दरअसल, देश के लोगों को क्लिष्ठ शब्दों के बजाए अगर आसान स्थानीय भाषा में चीजें बताईं जाएं तो यह उचित ही होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उद्बोधन की एक बात को यहां रेखांकित करना जरूरी होगा कि उनके द्वारा कहा गया कि अब समय आ गया है आत्म निर्भर बनने का। पिछले दिनों संपूर्ण बंदी के दौरान आयात न होने से किस तरह की परेशानियां हुईं यह बात किसी से छिपी नहीं है। वैसे गांव को अगर आत्म निर्भर बना दिया जाए तो देश में सुराज आने में समय नहीं लगने वाला।
इसके लिए केंद्रीय इमदाद का गांवों में किस तरह उपयोग किया जा रहा है, किस तरह लूट मचाई जाती है केंद्रीय मदद पर, इस पर भी नजर रखने की जरूरत है। गांव गांव शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का स्तर सुधारने की भी महती जरूरत महसूस की जा रही है। उम्मीद है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार इस ओर ध्यान अवश्य देगी।
आप अपने घरों में रहें, घरों से बाहर न निकलें, सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी को बरकरार रखें, शासन, प्रशासन के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करते हुए घर पर ही रहें।