धूमधाम से मनाएं नया साल – विक्रमी संवत -2071

0
185

-विनोद बंसल- ny_hnd_01

भारत व्रत पर्व व त्योहारों का देश है। यूं तो काल गणना का प्रत्येक पल कोई न कोई महत्व रखता है किन्तु कुछ तिथियों का भारतीय काल गणना (कलैंडर) में विशेष महत्व है। भारतीय नव वर्ष (विक्रमी संवत्) का पहला दिन (यानि वर्ष-प्रतिपदा) अपने आप में अनूठा है। इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। इस दिन पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा करती है  तथा दिन-रात बराबर होते हैं। इसके बाद से ही रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है। काली अंधेरी रात के अंधकार को चीर चन्द्रमा की चांदनी अपनी छटा बिखेरना शुरू कर देती है। वसंत ऋतु का राज होने के कारण प्रकृति का सौंदर्य अपने चरम पर होता है। फाल्गुन के रंग और फूलों की सुगंध से तन-मन प्रफुल्लित और उत्साहित रहता है।

विक्रमी सम्वत्सर की वैज्ञानिकता

भारत के पराक्रमी सम्राट विक्रमादित्य द्वारा प्रारंभ किये जाने के कारण इसे विक्रमी संवत् के नाम से जाना जाता है। विक्रमी संवत् के बाद ही वर्ष को 12 माह का और सप्ताह को 7 दिन का माना गया। इसके महीनों का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति के आधार पर रखा गया। विक्रमी संवत का प्रारंभ अंग्रेजी कलैण्डर ईसवीं सन् से 57 वर्ष पूर्व ही हो गया था।

चन्द्रमा के पृथ्वी के चारों ओर एक चक्कर लगाने को एक माह माना जाता है, जबकि यह 29 दिन का होता है। हर मास को दो भागों में बांटा जाता है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। कृष्ण पक्ष, में चाँद घटता है और शुक्ल पक्ष में चांद बढ़ता है। दोनों पक्ष प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी आदि ऐसे ही चलते हैं। कृष्ण पक्ष के अन्तिम दिन (यानी अमावस्या को) चन्द्रमा बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता है जबकि शुक्ल पक्ष के अन्तिम दिन (यानी पूर्णिमा को) चाँद अपने पूरे यौवन पर होता है।

अर्द्ध-रात्रि के स्थान पर सूर्योदय से दिवस परिवर्तन की व्यवस्था तथा सोमवार के स्थान पर रविवार को सप्ताह का प्रथम दिवस घोषित करने के साथ चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के स्थान पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से वर्ष का आरम्भ करने का एक वैज्ञानिक आधार है। वैसे भी इंग्लैण्ड के ग्रीनविच नामक स्थान से दिन परिवर्तन की व्यवस्था में अर्द्ध-रात्रि के 12 बजे को आधार इसलिए बनाया गया है क्योंकि उस समय भारत में भगवान भास्कर की अगवानी करने के लिए प्रात: 5-30 बज रहे होते हैं। वारों के नामकरण की विज्ञान सम्मत प्रक्रिया को देखें तो पता चलता है कि आकाश में ग्रहों की स्थिति सूर्य से प्रारम्भ होकर क्रमश: बुध, शुक्र, चन्द्र, मंगल, गुरु और शनि की है। पृथ्वी के उपग्रह चन्द्रमा सहित इन्हीं अन्य छह ग्रहों पर सप्ताह के सात दिनों का नामकरण किया गया। तिथि घटे या बढ़े किंतु सूर्य ग्रहण सदा अमावस्या को होगा और चन्द्र ग्रहण सदा पूर्णिमा को होगा, इसमें अंतर नहीं आ सकता। तीसरे वर्ष एक मास बढ़ जाने पर भी ऋतुओं का प्रभाव उन्हीं महीनों में दिखाई देता है, जिनमें सामान्य वर्ष में दिखाई पड़ता है। जैसे,वसंत के फूल चैत्र-वैशाख में ही खिलते हैं और पतझड़ माघ-फाल्गुन में ही होती है। इस प्रकार इस कालगणना में नक्षत्रों, ऋतुओं, मासों व दिवसों आदि का निर्धारण पूरी तरह प्रकृति पर आधारित वैज्ञानिक रूप से किया गया है।

