स्वामी अग्निवेश के निधन से देश के एक क्रांतिकारी पक्ष का अंत

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अशोक प्रवृद्ध

सामाजिक कार्यकर्ता इकासी वर्षीय स्वामी अग्निवेश का शुक्रवार को नई दिल्ली स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलिअरी साइंसेस (आईएलबीएस) में निधन हो जाने से देश और फिर आर्य समाज के एक क्रांतिकारी पक्ष का अंत हो गया । स्वामी अग्निवेश यकृत से सम्बन्धित लिवर सिरोसिस नाम की बीमारी से पीड़ित थे और बीते कुछ दिनों से काफी बीमार थे। उनके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था, और बीते मंगलवार से वह वेंटिलेटर पर थे। आईएलबीएस के द्वारा जारी किए गए एक बयान के अनुसार स्वामी अग्निवेश को शुक्रवार शाम छह बजे कार्डियक अरेस्ट हुआ। उन्हें बचाने की भरपूर कोशिश की गई, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सका,और शाम 6:30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। ध्यातव्य है कि सहनशीलता और मानवता के एक सच्चे योद्धा, साहसी और जनहित को लेकर बड़े जोखिम उठाने वाले व्यक्ति स्वामी अग्निवेश दो वर्ष पूर्व झारखंड में एक हमले का शिकार हुए थे, उनका यकृत अर्थात लिवर खराब हो गया था। उनका अंतिम संस्कार वैदिक रीति से अग्निलोक आश्रम, बहलपा जिला गुरुग्राम में शनिवार शाम चार बजे सम्पन्न हुआ।

उल्लेखनीय है कि 21 सितंबर 1939 को आंध्रप्रदेश के ब्राह्मण परिवार में जन्में स्वामी अग्निवेश ने कोलकाता में कानून और बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के बाद आर्य समाज में सन्यास ग्रहण किया था। उन्होंने एक संन्यासी के जीवन का निर्वाह करने के लिए अपने नाम, जाति, धर्म, परिवार, सामान और संपत्ति का त्याग कर दिया था । कुछ समाचार पत्रीय खबर के अनुसार उनका जन्म वर्तमान छत्तीसगढ़ के शक्ति (सक्ति) रियासत, वर्तमान में जांजगीर-चाँपा जिले के शक्ति नामक स्थान में हुआ था । वे अल्पवय से पठन – पाठन के साथ ही सामाजिक हित के कार्यों में लगे रहते थे और इसी सार्वजनिक हित के कार्यों ने उन्हें राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया। सामाजिक मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखने के लिए स्वामी जी जाने जाते थे। स्वामी अग्निवेश को अपने संगठन बंधुआ मुक्ति मोर्चा के माध्यम से बंधुआ मजदूरी के खिलाफ अभियान चलाने के लिए भी  जाना जाता है। बंधुआ मज़दूरी के ख़िलाफ़ उनकी दशकों की मुहिम तो पत्र –पत्रिकाओं व अन्यान्य संचार माध्यमों की सुर्खियाँ बनती ही रही हैं, उन्होंने बंधुआ मुक्ति मोर्चा नामक संगठन की शुरुआत की और हमेशा ही रूढ़िवादिता और जातिवाद के ख़िलाफ़ लड़ने का दावा करते रहे। अस्सी के दशक में उन्होंने दलितों के मंदिरों में प्रवेश पर लगी रोक के खिलाफ भी आंदोलन चलाया था। वर्ष 2011 के जनलोकपाल आंदोलन के समय अरविंद केजरीवाल पर धन के ग़बन का उनके द्वारा लगाया गया आरोप काफ़ी समय तक लोगों को याद रहा। बाद में स्वामी अग्निवेश मतभेदों के चलते इस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से दूर हो गए थे। दूर होने के बाद उन्होंने यह तक कहा कि केजरीवाल अन्ना हज़ारे की मौत चाहते थे । माओवादियों और सरकार के बीच बात-चीत में उनकी मध्यस्थता के लिए भी स्वामी अग्निवेश को याद किया जाता है। आर्य समाजी होने के कारण वे मूर्तिपूजा और धार्मिक कुरीतियों का हमेशा विरोध करते रहे, लेकिन  उन्होंने कई बार ऐसी बातें भी खुलकर कहीं जो सनातन वैदिकों को नागवार गुजरती थी। बंधुआ मज़दूरों के लिए लंबी लड़ाई लड़नेवाले और नोबेल जैसा सम्मानित समझे जाने वाला राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड पा चुके स्वामी अग्निवेश के व्यक्तित्व को लेकर कई तरह की राय रहीं।

