होमोसैपिऐन्स का इतिहास

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क्रम विकास के फलस्वरूप आज से लगभग पच्चीस लाख साल पहले मानव के विकास की शृंखला की शुरुआत अफ़्रीका में होमो(Homo) के उद्भव के साथ हुई। फिर काल क्रम में इसकी कई एक प्रजातियाँ विकसित हुई और अन्त में आधुनिक मनुष्य- (होमो सैपिएन्स) का विकास करीब दो लाख साल पूर्व पूर्वी अफ्रीका में हुआ। मनुष्य के इतिहास की शुरुआत आज से सत्तर हजार पहले संज्ञानात्मक क्रान्ति(Cognitive revolution) ही हुई। जब उसने बोलने की, शब्द गठन करने की क्षमता पाई। और तब वह अपने मूल स्थान से अन्य क्षेत्रों— यूरोप एशिया में पसरता गया। इतिहास का अगला पड़ाव करीब 12000 साल पहले कृषि क्रान्ति(Agricultural Revolution) के साथ आया, जब आदमी ने खेती करना शुरु किया। आदमी अब यायावर नहीं रह गया, वह स्थाई बस्तियों में रहने लगा। सभ्यता और संस्कृति के विकास की कहानियाँ बनने लगीं। अब जब मनुष्य ने समझने और अपनी समझ जाहिर करने की क्षमता हासिल कर ली थी, तो उसने अपने चारों ओर के साथ अपने रिश्ते को समझने की कोशिश की। धरती, आसमान और समुन्दर को समझने की कोशिश की। जानकारियाँ इकट्ठी होती चली गईं। ये जानकारियाँ विभिन्न समय में अनेक धाराओं में प्रतिष्ठित हुई।. ये धाराएँ धर्म कहलाईं। अब आदमी के पास अपनी समस्याओं, कौतूहल और सवालों के जवाब पाने का एक जरिया हासिल हो गया था। उसे आश्वस्त किया गया कि जीवनयापन के लिए आवश्यक सारी महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राचीन काल के मनीषियों द्वारा हमें धार्मिक ग्रन्थों अथवा मौखिक परम्पराओं में उपलब्ध कराई जा चुकी है। इन ग्रन्थों और परम्पराओं के समीचीन अध्ययन और समझ के जरिए ही हम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। लोगों की आस्था थी कि वेद, कुरान और बाइबिल जैसे धर्मग्रन्य़ों में विश्व ब्रह्माण्ड के सारे रहस्यों का विवरण उपलब्ध है। इन धर्मग्रन्य़ों के अध्ययन या किसी जानकार, ज्ञानी व्यक्ति से सम्पर्क करने पर सारे सवालों के जवाब मिल जाएँगे । इसलिए नया कुछ आविष्कार किए जाने की जरूरत नहींं हैं। ज़िम्मेदारी के साथ कहा जा सकता है कि सोलहवीं सदी के पहले आदमी प्रगति और विकास की आधुनिक अवधारणा में विश्वास नहीं करता था। उनकी समझ थी कि स्वर्णिम काल अतीत में था और विश्व स्थिर है। जो पहले नहीं हुआ, वह भविष्य में नहीं हो सकता। युगों की प्रज्ञा का श्रद्धा से अनुपालन से स्वर्णिम अतीत को वापस लाया जा सकता है और मानवीय विदग्धता हमारी रोज़ाना ज़िदगी के अनेक पहलुओं में सुधार ला सकती है। लेकिन दुनिया के बुनियादी समस्याओं से उबरना आदमी के कूवत में नहीं है। जब सब कुछ जानने वाले बुद्ध, कनफूसियस, ईसा मसीह, और मोहम्मद अकाल, भुखमरी, रोग, और युद्ध रोकने में नाकामयाब रहे तो इन्हें रोकने की उम्मीद करना दिवास्वप्न ही है। हालाँकि तब की सरकारें और सम्पन्न महाजन शिक्षा और वृत्ति के लिए अनुदान का आबण्टन करते थे, किन्तु उनका उद्देश्य उपलब्ध क्षमताओं को सँजोना और सँवारना था, न कि नई क्षमता हासिल करना । तब का ठेठ शासक पुजारियों, दार्शनिकों और कवियों को इस