ऎतिहासिक संदर्भ

वर्ष प्रतिपदा पृथ्वी का प्राकट्य दिवस, ब्रह्मा जी के द्वारा निर्मित सृष्टि का प्रथम दिवस,  सतयुग का प्रारम्भ दिवस, त्रेता में भगवान श्री राम के राज्याभिषेक का दिवस (जिस दिन राम राज्य की स्थापना हुई), द्वापर में धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक दिवस होने के अलावा कलयुग के प्रथम सम्राट परीक्षित के सिंहासनारूढ़ होने का दिन भी है। इसके अतिरिक्त देव पुरुष संत झूलेलाल, महर्षि गौतम व समाज संगठन के सूत्र पुरुष तथा सामाजिक चेतना के प्रेरक डॉ. केशव बलिराम हेड़गेवार का जन्म दिवस भी यही है। इसी दिन समाज सुधार के युग प्रणेता स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी। वर्ष भर के लिए शक्ति संचय करने हेतु नौ दिनों की शक्ति साधना (चैत्र नवरात्रि) का प्रथम दिवस भी यही है। इतना ही नहीं, दुनिया के महान गणितज्ञ भास्कराचार्य जी ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए पंचांग की रचना की। भगवान राम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति इसी दिन दिलाई। महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2071 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर यवन, हूण, तुषार, तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई थी। उसी विजय की स्मृति में यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती है।

अन्य काल गणनाएं

ग्रेगेरियन (अंग्रेजी) कलेण्डर की काल गणना मात्र दो हजार वर्षों के अति अल्प समय को दर्शाती है। जबकि यूनान की काल गणना 3582 वर्ष, रोम की2759 वर्ष यहूदी 5770 वर्ष, मिस्त्र की 28673 वर्ष, पारसी 198877 वर्ष तथा चीन की 96002307 वर्ष पुरानी है। इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 112 वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में एक-एक पल की गणना की गयी है। जिस प्रकार ईस्वी सम्वत् का सम्बन्ध ईसा जगत से है उसी प्रकार हिजरी सम्वत् का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मुहम्मद साहब से है। किन्तु विक्रमी सम्वत् का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है।

ग्रन्थों व संतों का मत

स्वामी विवेकानन्द ने कहा था – ‘‘यदि हमें गौरव से जीने का भाव जगाना है, अपने अन्तर्मन में राष्ट्र भक्ति के बीज को पल्लवित करना है तो राष्ट्रीय तिथियों का आश्रय लेना होगा। गुलाम बनाए रखने वाले परकीयों की दिनांकों पर आश्रित रहनेवाला अपना आत्म गौरव खो बैठता है”। महात्मा गांधी ने 1944 की हरिजन पत्रिका में लिखा था ‘‘स्वराज्य का अर्थ है- स्व-संस्कृति, स्वधर्म एवं स्व-परम्पराओं का हृदय से निर्वहन करना। पराया धन और परायी परम्परा को अपनाने वाला व्यक्ति न ईमानदार होता है न आस्थावान”। नव संवत् यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमशः 45 व 15 में भी विस्तार से दिया गया है।

स्वाधीनता के पश्चात

देश की स्वाधीनता के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में पंचाग सुधार समिति का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष प्रो मेघनाथ साहा थे। वे स्वयं तो परमाणु वैज्ञानिक थे ही साथ ही उनकी इस समिति में एक भी सदस्य ऐसा नहीं था, जो भारत की ज्योतिष विद्या या हमारे धर्म शास्त्रों का ज्ञान रखता हो। यही नहीं, प्रो. साहा स्वयं भी भारतीय कालगणना के सूर्य सिद्धांत के सर्वथा विरोधी थे तथा ज्योतिष को मूर्खतापूर्ण मानते थे। परिणामत: इस समिति ने जो पंचाग बनाया उसे ग्रेगेरियन कलेंडर के अनुरूप ही बारह मासों में बांट दिया गया। अंतर केवल उनके नामकरण में रखा। अर्थात जनवरी, फरवरी आदि के स्थान पर चैत्र, वैशाख आदि रख दिए। लेकिन, महीनों व दिवसों की गणना ग्रेगेरियन कलेंडर के आधार पर ही की गई।

