–विनय कुमार विनायक
हिन्दू बौद्ध जैन सिख धर्म में एक समानता है
कि क्षत्रिय हैं चारों धर्म के संस्थापक व अनुयाई
चारों धर्म में सूर्यवंशी आर्य क्षत्रिय मनु इक्ष्वाकु
और चन्द्रवंशी इला पुरुरवा आदि के वंशज भाई!
चार वर्ण को एक किया जा सकता क्षत्रिय वर्ण में,
चारों धर्म के प्रवर्तक सात मनु, राम, कृष्ण, बुद्ध,
चौबीस तीर्थंकर और दस गुरु सभी क्षत्रिय कुल के,
चारों धर्म के संस्थापक श्रेष्ठ आर्य क्षत्रिय कहलाते!
चारों वर्ण; ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र-अंत्यज को
जिस एक वर्ण में समेटा जा सकता वो वर्ण है क्षत्रिय,
हजार जातियाँ एक की जा सकती वो जाति है क्षत्रिय,
भारतीय मान्यता में सारे मनुज के पूर्वज मनु पितृव्य!
जैन धर्म के सारे तीर्थंकर ऋषभदेव से महावीर तक
क्षत्रिय माँ पिता के अहिंसा व समतावादी संतान थे,
गौतम बुद्ध राम के वंशज इक्ष्वाकु क्षत्रिय महान थे,
बुद्ध ने ब्राह्मण से ऊपर क्षत्रिय को दिए स्थान थे!
चौबीस जैन तीर्थंकर उच्च चरित्र के महा अहिंसावादी,
बुद्ध ने हिन्दुओं में पशुबलि जैसी कुप्रथा बंद करा दी,
गुरु नानक से गुरु गोविंद तक राम कृष्ण वंशी खत्री,
जितनी जाति बनी, ब्राह्मण से पराजित क्षत्रिय से ही!
सभी जाति उपाधि ब्राह्मण क्षत्रिय संघर्ष की परिणति,
गुरु गोविंद सिंह ने मनुज जाति की छोड़ सारी उपाधि
एक उपाधि ‘सिंह’ चारों वर्णों हजारों जातियों को दे दी,
मनुष्य के तमाम वर्ण नस्ल को एक जाति कर दी थी!
ब्राह्मणों ने कर्मकाण्ड पाखण्ड पशुबलि हिंसक यज्ञ कर
इक्कीसबार परशुराम बनके क्षत्रियों पर अत्याचार किया,
ईश्वर ने तब तब क्षत्रिय रुप में भगवान अवतार लेकर
वसुधा के जीव जन्तु व मानव पर बहुत उपकार किया!
विप्र कृपण ऐसा कि वो किसी को स्वजाति नहीं बनाता,
सतयुग में सूर्यवंशी राजा सत्य हरिश्चन्द्र व उनके पिता
सत्यव्रत का ब्रह्मर्षि वशिष्ठ ने त्रिशंकु का हाल कराया,
राजा विश्वामित्र को उसी वशिष्ठ ने जीना मुहाल किया!
त्रेतायुग में प्रजापालक क्षत्रिय सम्राट सहस्रार्जुन की हत्या
क्षत्रिय संहारकर परशुराम ने क्षत्रिय वर्ण को बदहाल किया,
क्षत्रिय से बनी सारी जातियों में घृणा विद्वेष बहाल किया,
हिन्दू के बौद्ध जैन व सिख पंथ ने जीना खुशहाल किया!
मनुवाद के नाम मानव पिता के प्रति जो घृणा परोसी गई
वो मनुस्मृतिकार भार्गव ब्राह्मणों की साजिश सोची समझी
मनु के नाम मनुस्मृति लिखी गई दानवगुरु भृगु की कृति
मनुस्मृति प्रथम अध्याय श्लोक उनसठ में घोषणा जिसकी!
—विनय कुमार विनायक