समाज सुधारक, गरीबों के मसीहा, राष्ट्र भक्त ,ऋषि भक्त , क्रान्तिकारी आर्य संन्यासी स्वामी अग्निवेश ने युवावस्था में संन्यास लेकर सामाजिक राजनीतिक व आध्यात्मिक श्रेत्र में निरन्तर संघर्ष किया  । वे ऋषि दयानन्द की तरह बड़ी निर्भिकता से समाज में फैली कुरितियों, अन्धविश्वासों व पाखंडों पर प्रहार करते थे । 2004 में द राइट लाइवलीहुड अवार्ड के विजेता अग्निवेश ने 28 वर्ष की छोटी उम्र में कलकत्ता में कानून और प्रबंधन के प्रोफेसर के रूप में अपना कैरिएर का त्याग ही नहीं किया वरन उन्होंने अपना नाम, जाति, धर्म, परिवार और अपने सभी सामान और संपत्ति तक को एक स्वामी का जीवन अपनाने के लिए छोड़ दिया और सामाजिक न्याय एवं दया के लिए अपने जीवन की शुरुआत की। अपने विचारों के कारण स्वामी अग्निवेश आर्य समाज के प्रतिष्ठित विश्व प्रसिद्ध नेता बन गए थे। मुसलामानों के मध्य जाकर कब्र पूजा और बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी को ग़लत कहना, सत्यार्थ प्रकाश व वेद को महिमामंडित करना, संगठन सूक्त जैसे वेदमंत्र बोलना, सऊदी अरब के शेख को सत्यार्थ प्रकाश भेंट करना, शिक्षा मंत्री के पद को ठोकर मारना, सती प्रथा को ख़त्म करने के लिए और लोगो में इसके विरुद्ध जनजागृति के लिए दिल्ली से देवराला तक पदयात्रा निकालने की हिम्मत करना, लाखों बन्धुआ मज़दूरों को बड़े संघर्ष के बाद मुक्त करवाना,शराब की बिक्री व गौहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध के लिए भी निरन्तर आवाज उठाना आदि समाज सुधार के अनेक काम स्वामी अग्निवेश करते आ रहे थे। आर्य समाज का काम करते-करते ही 1968- 70 में स्वामी अग्निवेश ने आर्य समाज के सिद्धांतों पर आधारित एक राजनीतिक दल – आर्य सभा का गठन किया। बाद में 1981 में बंधुआ मुक्ति मोर्चा की स्थापना उन्होंने दिल्ली में की । स्वामी अग्निवेश ने हरियाणा से चुनाव लड़ा और मंत्री भी बनें । आपातकाल के बाद वर्ष 1977 में वह हरियाणा से विधायक चुने गए थे और इसके दो साल बाद शिक्षा मंत्री बनाए गए थे। हालांकि बंधुआ मजदूरी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे श्रमिकों पर पुलिस द्वारा गोली चलाए जाने के खिलाफ हरियाणा सरकार द्वारा कोई कार्रवाई न किए जाने की वजह से उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

