मदरसों में पढ़ाया जा रहा है ईशनिंदा का पाठ

संदर्भः उदयपुर में आतंकियों द्वारा कन्हैयालाल साहू की हत्या


प्रमोद भार्गव

               आखिकार उदयपुर में आंतकवादियों द्वारा की गई दर्जी कन्हैयालाल की बर्बर हत्या से जुड़ी जो शंकाएं थीं,वे सही साबित होती लग रही हैं।इस तालिबानी वारदात के तार पाकिस्तान परस्त आंतकी संगठन ‘दावत-ए-इस्लामी’ से तो जुड़े पाए ही गए हैं,हत्यारों में से एक गौस मोहम्मद 2014 में कराची (पाकिस्तान)जाकर आंतक का पाठ भी पढ़कर भारत आया।कराची से लौटने के बाद इसने धर्म के नाम पर मुस्लिम युवाओं को भड़काने का काम किया।इसी ने रियाज़ अख्तरी के साथ मिलकर कन्हैयालाल साहू की दुकान में घुसकर दिनदहाड़े निर्मम हत्या की।इस कराची कनेक्शन का खुलासा राजस्थान पुलिस ने इन दोनों की नामजद हत्यारों समेत  साजिश में शामिल एक अन्य की राजसमंद से गिरफ्तारी और फिर पूछताछ के बाद किया है।केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश पर एनआईए ने भी यूएपीए के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।पाक स्थित सुन्नी इस्लामी इस आंतकी संगठन का गठन 1981 में कराची में किया गया था।इस जघन्य हत्या के बाद केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने मदरसा शिक्षा पर सवाल उठाते हुए कहा है कि ‘छोटे बच्चों को सिखाया जा रहा है कि ईशनिंदा की सजा गला काटना है।यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि नाबालिगों को ईशनिंदा करने वालों का सिर कलम करने का पाठ पढ़ाया जा रहा है?यह मुस्लिम कानून कुरान से नहीं आया है, मुस्लिम शासकों के समय इसे व्यक्तियों ने लिखा है।खुदा का कानून मानकर नादान बच्चे इससे प्रभावित हो जाते हैं और उसी के मुताबिक व्यवहार करने लगते हैं।अतएव कोई पढ़ाई जब धर्म और आस्था से जोड़ दी जाती है तो लोग उस पर विश्वास करने लगते हैं।इसलिए इस बीमारी से निपटने का प्रयास होना चाहिए।’ यह अच्छी बात है कि इस हत्या पर मुस्लिम धर्मगुरूओं ने बड़ी संख्या में इस बर्बर हत्या की कड़ी निंदा की है।
             ईषनिंदा के बहाने अफगानिस्तान, पाकिस्तान, सीरिया जैसे देशों में दूसरे धर्म के लोगों की बर्बर हत्याएं करना आम बात है। यहां तक की बच्चों तक को बेरहमी से मार दिया जाता है। कन्हैया के भी आठ साल के पुत्र ने नुपुर शर्मा के समर्थन में पोस्ट की थी, न कि कन्हैया ने। यानी ये हत्यारे इतने बौराए हुए हैं कि इन्हें बालक की नासमझी पर भी तरस नहीं आता है। इनका दुस्साहस इस वारदात में इस हद तक दिखा कि आरोपी रियाज ने कन्हैया पर धारदार हथियार से हमला किया और गला रेता। गौस मोहम्मद ने इस घटना की वीडियो बनाई। घटना को अंजाम देने के बाद सोशल मीडिया पर वीडियो डाल दिया। इन हत्यारों ने मंजूर भी किया कि उन्होंने कन्हैया की हत्या इसलिए कि क्योंकि वह पैगंबर मोहम्मद पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाली नुपुर शर्मा का समर्थक था। इस हत्या के बाद रियाज ने 17 जून को बनाया एक अन्य वीडियो भी अपलोड किया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धमकाया गया है। इसी किस्म की वारदात को अंजाम 2019 में लखनऊ में हिंदू समाज पार्टी के नेता कमलेश तिवारी की हत्या करके दिया गया था। फेसबुक, वाट्सअप और ट्विटर जैसे प्लेटफार्म पर हिंसक वीडियो नहीं दिखाने के दावे तो बहुत करते हैं, बावजूद भड़काऊ आडियो-वीडियो दिखाने से बाज नहीं आते हैं। रियाज के वीडियो भी घटना के बाद लगातार वायरल होते रहे। अर्थात इनका किसी देश के सांप्रदायिक सद्भाव से कोई वास्ता नहीं है?