पर्व एक नाम अनेक

चेती चांद का त्यौहार, गुडी पडवा त्यौहार (महाराष्ट्र), उगादी त्यौहार (दक्षिण भारत) भी इसी दिन पड़ते हैं। वर्ष प्रतिपदा के आसपास ही पडने वाले अंग्रेजी वर्ष के अप्रैल माह से ही दुनियाभर में पुराने कामकाज को समेटकर नए कामकाज की रूपरेखा तय की जाती है। समस्त भारतीय व्यापारिक व गैर व्यापारिक प्रतिष्ठानों को अपना-अपना अधिकृत लेखा जोखा इसी आधार पर रखना होता है जिसे वही-खाता वर्ष कहा जाता है। भारत के आय कर कानून के अनुसार प्रत्येक कर दाता को अपना कर निर्धारण भी इसी के आधार पर करवाना होता है जिसे कर निर्धारण वर्ष कहा जाता है। भारत सरकार तथा समस्त राज्य सरकारों का बजट वर्ष भी इसी के साथ प्रारंभ होता है। सरकारी पंचवर्षीय योजनाओं का आधार भी यही वित्तीय वर्ष होता है।

कैसे करें नव वर्ष का स्वागत

हमारे यहां रात्रि के अंधकार में नववर्ष का स्वागत नहीं होता बल्कि, भारतीय नव वर्ष तो सूरज की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है। सभी को नववर्ष की बधाई प्रेषित करें। नववर्ष के ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से घर में सुगंधित वातावरण बनाएं। शंख व मंगल ध्वनि के साथ प्रभात फेरियां निकालकर ईश्वर उपासना हेतु बृहद यज्ञ करें तथा गौओं, संतों व बड़ों की सेवा करें। घरों, कार्यालयों व व्यापारिक प्रतिष्ठानों को भगवा ध्वजों व तोरण से सजाएं। संत, ब्राह्मण, कन्या व गाय इत्यादि को भोजन कराएं। रोली-चन्दन का तिलक लगाते हुए मिठाइयां बांटें। इनके अलावा नववर्ष प्रतिपदा पर कुछ ऐसे कार्य भी किए जा सकते हैं जिनसे समाज में सुख, शान्ति, पारस्परिक प्रेम तथा एकता के भाव उत्पन्न हों। जैसे, गरीबों और रोगग्रस्त व्यक्तियों की सहायता, वातावरण को प्रदूषण से मुक्त रखने हेतु वृक्षारोपण, समाज में प्यार और विश्वास बढ़ाने के प्रयास, शिक्षा का प्रसार तथा सामाजिक कुरीतियां दूर करने जैसे कार्यों के लिए संकल्प लें। सामुदायिक सफाई अभियान,खेल कूद प्रतियोगिताएँ, रक्त दान शिविर इत्यादि का आयोजन भी किया जा सकता है। आधुनिक साधनों (यथा एस एम एस, ई-मेल, फेस बुक, व्हॉट्स ऐप, और्कुट के साथ-साथ बैनर, होर्डिंग व कर-पत्रकों) के माध्यम से भी नव वर्ष की बधाइयाँ प्रेषित करते हुए उसका महत्व जन-जन तक पहुंचाएं।

इन श्रेष्ठताओं को राष्ट्र की ऋचाओं में समेटने एवं जीवन में उत्साह व आनन्द भरने के लिये यह नव संवत्सर की प्रतिपदा प्रति वर्ष समाज जीवन में आत्म गौरव भरने के लिए आता है। आवश्यकता इस बात की है कि हम सब भारतवासी इसे पूरी निष्ठा के साथ आत्मसात कर धूम-धाम से मनाएं और विश्व भर में इसका प्रकाश फैलाएं। आओ! सन् को छोड़ संवत अपनाएं, निज गौरव का मान जगाएं॥

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

12,705 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress