बाघों की बढ़ती मौत चिंता का विषय

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प्रभुनाथ शुक्ल

वन्यजीव प्रकृति की धरोहर हैं। वन्य प्राणियों की सुरक्षा हमारा मानवीय व राष्ट्रीय धर्म भी है। लेकिन इंसान की पैसा कमाने की लालच संरक्षित प्राणियों पर भारी पड़ रही है। भारत में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए अनगिनत कानून होने के बावजूद भी संरक्षित जंगली प्राणियों की मौत का सिलसिला नहीं थम रहा है। हमारे लिए यह बेहद शर्मनाक और चिंता का विषय है। बाघ यानी टाइगर संरक्षित वन्यजीव है। फिर भी हम बाघों की मौत पर लगाम नहीं लगा पा रहे। जबकि देश में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण भी कार्यरत है।

राज्यसभा में वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव का संरक्षित वन्यप्राणी बाघ के सम्बन्ध में यह बयान चौंकाने वाला है। हमारी बाघ संरक्षण नीति पर ही यह सवाल उठाता है। भारत में सालदरसाल बाघों की मौत चिंता का विषय है। साल 2021 में 127 बाघों की मौत हुई। यह आंकड़ा साल 2020 से अधिक है। इस साल 106 बाघों की मौत हुई थी। 2019 में यह आंकड़ा 96 था यानी देश के वनीय, पर्वतीय और संरक्षित टाइगर इलाकों में बाघों की मौत थम नहीं रही। बाघों के शिकार पर भी हम रोक लगाने में पूरी तरह सफल नहीं हैं।

संरक्षित बाघों की मौत के पीछे जलवायु परिवर्तन का मुद्दा भी मुख्य हो सकता है। इसके अलावा संरक्षित वन क्षेत्रों में दूसरी सुविधाओं का भी असर उनकी मौत पर पड़ता है। पर्याप्त भोजन की सुलभता, बीमारी की हालत में समय पर इलाज उपलब्ध ना होना। तीन सालों से जारी कोरोना महामारी भी इसका कारण हो सकती है। क्योंकि वन्यजीवों में भी कोविड के लक्षण पाए गए थे। वृद्धावस्था की वजह से भी इनकी मौत होती है। जंगल के संरक्षित इलाके में आपसी संघर्ष में इनकी जान चली जाती है। जंगल से निकल कर सड़कों पर आते हैं तो सड़क दुर्घटनाओं में भी इन्हें अपनी जान गवानी पड़ती है। बिजली करंट की चपेट में आने से भी हादसे होते हैं। इसके अलावा शिकारियों की तरफ से किया गया शिकार भी इनकी मौत का कारण बनता है।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 के दिसंबर माह तक 127 बाघों में से 60 की मौत संरक्षित वन क्षेत्र के बाहर हुई। इन मौतों के पीछे शिकारियों की तरफ से शिकार, इंसानों और जानवरों के बीच संघर्ष के साथ दूसरे कारण हो सकते हैं। महाराष्ट्र में सबसे अधिक 27 कर्नाटक में 15 उत्तर प्रदेश में नौ बाघों की मौत हुई। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के अनुसार इनका जीवन काल सिर्फ 10 से 12 साल का होता है। फिलहाल कारण जो भी रहे हो, लेकिन बाघों की मौत हमारे लिए बेहद चिंतनीय है। बाघ हमारी राष्ट्रीय धरोहर और संरक्षित प्राणी हैं। बाघों की हत्या वन्यजीव अधिनियम के तहत कानूनी जुर्म और संगेय अपराध है।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण साल 2012 बाघों की मौत का आंकड़ा सार्वजनिक करना शुरू किया। भारत में बाघों की गणना साल 2018 में हुई थी। उस समय 2,967 बाघों के घर मिले थे। आकड़ों के संदर्भ में देखा जाय तो बाघों की मौत में तकरीबन 20 फिसदी की वृद्धि हुई है। मध्यप्रदेश में 526 महाराष्ट्र में 312 मैं 524 उत्तर प्रदेश में 173 बाघ थे। केंद्र सरकार सरकार ने 1973 में बाघों के संरक्षण के लिए काम करना शुरू किया। सरिस्का और पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की विलुप्त हो चुकी प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए कार्य किया गया। यहां वन मंत्रालय और सरकार के प्रयास से विलुप्त कई प्रजातियों को संरक्षित किया गया। वन्य जीव संरक्षण को लेकर राज्यसभा में वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव की तरफ से जो आंकड़े रखे गए हैं उन पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक है। संरक्षित वन्यजीव के जीवन की रक्षा हर कीमत पर होनी चाहिए।

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