9 अगस्त पर विशेष
09 अगस्त 1947 भारतीय स्वतत्रता आन्दोलन का अद्वितीय दिन था जिसे इतिहास के पन्नों में अगस्त क्रान्ति के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह आन्दोलन अंगे्रेजों द्वारा हिन्दुस्तानियों पर किये गये जुल्म व अत्याचार पर तीब्र प्रहार था यह आन्दोलन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा अंगे्रेजो भारत छोड़ो उदघोष के बाद सम्पूर्ण क्रान्ति के आहवाहन के साथ ही शुरू हुआ था । 08 अगस्त 1947 को बम्बर्इ में कांग्रेस महाधिवेशन से पहले कांग्रेस की बैठक हुर्इ उसी रात महात्मा गांधी सहित कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं एवं समस्त सदस्यों केा गिरफ्तार कर लिया गया। महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी को गिरफ्तार करके पूना स्थित आगाखां महल मे नजर बन्द रखा गया जहा 22 फरवरी 1944 को आगाखां महल में कस्तूरबा गांधी का निधन हो गया। उसके बाद 6 मर्इ 1944 को महात्मा गांधी बिना शर्त के रिहा कर दिये गये। राष्ट्रीय नेताओं की गिरफ़्तारी के बाद सन 1942 में अगस्त क्रान्ति के इस आन्दोलन को काग्रेंस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्यों ने नया मोड दे दिया। काग्रेंस सोशलिस्ट पार्टी जो कांग्रेंस की नीतियों से बिरक्त होकर सन 1934 में काग्रेंस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। इससे पहले भारत के विभिन्न प्रान्तों में सोशलिस्ट पार्टिया बन चुकी थी। जैसे बिहार में बिहार सोशलिस्ट पार्टी, बम्बर्इ में प्रेसीडेन्शी काग्रेंस सोशलिस्ट पार्टी आदि। चूकि सन 1933 में नासिक रोड़ सिथत सेन्ट्रल जेल में कुछ लोगों ने कागे्रंस के अन्दर ही एक सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना करने का विचार बनाया जिसे 1934 में अंतिम रूप दिया गया। जिसकी पहली बैठक आचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में पटना में आयेाजित की गयी। काग्रेंस सोशलिस्ट पार्टी के अन्य संस्थापक सदस्य जैसे जयप्रकाश नारायण, डा0 राम मनोहर लोहिया, अरूणा आसफ अली, अच्युत पटवर्धन, युसूफ मेहर अली सेठ दामोदर स्वरूप सम्पूर्णानन्द, मीनू मसानी, कमला देवी चटोपध्याय, कमला पति त्रिपाठी, अशोक नेता सहित कर्इ समाजवादी नेता उसमें शामिल हुए। इन नेताओं में ज्यादातर नेता युवा थे और उनकी उम्रों में लगभग एक-दो साल का ही अन्तर था । इन युवा समाजवादी नेताओं के नेतृत्व में 9 अगस्त के उस ऐतिहासिक आन्दोलन की शुरूआत हुर्इ। जिसने भारत से अंग्रेज सरकार को उखाड़ फेकने का संकल्प लिया और देश की स्वतंत्रता के साथ ही उसे पूरा भी किया ध1942 के आन्दोलन में लोक नायक जयप्रकाश ने लोकाचरण को स्वीकृति दी और अंगे्रेजों के विरूद्व हिसां की योजना बनायी लेकिन लोहिया जी ने मानव हिंसा और वस्तु नाश में भेद किया वे मानव हिंसा के कतर्इ पक्षधर नही थे उनका मानना था कि हम जान को नही अपितु माल को हानि पहुचायेगें। इसमें मुशाफिर गाड़ी नही बलिक माल गाड़ी गिरायी जायेगी। चूकि समाज वादी आन्दोलन प्रारम्भ से ही आहिंसक था। इस कारण पूरा आन्दोलन बिना किसी हिंसा के लड़ा गया और जीता भी गया। जब महात्मा गांधी सहित काग्रेंस के सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गये तब 9 अगस्त 1942 को काग्रेंस सोशलिस्ट पार्टी की प्रमुख नेत्री अरूणा आसफ अली ने बि्रतानियां हुकूमत से देश को आजाद कराने के लिए बम्बर्इ के ग्वालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहरा कर जंग का एलान इस अनोखे अन्दाज में किया जिससे अंग्रेज हुकूमत पूरी तरह बौखला गई श्रीमती अरुणा आसफ अली जी ने भूमिगत रहते हुए डा0 लोहिया एवं जयप्रकाश नारायण के साथ मिलकर पूरे आन्दोलन का संचालन किया वही दूसरी और काग्रेंस सोशलिस्ट पार्टी के महा सचिव युसूफ मेहर अली ने अंगे्रजो के खिलाफ मौर्चा खोलकर उनके दांत