मृत्यु के कई कई दिनों बाद मौत की अनुभूति होती

—विनय कुमार विनायक
मृत्यु के कई कई दिनों के बाद ही
मनुष्य को मौत की अनुभूति होती!

मृत्यु के बाद सूक्ष्म देहधारी आत्मा
मृत देह के पास जाती प्रयास करती
अपने मृत शरीर में जाने समाने की!

परिजनों को अवाक होकर निहारती
कभी इसके पास, कभी उसके पास
कभी श्मशान कभी कब्रिस्तान जाती!

स्वप्नवत् उन्हें कभी बहुत पीड़ा होती
जलते जलाते हुए स्वदेह को देखकर
कभी देह पर मिट्टी डालते लोगों की
क्रिया-कलाप से आत्मा विलाप करती!

कभी उन्हें आश्चर्य होती यह अनुभव कर
कि उनके पास लोग उनसे बात नहीं करते
ध्यान नहीं देते,पूर्ववत मनुहार नहीं करते!

शरीर विहीन जीवात्मा बहुत विवश हो जाती,
चाहकर कुछ कह न पाती कहीं जा ना पाती
वायवीय आत्मा जहां तहां अटक भटक जाती!

स्वजनों से इच्छा से न मिलने से कराहती
कभी सुनसान कभी वियावान घने अंधेरे में
भिन्न-भिन्न तरह के डरावने दृश्य देखकर
यमत्रास अनुभव करती बिना देह की जीती!

कभी अहसास होता वो जो दिख रहे मां पिता,
पुत्र पुत्री,पति पत्नी होंगे मगर अगले ही क्षण
सिरकटी लाश हो जाते अट्टहास करके डराते!

स्थिति तब और बुरी हो जाती जब अनजाने
असमय दुर्घटना घटने से देह नष्ट हो जाती
आत्मा भूख प्यास भय संशय से छटपटाती!

विचित्र दशा होती इच्छा कामना वासना युक्त
अशरीरी आत्मा की, चाहे पुनर्जन्म या मुक्ति!
—-विनय कुमार विनायक

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