ग्रामों में युवा वर्ग में शराब के सेवन की बढ़ती प्रवृत्ति चिन्ताजनक

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मनमोहन कुमार आर्य

                वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने अपने निवास पर 5 दिवसीय ऋग्वेद यज्ञ एवं वेदकथा का आयोजन किया है। यह कार्यक्रम आज दिनांक 7-9-2022 को आरम्भ हुआ। इससे पूर्व देहरादून में जाखन स्थित दून विहार कालोनी में दिनांक 4-9-2022 को एक शोभायात्रा भी निकाली जा चुकी है जिससे सभी कालोनी निवासी इस आयोजन में उपस्थित होकर इसका लाभ ले सकें। आज दिनांक 7-9-2022 को प्रातः 8.00 बजे ऋग्वेद यज्ञ आरम्भ हुआ। यज्ञ के ब्रह्मा ऋषिभक्त आर्य विद्वान श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी, हरिद्वार हैं। यज्ञ मे मंत्रोच्चार द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल, देहरादून की छात्रायें एवं आचार्यायें कर रही हैं। यज्ञ के यजमान श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी व उनके पारिवारिकजन हैं। शर्मा जी प्रत्येक वर्ष अपने निवास पर सितम्बर महीने में वृहद यज्ञ एवं सत्संग का आयोजन करते हैं। इसी श्रृंखला में इस वर्ष का आयोजन किया गया है। यज्ञ की पूर्णाहुति आगामी रविवार दिनांक 11-7-2022 को दिन में लगभग 12.00 बजे होगी। यज्ञ में यजमानों सहित अतिथिगणों ने भी आहुतियां प्रदान कीं। यज्ञ सम्पन्न होने पर यज्ञ प्रार्थना आर्य भजनोपदेशक श्री नरेन्द्रदत्त आर्य जी ने बहुत ही मधुर स्वरों में कराई। इस प्रार्थना को सुनकर वा साथ में गाकर मन ईश्वर के प्रति श्रद्धा से भर गया। यज्ञ प्रार्थना के बाद यज्ञ के ब्रह्मा पं. शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने सभी यजमानों एवं अतिथियों को जल छिड़क कर वैदिक वचनों से आशीर्वाद दिया जिसमें उनके स्वस्थ, सुखी एवं समृद्ध जीवन सहित दीर्घ आयु की कामना की गई।

                यज्ञ के पश्चात पं. नरेन्द्रदत्त आर्य जी के भजन तथा आचार्य डा. धनंजय जी तथा पं. शैलेशमुनि सत्यार्थी जी के उपदेश हुए। आचार्य शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने कहा कि प्राचीन काल में सभी नागरिक अपने बच्चों को गुरुकुलों में पढ़ाते थे। सब बच्चों के लिए एक समान व्यवस्थायें होती थी। उनमें किसी से किसी प्रकार का किंचित भेदभाव नहीं किया जाता था। आचार्य जी ने गुरुकुल की विशेषताओं पर विस्तार से प्रकाश डाला और गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति को संस्कार निर्माण सहित सन्तानों को योग्य नागरिक बनाने वाली शिक्षा प्रणाली बताया। आचार्य सत्यार्थी जी ने कहा कि परमात्मा का सुख भाई के होने जैसे के सुख के समान होता होता है। उन्होंने ऋषि दयानन्द का उल्लेख कर बताया कि योगेश्वर श्री कृष्ण आप्त पुरुष थे। उन्होंने अपने जीवन में पाप या कोई बुरा काम कभी नहीं किया। आचार्य शैलेश मुनि जी ने ग्रामों में युवा वर्ग में शराब के सेवन की बढ़ती प्रवृत्ति पर दुःख एवं चिन्ता व्यक्त की। आचार्य जी ने गांवों के प्रधान पद के लिये होने वाले निर्वाचनों में प्रत्यार्थियों द्वारा अपनायें जाने वाले अनैतिक कार्यों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आजकल गांव के प्रधान में प्रत्याशी 1 करोड़ व अधिक तक की धनराशि व्यय करते हैं। आचार्य जी ने कहा कि गांवों में शराब के सेवन से होने वाले बुरे परिणाम सामने आ रहे हैं। उन्होंने एक उदाहरण देकर बताया कि एक युवक ने अपनी दादी की इस लिए हत्या कर दी कि उसने उसे शराब के लिए पैसे नहीं दिए थे।

