यह महापाप नहीं तो क्या है?

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प्रवीण दुबे

सच हमेशा कड़वा होता है उसे सहन करना और स्वीकार करना सहज नहीं, सच कहने वाले को तमाम तरह के उलाहने सहन करना पड़ते हैं, तमाम विरोध सहन करना पड़ते हैं और कई बार तो उसे न बोलने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। इस परिप्रेक्ष्य में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा मुम्बई में एक कार्यक्रम के दौरान कही गई बात पर चर्चा की जाए तो वह कड़वी थी परन्तु सच थी। चूंकि वह एक ऐसा सच है जिससे देश की सबसे पुरानी और वर्तमान में सत्तासीन राजनैतिक दल कांग्रेस का चरित्र उजागर होता है अत: इस पर कांग्रेसियों का कपड़े फाडऩा कोई आश्चर्यजनक नहों लगता। जहां तक कांग्रेसियों की बात है उन्होंने मोदी के बयान पर जो कुछ प्रतिक्रिया दी ठीक कही जा सकती है लेकिन मोदी द्वारा उजागर किए गए सच से इंकार नहीं किया जा सकता। मोदी ने 1984 में कांग्रेस के उस घोषणा पत्र का खुलासा किया जिसमें कहा गया था कि अगर कांग्रेस पूर्वोत्तर में सत्ता में आई तो यहां का शासन बाइबिल के अनुसार चलाया जाएगा। सर्वविदित है कांग्रेस का पूर्वोत्तर के राज्यों में खासा दबदबा रहा है और देश के अन्य राजनैतिक दलों का वहां ज्यादा बजूद नहीं रहा है। अत: इंदिरा गांधी हों या पी.आर. संगमा अथवा अन्य बड़े कांग्रेसी जब भी पूर्वोत्तर में बोले उन्होंने वहां चर्च को बढ़ावा देने की बात कही और चुनाव के समय खुलेआम बाइबिल के सहारे शासन चलाने की घोषणा की। वैसे भी देखा जाए तो शुरुआत से ही कांग्रेस अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति करती रही है और इसके लिए उसने इस देश के बहुसंख्यक हिन्दू समाज को नीचा दिखाया और राष्ट्रहितों की सदैव अनदेखी भी की। कौन नहीं जानता कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण में अंधी कांग्रेस ने शाहबानों प्रकरण में क्या किया, मारपीट में धारा 370 को मंजूरी दी, धर्म आधारित आरक्षण को मंजूर किया और अब मुस्लिमों को प्रसन्न करने तथा हिन्दुओं को अपराधी बनाने के लिए साम्प्रदायिक हिंसा प्रतिषेध अधिनियम को लागू करने पर अड़ी हुई है। पूर्वोत्तर में भी कांग्रेस ने कुछ ऐसा ही खेल खेला वहां पहले धर्मांतरण की खुली छूट दी गई और जब ईसाई आबादी निर्णायक स्थिति में पहुंच गई तो उनका राजनीतिक लाभ उठाने के लिए बाइबिल के अनुसार शासन चलाने जैसे वादे किए गए। परिणाम हमारे सामने है। जिस नागालैंड के मिजोरम में इंदिरा गांधी ने बाइबिल के अनुसार शासन चलाने का वादा किया था वहां ईसाई आबादी 98 प्रतिशत तक जा पहुंची है और हिन्दू केवल दो प्रतिशत बचा है। नागालैंड ही नहीं अरूणाचल, असम में भी ईसाई आबादी तेजी से बढ़ रही है और हिन्दू घट रहा है। मोदी की बात का बुरा मानने वाले राजनीतिज्ञों के पास क्या इस बात का जवाब है कि आखिर वहां हिन्दू क्यों अल्पसंख्यक हो गया, वहां तेजी से धर्मांतरण क्यों हुआ? स्पष्ट है यदि इसका जवाब ढूंडा जाएगा तो इंदिरा गांधी द्वारा किए गए वादे की कड़वी सच्चाई सामने आएगी। जब शासन बाइबिल के अनुसार चलेगा तो चर्च की गतिविधियों को भला कौन रोक सकेगा? कौन रोक सकेगा ईसाई मिशनरीज को और कौन रोक सकेगा धर्मांतरण के कुचक्र को। ईसाई मिशनरीज को जब राजनैतिक पृष्ठ भूमि मिली तो उन्होंने यहां सेवा, शिक्षा और चिकित्सा का झूंठा ढिंढोरा पीटकर भोली-भाली जनजातियों का मतांतरण किया। आंकड़े बताते हैं कि स्वतंत्रता से पूर्व पूर्वोत्तर के सात राज्यों में बड़ी संख्या में तमाम जनजातियों की बड़़ी आबादी थी। बहुत सारी जनजातियां तो अब पूरी तरह मतांतरित होकर ईसाई बन चुकी है। अब केवल असमिया, बिश्नुप्रिया, केडो, गारो, कार्बी खासी, कुकी, मणिपुरी मिजो नागा आदि जातियां हीं शेष बची हैं। पूर्वोत्तर में मतांतरण का यह खेल काफी पुराना है। यहां चर्च रात दिन पूर्वोत्तर में मतांतरण का यह खेल काफी पुराना है। यहां चर्च रात दिन हिन्दुओं और विशेषकर जनजातियों का परिवर्तन कराने में लगा रहा और कांग्रेस ने राजनैतिक लाभ उठाने के लिए उन्हें सहयोग दिया। परिणाम स्वरुप ईसाई धर्म प्रचारक बेरोकटोक यहां आते रहे और पूर्वोत्तर की गरीबी और सामाजिक बुराइयों का लाभ उठाकर मतांतरण के अपने लक्ष्य को आगे बढ़ाते रहे। कुछ वर्ष पूर्व मध्यप्रदेश में गठित नियोगी जांच कमेटी की रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आए वे मिशनरीज के राजनैतिक संरक्षण में जारी मतांतरण के गोरखधंधे की पोल खोल देते हैं। इसमें खुलासा किया गया कि मिशनरियों द्वारा जनजातियों को एक से पांच हजार रुपए तक का ऋण ब्याज पर बांटा जा रहा है, जिसे वे कभी वापस नहीं कर पाते। इसके बाद इनके सामने मतातंरण की शर्त रखी जाती है। यदि कर्जदार ईसाई मत स्वीकार कर लेता है तो कर्ज ब्याज समेत माफ कर दिया जाता है। यह तो मात्र एक उदाहरण है बेपटिस्ट मिशनरीज मत परिवर्तन करने वालों को पहनने के कीमती कपड़े देते हैं। और जो अपने अन्य बंधुओं को मतांतरित कराने में सहयोग देते हैं उन्हें कीमती तोहफे देने का प्रलोभन दिया जा रहा है। आखिर यह सब बिना शासन प्रशासन के सहयोग के कैसे संभव है और इसी गठजोड़ ने पूर्वोत्तर का ईसाईकरण कर दिया तथा हिन्दू अल्पसंख्यक हो गया।