खटटे कर दिये तब अंगे्रजों ने उन्हें जेल में बन्द कर दिया। युसुफ मेहर अली की लोक प्रियता इतनी बढ़ गयी थी कि जेल में बन्द रहते हुए उन्हें बम्बर्इ का पहला मेयर चुना गया। इस घटना पर प्रसिद्ध समाजवादी चिन्तक मधुलिमयें ने लिखा है कि उन दिनों युसुफ मेहर अली युवाओं में खासा लोकप्रिय हो चुके थे। उनके नेतृत्व में बम्बर्इ में हुए इस आन्दोलन में हजारों नवयुकों में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा फूट कर सड़को पर आ चुका था। बरसात के बावजूद हजारो-हजार लोग वहा पर डटे हुए थे। उन युवाओं का साहस देख अंगे्रजो ने बल का प्रयोग भी किया परन्तु उन्हें डिगा नही सकें। यह घटना सम्पूर्ण देश में जन जागरण के रूप में फैल चुकी थी और लोग आजादी का स्वाद चखने का मन बना चुके थे। सम्पूर्ण स्वराज के इस आन्दोलन में थेाडी बाधा तब आयी जब डा0 लोहिया व जयप्रकश सहित कर्इ अन्य समाजवादी नेताओं को अंगे्रजो ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें हजारी बाग जेल भेज दिया गया। इसी बीच बिहार में पुलिस बिद्रोह हो गया जिसका नेतृत्व समाजवादी नेता रामानन्द तिवारी ने किया। जो बाद में बिहार सरकार के गृह मंत्री बने। सारे देश में अंगे्रजों के विरूद्व विद्रोह का बिगुल बज रहा था। आजमगढ़ जिले के मधुबन में विद्रोह की स्थिति हो गयी। जिसे मधुबन काण्ड के नाम से भी जाना जाता है। जिसका नेतृत्व विष्णुदेव गुप्ता एवं बहादुर सिंह इत्यादि में किया। आजादी की इस अंतिम लड़ार्इ को पुन: सक्रिय करने के लिए बिहार के समाजवादी नेता रामानन्द सिंह व बसावन बाबू एवं जयप्रकाश नारायण के अथक प्रयास से हजारी बाग जेल से डा0 लोहिया एवं जयप्रकाश नारायन फरार होने में सफल रहे। यह लोग उसके बाद नेपाल चले गये और नेपाल से भूमिगत रहते हुए क्रान्तिकारी आन्दोलन का नेतृत्व करने के साथ-साथ पैरलर,रेडियो स्टेशन एवं समाचार पत्रों के माध्यम से अगस्त क्रान्ति का जन जागरण भी जारी रखा। उस समय देश में नये उत्पाद का सर्जन हो रहा था और गगन में एक ही नारा गूंज रहा था Þलाल किले के तीन लाल – अरूणा, लोहिया, जयप्रकाश। इस आन्दोलन से जवाहरलाल नेहरू और समर्थक करीब-करीब बिरक्त हो गये थे। उत्तर प्रदेश में डा0 सम्पूर्णानन्द कमला पति त्रिपाठी चन्द्रभान गुप्ता आदि तमाम नेता इस आन्दोलन में कूद पड़े थे। इस ऐतिहासिक आन्दोलन से दुनिया भर में साम्यवादी आन्दोलन का अभिउदय हो चुका था। रूस व चीन की क्रान्तियां इसका उदाहरण थी। महात्मा गांधी के आग्रह पर भी आन्दोलन वापस नही हुआ। और क्रान्ति की मसाल पूरे देश में फैलती गयी। यहीं से 9 अगस्त की क्रान्ति सम्पूर्ण आजादी का कारण बनी। इस आन्दोलन ने देश में समाजवादी आन्दोलन की नीवं को काफी मजबूत कर दिया जिससे समता मूलक समाज की रचना में लोगों में जागृति पैदा हुर्इ। 9 अगस्त को नर्इ दिल्ली के कुछ संभा्रन्त समाजवादी विचारक जिनमें प्रोफेसर राजकुमार जैन, विजय प्रताप, एस0एस0 नेहरा एवं एल0सी0 शर्मा सहित कर्इ लोग राजघाट (महात्मा गांधी की समाद्वि स्थल) से लेकर आचार्य नरेन्द्र देव वाटिका तक पैदल मार्च करते हुए आते है और महान क्रान्ति कारियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। आज 9 अगस्त की उस ऐतिहासिक क्रान्ति का जिंक्र सायद ही होता हो क्येांकि भारतीय इतिहासकारों एवं साहित्यकारों ने लेखन के माध्यम से सत्ता के आस-पास अपनी महत्ता को दर्शाने के लिए इस पूरे आन्दोलन को एक ही परिवार के साथ महिमा मंडित करने का जो कार्य किया हैं वह काफी दुखद है जबकि भारत की सम्पूर्ण आजादी में जिन महानुभवाओ, महापुरूषों एवं जननायको का विशेष योगदान रहा जिनकी कुर्बानियों से देश को स्वराज मिला ऐसे महापुरूषों को लोग भूलते चले जा रहे है। भारत सरकार को 15 अगस्त जैसे राष्ट्रीय उत्सव की तरह ही 9 अगस्त का दिन भी राष्ट्रीय पर्व के रूप में मानना चाहिए।