                आचार्य शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने बताया कि श्री कृष्ण जी ने हस्तिनापुर में दुर्योधन के भोजन ग्रहण करने के आमंत्रण को ठुकरा दिया था। कृष्ण जी ने दुर्योधन को कहा था कि भोजन मित्र के यहां ही किया जा सकता है। उन्होंने दुर्योधन को कहा था कि तुम मेरे मित्र नहीं हो। कृष्ण जी ने वार्तालाप में दुर्योधन को उसके बुरे कर्मों का ज्ञान कराया था। आचार्य जी ने रामायण के प्रसंग में विश्वामित्रवसिष्ठ संवाद एवं राम लक्ष्मण के ऋषि विश्वामित्र के साथ वनगमन का भी वर्णन किया। श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने कहा कि प्राणों के संकट में होने जैसी विपत्ति में अमित्र के यहां भी भोजन किया जा सकता है। आचार्य जी ने अपने व्याख्यान में महाभारत के आधार पर श्री कृष्ण और दुर्योधन से जुड़े अनेक प्रसंग प्रस्तुत किये। उन्होंने श्री कृष्ण जी द्वारा महाभारत का युद्ध रोकने के लिए पांडवों को मात्र पांच गांव देने वाला प्रसंग भी श्रोताओं को सुनाया। आचार्य जी ने कहा कि कृष्ण जी हस्तिनापुर यह जानते हुए भी गये थे कि दुर्योधन उनकी उचित बातों को स्वीकार नहीं करेगा। इसका कारण था कि भावी पीढ़ियां कृष्ण जी पर यह आरोप न लगायें कि उन्होंने युद्ध रोकने के प्रयत्न नहीं किए थे। श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी के धर्म प्रचार के कार्यों का उल्लेख किया व उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। सत्यार्थी जी ने कहा कि गुरुकुलों में शिक्षित ब्रह्मचारी कभी आत्महत्या नहीं करता जबकि आधुनिक शिक्षा में प्रवीण युवाओं में ऐसी प्रवृत्ति देखने को मिल रही हैं। उन्होंने गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली को उत्तम एवं आदर्श शिक्षा प्रणाली बताया।

                आचार्य शैलेशमुनि सत्यार्थी जी ने पांच क्लेशों की चर्चा की तथा उन्हें दूर करने के उपाय भी बताए। आचार्य जी ने इसके आगे मांसाहार से हानियां एवं शाकाहार भोजन के लाभों को बताया। उन्होंने कहा कि शाकाहार से शरीर में उत्पन्न बल शरीर को स्थायीत्व प्रदान करता है। आचार्य जी ने गृहणियों के गृह कार्यों का उल्लेख कर उनके श्रम व परिवार की उन्नति में उनके योगदान की सराहना की। आचार्य जी ने राग व द्वेष के स्वरूप को भी बताया और इनसे होने वाली हानियों से श्रोताओं को परिचित कराया। अभिनिवेश क्लेश अर्थात् मृत्यु के डर पर भी आचार्य जी ने प्रकाश डाला और इस मृत्यु के डर से बचने के उपाय व साधन भी श्रोताओं को बतायें।

                गुरुकुल पौंधा के आचार्य डा. धनंजय जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि मनुष्य जीवन का सामान्य कालखण्ड 100 वर्ष होता है। उन्होंने इससे जुड़े वेदमन्त्र के अर्थों पर भी प्रकाश डाला। आचार्य जी ने कहा कि भिन्न भिन्न मतों के आचार्य लोग अपने मत की प्रशंसा किया करते हैं और उसको स्वीकार करने को कहते हैं। वह कहते हैं कि उनके मत उसके अनुसार आचरण करने पर ही उन्हें सुख मिलेगा। उनकी यह बात सत्य नहीं होती। आचार्य जी ने कहा कि मनुष्य को सुख वेदानुसार सत्य मूल्यों पर आधारित जीवन जीने से मिलता है। आचार्य जी ने कहा कि मनुष्य जीवन का लक्ष्य अभ्युदय प्राप्त करना है। मनुष्य का दूसरा लक्ष्य निःश्रेयस को प्राप्त करना भी है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में लोग अपने जीवनों में अभ्युदय की प्राप्ति के ही कार्यों में लगे हैं। निःश्रेयस अर्थात् जन्म व मरण से मुक्ति व ईश्वर के सान्निध्य से प्राप्त होने वाले आनन्द से सभी अनभिज्ञ हैं। मनुष्यों को निःश्रेयस के लाभों व साधनों के विषय में बताने पर भी वह उपाय नहीं करते।