बंधुआ मुक्ति मोर्चा के संयोजक रहे स्वामी अग्निवेश माओवादियों से बातचीत के लिए भी चर्चा के केंद्र विन्दु बने थे । 2010 में उन्हें तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने माओवादी नेतृत्व के साथ संवाद स्थापित करने का काम सौंपा था । इसके एक साल बाद वह अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का भी हिस्सा थे। लम्बे समय तक माओवादियों और भारत सरकार के बीच बातचीत की कोशिश करते रहे सामाजिक कार्यकर्ता और बंधुआ मुक्ति मोर्चा के संयोजक स्वामी अग्निवेश का मानना था कि भारत सरकार और माओवादी मजबूरी में शांति वार्ता कर रहे हैं। उनका कहना था कि दोनों के सामने इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है। सामाजिक मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखने के कारण हमेशा चर्चा में रहने वाले स्वामी अग्निवेश शिक्षक और वकील रहे। उन्होंने एक टीवी कार्यक्रम के एंकर की भूमिका भी निभाई और रियलिटी टीवी शो बिग बॉस का भी हिस्सा भी बने। वह 8 से 11 नवंबर के दौरान तीन दिन के लिए बिग बॉस के घर में भी रहे थे। स्वामी अग्निवेश पर नक्सलियों से सांठगांठ और हिंदू धर्म के खिलाफ दुष्प्रचार का आरोप है। जिसके कारण भारत में अनेकों अवसरों पर उनके खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हुये हैं। जन लोकपाल विधेयक के लिए आंदोलन कर रही अन्ना हजारे की टीम में भी स्वामी अग्निवेश का अहम रोल है। जंतर-मंतर पर अन्ना के अनशन के दौरान अग्निवेश भी पूरे समय अन्ना के साथ रहे। हालांकि कई मुद्दों पर सिविल सोसायटी और अग्निवेश के बीच मदभेद भी पैदा हुए। असली मुद्दा प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में रखने या नहीं रखने को लेकर था। अग्निवेश ने इस बारे में एक विवादास्पद बयान देकर सिविल सोसायटी को नाराज़ कर दिया था। उनका कहना था कि अगर सरकार सिविल सोसायटी की बाक़ी मांगों को मान ले तो पीएम और न्यायपालिका के मुद्दे पर सिविल सोसायटी नरमी बरतने के लिए तैयार है। लेकिन सिविल सोसायटी ने इस बयान को बिलकुल ग़लत करार दिया। अप्रिय लेकिन कल्याणकारी वचन कहने के आदि और अपनी नजर में सदैव सत्य पर आश्रित अपने अपमान को भी अमृत के समान समझकर सभी मत -मतान्तरों व राजनीतिक पाखंड पर निरंतर प्रहार करने और आर्य समाजी होते हुए भी सर्व धर्म समभाव के लिए वैयक्तिक स्तर पर निरंतर संघर्ष रहने के लिए स्वामी अग्निवेश सदैव स्मरण व नमन किये जाते रहेंगे ।

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अशोक “प्रवृद्ध”
बाल्यकाल से ही अवकाश के समय अपने पितामह और उनके विद्वान मित्रों को वाल्मीकिय रामायण , महाभारत, पुराण, इतिहासादि ग्रन्थों को पढ़ कर सुनाने के क्रम में पुरातन धार्मिक-आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक विषयों के अध्ययन- मनन के प्रति मन में लगी लगन वैदिक ग्रन्थों के अध्ययन-मनन-चिन्तन तक ले गई और इस लगन और ईच्छा की पूर्ति हेतु आज भी पुरातन ग्रन्थों, पुरातात्विक स्थलों का अध्ययन , अनुसन्धान व लेखन शौक और कार्य दोनों । शाश्वत्त सत्य अर्थात चिरन्तन सनातन सत्य के अध्ययन व अनुसंधान हेतु निरन्तर रत्त रहकर कई पत्र-पत्रिकाओं , इलेक्ट्रोनिक व अन्तर्जाल संचार माध्यमों के लिए संस्कृत, हिन्दी, नागपुरी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ में स्वतंत्र लेखन ।

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