इस मतांतरण के लिए पूरी तरह कांग्रेस जिम्मेदार है, कारण साफ है यहां कांग्रेस का शासन रहा अथवा किसी क्षेत्रीय दल की सरकार भी बनी तो उसे कांग्रेस ने सहयोग किया। कांग्रेस ने सत्ता प्राप्त करने के लिए यह सारा पाप किया और उसने इसके लिए उन गांधी जी के विचारों तक की वैचारिक हत्या कर दी जिनके नाम पर वह आज धर्मनिरपेक्षता, सर्वधर्म सम्भाव और सांप्रदायिक सौहार्द का ढिंढोरा पीटते नहीं आपाती।

मतांतरण को लेकर गांधी जी ने ‘भंग इंडियाÓ के (23-4-1931) के अंक में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा था कि मत परिवर्तन अब अन्य व्यवसायों की भांति ही एक व्यवसाय बन गया है मुझे याद है कि मैंने इसाई मिशनरी की एक बजट रिपोर्ट में पढ़ा था कि अगले मतांतरण के अभियान के समय प्रति व्यक्ति कितना खर्च आएगा। ऐसे प्रयास पूरे के पूरे समुदाय को लक्ष्य बनाकर मतांतरण करा लेते हैं प्रत्यक्ष रूप से ऐसी कार्यवाहियों में कोई हिंसा नहीं दिखाई देती।

गांधी जी ने ही हरिजन समाचार पत्र के 7 फरवरी 1931 के अंक में कहा था कि हिन्दू तो स्वप्न में भी ईसाइयों को समाप्त करने का नहीं सोच सकते और यदि उनके मन में ऐसी कोई विपरीत धारणा होती तो वे ईसाइयों को कभी अपने देश में प्रवेश न करने देते उनके भारत आगमन के साथ ही उन्हें बड़ी आसानी से समाप्त कर दिया होता। परन्तु ईसाई यदि धर्म की आड़ में गरीबों को शिक्षित करने के बहाने निर्दोष देशवासियों के मत परिवर्तन का कार्य जारी रखते हैं तो मैं इस देश में पहला व्यक्ति होऊंगा जो उन्हें देश छोड़कर चले जाने को कहूंगा। अब गांधी जी के इन विचारों को कांग्रेस ने माना होता तो वह कभी भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में ईसाइयों को बढ़ावा देने और पूर्वोत्तर में बाइबिल में बताए अनुसार शासन चलाने की बात नहीं करते। परन्तु तुष्टीकरण में अंधी कांग्रेस ने ऐसा किया। अब नरेन्द्र मोदी ने इसे इंदिरा गांधी द्वारा किया महापाप निरुपित किया तो क्या गलत किया? इसमें बुराई क्या है?

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