                अपने सम्बोधन में आचार्य धनंजय जी ने स्वामी श्रद्धानन्द जी की चर्चा की। उन्होंने बताया कि स्वामी श्रद्धानन्द जी ने ही गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना एवं संचालन किया था। आचार्य जी ने कहा कि हमें सुख तभी मिलेगा जब हम अभ्युदय प्राप्ति के कार्यों को करने के साथ निःश्रेयस की प्राप्ति के उपायों को भी करेंगे। उन्होंने कहा कि सुख तथा मोक्षआनन्द की प्राप्ति के लिए पुरुषार्थचतुष्टय की जीवन पद्धति को अपनाना होगा। आचार्य जी ने कहा वह सत्यार्थप्रकाश में ऋषि दयानन्द के वचनों को वेदों के समान ही प्रमाण मानते हैं। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द ने कहा है कि मनुष्यों को अपने सभी कार्यों को धर्मानुसार अर्थात् सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहियें। जीवन में सत्य का व्यवहार करने से जीवन सफल होता है। उन्होंने श्रोताओं को यह भी बताया कि ऋषि दयानन्द पराधीन भारत में स्वराज्य प्राप्ति की प्रार्थना परमात्मा से प्रतिदिन किया करते थे। श्री धनंजय आर्य जी ने श्रोताओं को कहा कि हम जो अर्थ का उपार्जन करते हैं वह धर्म के कार्यों से ही प्राप्त होना चाहिये। उन्होंने बताया कि संसार में सभी जीवों में सुख प्राप्ति की इच्छा होती है। वेदों में परमात्मा ने उपदेश करते हुए मनुष्यों को कहा है कि वह 100 व अधिक वर्षों तक जीवित रहने की इच्छा करें और इसके लिए वेदानुसार कर्मों को किया करें। सब मनुष्यों को त्याग का जीवन व्यतीत करना चाहिये। आचार्य धनंजय जी ने धर्मप्रेमी श्रोताओं को कहा कि मनुष्य को वेद एवं शास्त्रसम्मत कर्मों को करना चाहियें। सभी मनुष्यों को अभ्युदय प्राप्ति सहित निःश्रेयस प्राप्ति की भी इच्छा करनी चाहिये और इसके लिए शास्त्रविहित कर्मों व आचरणों को करना चाहिये।                 यज्ञ की समाप्ति एवं आचार्यों के उपदेशों से पूर्व प्रसिद्ध युवा भजनोपदेशक श्री नरेन्द्रदत्त आर्य जी के भजन हुए। उन्होंने कार्यक्रम आरम्भ करते हुए गायत्री मन्त्र को गाकर उसके हिन्दी अर्थों को भी बहुत ही सरस व मधुर स्वरों में गाया। उनके पहले भजन के आरम्भ के शब्द थे ‘इधर उधर मत डोल मनुआ इधर उधर मत डोल। नर तन सम नहीं कौनउ देहि। विषय वासना बेल है विष की इच्छा करता तू जिसकी, रस  में विष मत घोल, मनुआ इधर उधर मत डोल।।’ पंडित जी ने दूसरा भजन गाया जिसके बोल थे ‘कैसे जानेगें भगवान को नर नारि आज के। अन्धकार अज्ञान अविद्या में अति मोह लगाया मल विक्षेप आवरण से मन मन्दिर को अशुद्ध बनाया।।’ पंडित नरेन्द्र दत्त आर्य जी ने तीसरा भजन सुनाया जिसके बोल थे ‘अविद्या अन्धेरे में हम मार्ग भूल जाते हैं, मंजिल से अपनी हम प्रमिकूल हो जाते हैं।’ पंडित जी ने भजन गाते हुए कहा कि परमात्मा आंखों से देखने का विषय नहीं अपितु अनुभव का विषय है। समाज में अविद्या तेजी से फैल रही है। हमें विद्या को धारण करना चाहिये। उन्होंने कहा कि अविद्या ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। पंडित नरेन्द्र दत्त आर्य जी के भजनों को सुनकर सारे श्रोता भक्तिरस से सराबोर हो गये। उनके भजनों में इतनी मधुरता थी कि सभी भक्तों ने ईश्वर भक्ति का आनन्द प्राप्त किया। सबका मन ईश्वर में स्थिर सा हो रहा था। कार्यक्रम की समाप्ति पर शान्ति पाठ किया गया। इसके बाद सबने प्रातराश लिया। कार्यक्रम अत्यन्त सफल रहा। सब ऋषिभक्तों को वर्ष में इसी प्रकार के आयोजन अपने निवास स्थानो ंपर करने चाहिये और अपने मित्रों व पड़ोसियों को इसमें आमंत्रित करना चाहिये।

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