भारत में देवी-महाभारत

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-विजय कुमार- third front cartoon

विश्व इतिहास के सभी बड़े युद्धों का कारण महिलाएं रही हैं। चाहे राम और रावण के बीच हुआ युद्ध हो, या फिर कौरव और पांडवों के बीच हुआ महाभारत। जर, जोरू और जमीन की बात बुजुर्गों ने ठीक ही कही है। लेकिन युद्ध भले ही महिलाओं के कारण हुआ हो, उसमें महिलाओं के प्रत्यक्ष भाग लेने की बात सुनने में नहीं आती।
हां, एक युद्ध में दशरथ जी के साथ कैकेयी के जाने की बात जरूर सुनी है। उस युद्ध में कैकेयी ने दशरथ की जान बचाई थी। अतः दशरथ ने उसे दो वरदान मांगने को कहा, जिसे कैकेयी ने सुरक्षित रखवा लिया। आगे चलकर उन्हीं के बल पर राम को वनवास हुआ। यानि विवाद की जड़ में एक महिला ही थी।
पर भारत में जो महाभारत इस समय छिड़ा है, उसमें एक-दो नहीं, तीन कुमारी सन्नारियां ताल ठोंककर मैदान में डटी हैं। मजे की बात यह भी है कि ये तीनों परदे के पीछे से राज कर रही एक सर्वशक्तिमान महिला का ही राज समाप्त करना चाहती हैं।
हमारे शर्मा जी घर में भले ही अपनी मैडम की एक न चलने दें; पर बाहर वे ‘नारी सशक्तीकरण’ के प्रबल पक्षधर हैं। उनकी हार्दिक इच्छा है कि देश की बागडोर किसी नारी के ही हाथ में हो। काफी समय से वे इस कोशिश में लगे थे कि किसी तरह सुश्री जयललिता, ममता बनर्जी और बहिन मायावती एक साथ बैठने को राजी हो जाएं, जिससे कोई समान एजेंडा बनाया जा सके।
चुनाव की भागमभाग में समय निकालना आसान नहीं होता, फिर भी काफी जद्दोजहद के बाद तीनों एक दिन एकत्र हो ही गयीं। सबसे पहले तो उनमें इस बात पर विवाद हो गया इस बैठक की अध्यक्षता कौन करेगा ? शर्मा जी ने सुझाव दिया कि जो सबसे अधिक बुजुर्ग हो, उसका अध्यक्ष बनना ठीक है।
‘बुजुर्ग’ शब्द सुनकर तीनों नाराज हो गयीं। अतः शर्मा जी ने उसे बदलकर ‘वरिष्ठ’ कर दिया; लेकिन बात फिर भी नहीं बनी, चूंकि इस मामले में महिलाएं कुछ ज्यादा ही संवेदनशील होती हैं। इसलिए वे तीनों खुद को सबसे कम आयु का बताने लगीं। ममता ने खुद को 30 का, तो मायावती ने 35 का बताया। जयललिता ने बड़े संकोच से कहा कि वे भी कुछ साल बाद 40 की हो जाएंगी। आखिर आयु की बजाय शरीर के आकार-प्रकार पर ध्यान देते हुए जयललिता को इस ‘त्रिदेवी सत्र’ की अध्यक्षता करने का भार सौंपा गया।
सबसे पहले शर्मा जी ने उन्हें अपनी बात समझाने का प्रयास किया, तो वे तीनों भड़क गयीं, ‘‘महिलाओं के मामले में तुम मत पड़ो। नारी शक्ति के बारे में हम तुमसे अधिक जानती हैं। तुम्हारे जैसे 365 लोग हमारे नीचे काम करते हैं। तुम बाहर बैठकर चाय-पानी का इंतजाम करो। जब तुम्हारी जरूरत होगी, तो हम बुला लेंगे।’’
बेचारे शर्मा जी झक मारकर बाहर आ गये। फिर भी उनके कान अंदर की ओर ही लगे हुए थे। तीनों इस बात से तो प्रसन्न थीं कि वर्तमान सरकार जा रही है; पर नरेन्द्र मोदी के आने की आहट से वे भयभीत भी थीं। इन तीनों को अपने कुमारी होने का गर्व था; पर नरेन्द्र मोदी और राहुल बाबा भी इसी बिरादिरी के थेे। यह इनकी चिंता का एक बड़ा कारण था।
काफी विचार-विमर्श के बाद वे इस पर तो सहमत हुईं कि नरेन्द्र मोदी को नहीं रोका जा सकता; पर उस सरकार को टिकने न दिया जाए, यह भी उनका समान निष्कर्ष था। मायावती ने कहा कि मेरे एक वोट से पहले भी सरकार गिरी थी, इस बार भी मैं ऐसा ही चक्कर चलाऊंगी। ममता बोलीं कि मेरी ममता में कितनी विषमता है, यह सबको पता है। इसलिए मेरे सामने कोई नहीं टिक सकेगा। जयललिता ने एक तिरछी नजर अपने शरीर पर डाली और कहा, ‘मुझे तो कुछ करने की जरूरत ही नहीं है। मेरे भार से बड़ी-बड़ी कारें पिचक जाती हैं, तो ये सरकार क्या चीज है। मेरा उस पर बैठना ही काफी है।’
लेकिन अब उनमें इस बात पर बहस होने लगी कि मोदी सरकार गिरने के बाद प्रधानमंत्री कौन बनेगा ? तीनों इस मामले में खुद को सबसे अच्छा बता रही थीं। कोई किसी से कम थी भी नहीं। इसलिए पीछे कौन हटता ? कुछ देर तो ‘बात युद्ध’ होता रहा, फिर वह ‘हाथ युद्ध’ और अंततः ‘लात युद्ध’ में बदल गया।
जयललिता यद्यपि काफी भारी थीं; पर ममता और मायावती ने मिलकर उन्हें नीचे गिरा लिया। फिर पेट के बल लिटाकर वे दोनों उन्हें बच्चों के झूले की तरह ऊपर-नीचे करने लगीं। जयललिता ने बहुत हाय-हाय की; पर दोनों ने उसे छोड़ा नहीं। जब वह पूरी तरह पस्त हो गयीं, तो फिर मायावती और ममता एक दूसरे पर पिल पड़ीं। कुमारी होने के बावजूद उनके मुंह से झड़ रही गालियां गृहस्थ महिलाओं को भी मात कर रही थीं।
दोनों को मरखनी गाय की तरह लड़ता देख जयललिता ने फिर उठने की कोशिश की। कुर्सी से तो वे अकेले उठ जाती थीं; पर कई प्रयासों के बाद भी धरती से वे अकेले नहीं उठ सकीं। शर्मा जी का विचार था कि इस बैठक से भारत की उन्नति और विकास का रास्ता खुलेगा; पर यहां तो उससे पहले ही विनाश का ‘देवी-महाभारत’ छिड़ गया।
नारी सशक्तीकरण रूपी त्रिकोण के चौथे कोण शर्मा जी ने अंदर की चीख-पुकार और हाय-हत्या का यह वीभत्स दृश्य देखा, तो उन्होंने वहां से खिसकने में ही भलाई समझी।

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