—विनय कुमार विनायक
मनुष्य में उत्तम पुरुष मैं का भाव बहुत देर से आता
मनुष्य कभी भी पहले पहल स्वयं को नहीं देख पाता
स्वयं को देखने के लिए मनुष्य को चाहिए पराई आंखें
ये पराई आंखें मां पिता बहन अग्रज पूर्वज की होती
मनुष्य में जन्म से प्रथम पुरुष अहम का भाव नहीं होता
मनुष्य किसी दूसरे मध्यम पुरुष के संपर्क में आता
ये मध्यम पुरुष ही मैं के विकास का माध्यम बनता
ये मध्यम पुरुष माध्यम होते जन्मदाता मां और पिता
मां से मम भाव आता पिता से अहम भाव जगता
मां के मम में ममत्व भान होता जग जाती ममता
मां के मम में अहं नहीं पिता के अहम में अहं पुष्टि पाता
पिता से जैविक पाशविकता बढ़ती पाप पुण्य का बोध होता
ऐसे में मध्यम पुरुष से प्राप्त ज्ञान के सहारे ही
मनुष्य उत्तम पुरुष होने का भाव प्राप्त कर लेता
यही वजह है आरंभ में सभी जाति धर्म के बच्चे
उत्तम पुरुष के अहम भाव से मुक्त एक जैसे ही होते
मनुष्य के मैं का निर्माण दूसरे तीसरे अन्य से होता
मनुष्य का जन्म स्वैच्छिक नहीं परिस्थितिजन्य होता
यह मात्र संयोग है कि किसी मनुष्य का जन्म हिन्दू
किसी का मुस्लिम ईसाई आदि मां पिता से होता
आरंभ में मनुष्य का कोई धर्म मजहब नहीं होता
ये बातें मनुष्य मध्यम पुरुष मां पिता से ग्रहण करता
मनुष्य को स्वधर्म आस्था संस्कृति दूसरे त्वम से मिलता
बहुत धीरे धीरे मनुष्य अन्य पुरुष के संपर्क में आता
ये अन्य पुरुष गुरु ज्ञानी ग्रंथ आदि कुछ भी हो सकते
ये अन्य पुरुष कवि नबी अवतार तीर्थंकर भी हो सकते
अगर सामने का दूसरा कोई जंगली बर्बर पशु होता
तो मनुष्य का मैं उस जंगली पशु जैसा ही हो जाता
मनुष्य का मैं प्रथमत: माता पिता से ही आकार पाता
मनुष्य का मैं द्वितीय पुरुष से जाति धर्म संस्कार पाता
यही कारण है हिन्दू घर के बच्चे हिन्दू जैसे हो जाते
मुसलमान के बच्चे चाहे अरब ईरान या भारतीय हों
वे अरबी नबी के कुरान हदीस से आचरण ग्रहण करते
मनुष्य का मैं दूसरे तुम से विकसित होते होते
तीसरे अन्य पुरुष से पुष्ट होता अपना कुछ नहीं होगा
अपने मैं को पाने के लिए अपने में गोता लगाना होता
अपने मैं को पहचानना ही आत्मानं विजानीहि होना है
यही लक्ष्य मनुष्य जीवन का, कोई नहीं मनुष्य का अपना
दूसरे तीसरे से प्राप्त पहचान तुम्हें भला बुरा बना देती
दूसरे तीसरे से प्राप्त पाशविक जैविक पहचान मिटाकर ही
अपनी पहचान को पा सकते अन्यथा जीव पशु बने रहते!
—विनय कुमार विनायक