आशा से दान दिया करते थे कि वे उनके शासन को वैधता प्रदान करेंगे और सामाजिक व्यवस्था को कायम रखेंगे। उन्हें इनसे ऐसी कोई उम्मीद नहीं रहती थी कि वे नई चिकित्सा पद्धति का विकास करेंगे या नए उपकरणों का आविष्कार करेंगे और आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करेंगे। सोलहवीं शताब्दी से जानकारियों की एक स्वतंत्र धारा उभरी. इसे वैज्ञानिक धारा के रुप में पहचाना जाता है। वैज्ञानिक क्रान्ति(Scientific revolution) ने सन 1543 में कॉपर्निकस की विख्यात पाण्डुलिपि डि रिवॉल्युशनिबस ऑर्बियम सिलेस्चियम( ऑन द रिवॉल्यूशन ऑफ हेवनली स्फियर्स) के प्रकाशन के साथ आहट दी थी। इस पाण्डुलिपि ने स्पष्टता के साथ ज्ञान की पारम्परिक धाराओं की स्थापित मान्यता कि पृथ्वी ब्रहमाण्ड का केन्द्र है के साथ स्पष्ट असहमति की घोषणा की। कॉपर्निकस ने कहा कि सूर्य़ न कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केन्द्र है। पारम्परिक प्रज्ञा(wisdom) के साथ असहमति वैज्ञानिक नजरिए की पहचान है। कॉपर्निकस की पाण्डुलिपि के प्रकाशन के 21 साल पहले मैगेल्लान का अभियान पृथ्वी की परिक्रमा कर स्पेन लौटा था । इससे यह स्थापित हुआ कि पृथ्वी गोल है। इससे इस स्वीकृति का आधार मिला कि हम सब कुछ नहीं जानते। नई जानकारियाँ हमारी जानकारियों को गलत साबित कर सकती हैं। कोई भी अवधारणा, विचार, या सिद्धान्त ऐसा नहीं होता. जो पवित्र और अन्तिम हो और जिसे चुनोती नहीं दिया जा सके। अगली सदी में फ्रांसीसी गणितज्ञ रेने डेस्कार्टेस(Rene Descartes) ने वैज्ञानिक पद्धतियों से सारे स्थापित सत्य की वैधता का परीक्षण करने की वकालत की। अन्त में सन 1859 में चार्ल्स डार्विन के विकासवाद का सिद्धान्त प्रतिपादित होेने के साथ वैज्ञानिक विचारधारा विचार को व्यापक स्वीकृति और सम्माननीयता मिली। विज्ञान की पहचान इस बात में निहित है कि वह यह खुले तौर पर सबसे अधिक महत्वपूर्ण विषयों के बारे में सामूहिक अज्ञान स्वीकार करता है। विज्ञान का वक्तव्य है कि . डार्विन ने कभी नहीं दावा किया कि वे जीव वैज्ञानिकों की आखिरी मोहर हैं और उनके पास सारे सवालों के अन्तिम जवाब हैं। धर्म का आधार आस्था है, विज्ञान का परम्परा से मिली प्रज्ञा से असहमति। विज्ञान सवाल पूछने को प्रोत्साहित करता है, धर्म सवाल उठाने को निरुत्साहित करता है। आधुनिक विज्ञान का आधार यह स्वीकृति है कि हम सब कुछ नहीं जानते। और भी अधिक महत्वपूर्ण है कि विज्ञान स्वीकार करता है कि नई जानकारियाँ हमारी जानकारियों को गलत साबित कर सकती हैं। कोई भी अवधारणा, विचार, या सिद्धान्त ऐसा नहीं होता. जो पवित्र और अन्तिम हो और जिसे चुनौती नहीं दिया जा सके। विज्ञान नाजानकारी को स्वीकृति देने के साथ नई जानकारियाँ इकट्ठा करने का लक्ष्य रखता है। अवलोकनों को इकट्ठा कर उन्हें व्यापक सिद्धान्तों मेंं बदलने के लिए गणितीय उपकरणों का उपयोग कर ऐसा किया जाता है। आधुनिक विज्ञान नए सिद्धान्त देने तक सीमित नहीं रहता, इन सिद्धान्तों का उपयोग नई क्षमताएँ हासिल करने और नई तकनीकों को विकसित करने में होता है।

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