                जम्मू-कश्मीर में जब धारा-370 और 35-ए के खात्मे के बाद हालात सामान्य होने के साथ, जन-जीवन मुख्य धारा से जुड़ रहा है, तब कुछ पाकिस्तान परस्त आतंकी संगठन मासूमों को आतंक की राह पर धकेलने का क्रूर खेल, खेल रहे हैं। पुलिस की राज्य जांच एजेंसी (एसआईए) ने बच्चों से लेकर किशोंरों एवं युवाओ को गुमराह करने वाले जैष-ए-मोहम्मद के जमीनी कार्यकर्ताओं के नेटवर्क को कुछ समय पहले ध्वस्त किया था। इसके लिए दक्षिण और मध्य कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में छापे मारकर दस ओवरग्राउंड वर्करों को हिरासत में लिया है। इन साजिशकर्ताओं के साथ कुछ स्कूली छात्र भी शामिल थे। ये आतंकी पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन चलाने वाले सरगनाओं के संपर्क में थे। ये लोग किशोर उम्र के मासूमों को आतंकी संगठन के लिए भर्ती में जुटे थे। जिससे जिहाद कश्मीर की सीमाओं से बाहर निकालकर देश के षांत इलाकों में फैला दिया जाए।

             कुछ समय पहले भी दक्षिण-कश्मीर के शोपियां जिले में एक धार्मिक मदरसे के तेरह छात्रों के आतंकवादी समूहों में शामिल होने की खबर मिली थी। इस सिलसिले में जामिया-सिराज-उल-उलूम नाम के मदरसे के तीन अध्यापकों को जन-सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत गिरफ्तार भी किया गया था। इसे कश्मीर के नामी मदरसों में गिना जाता है। इसके पहले भी यह मदरसा हिंसक घटनाओं, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों और छात्रों के आतंकी वारदातों में शुमार होने के कारण जांच एजेंसियों के रडार पर रहा है। हैरानी है कि पिछले कुछ सालों में जो छात्र दक्षिण-कश्मीर में मारे गए हैं, उनमें से 13 ने इसी मदरसे से आतंकी इबारत का पाठ पढ़ा था। पुलवामा हमले में शामिल रहे सज्जाद बट ने भी यहीं से पढ़ाई की थी। अल-बदर का आतंकी जुबैर नेंगरू, हिजबुल का आतंकी नाजमीन डार और एजाज अहमद पाल भी जिहाद की इसी पाठशाला से निकले थे। यह मदरसा जमात-ए-इस्लामी से जुड़ा हैं। इस मदरसे में जम्मू-कश्मीर के अलावा उत्तर-प्रदेश, राजस्थान, केरल, और तेलंगाना के छात्र भी पढ़ने आते हैं। संभव है ।

इस खुलासे से साफ हुआ था कि सेना, सुरक्षाबलों और स्थानीय पुलिस का षिकंजा घाटी में कस रहा है। इसलिए आतंकी संगठन मदरसों में छात्रों को आतंक का पाठ पढ़ाकर देश में उत्पात मचाने को आतुर हैं। दरअसल बच्चों का मन निर्दोष और मस्तिश्क कोरा होता है, इसलिए उन्हें धार्मिक कट्टरता के बहाने आतंक का पाठ पढ़ाना आसान होता है। चूंकि धारा-370 और 35-ए के खात्मे के बाद घाटी की आम जनता खुले रूप में न केवल मुख्यधारा में शामिल हो रही है, बल्कि शासन-प्रशासन की योजनाओं में बढ़-चढ़कर भागीदारी कर लाभ भी उठा रही है। पुलिस और सुरक्षाबलों के लिए मुखबिरी का काम भी आम लोग करने लग गए हैं। इसलिए आतंकी संगठन जनता में घुसपैठ बनाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। नतीजतन ये मासूमों को आतंक का पाठ पढ़ाने की कवायद में लगे हैं। श्रीनगर में सात लाख पर्यटकों के पहुंचने से भी आतंकी गुट परेशान हैं।उनकी परेशानी अमरनाथ यात्रा को लेकर भी रहती है।

घाटी की आतंकी दौर में यह हकीकत रही है कि पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन जैष-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिद्नि ने जम्मू-कश्मीर में सेना और सुरक्षा बलों पर जो भी आत्मघाती हमले कराए हैं, उनमें बड़ी संख्या में मासूम बच्चों और किशोरों का इस्तेमाल किया गया था। इस सत्य का खुलासा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिशद् की ‘बच्चे एवं सशस्त्र संघर्ष‘ नाम से  आई रिपोर्ट में भी किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे आतंकी संगठनों में शामिल किए जाने वाले बच्चे और किशोरों को आतंक का पाठ मदरसों में पढ़ाया गया है। साल 2017 में कश्मीर में हुए तीन आतंकी हमलों में बच्चों के शामिल होने के तथ्य की पुष्टि हुई थी। पुलवामा जिले में मुठभेड़ के दौरान 15 साल का एक नाबालिग मारा गया था और सज्जाद बट शामिल था, जिसे अगस्त-2020 में सुरक्षाबलों ने मारा। यह रिपोर्ट जनवरी-2017 से दिसंबर तक की है। मुबंई के ताज होटल पर हुए आतंकी हमले में भी पाक द्वारा प्रशिक्षित नाबालिग अजमल कसाब शामिल था।

                रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में मौजूद आतंकी संगठनों ने ऐसे वीडियो जारी किए हैं, जिनमें किशोरों को आत्मघाती हमलों का प्रषिक्षण दिया जा रहा है। पाकिस्तान में सशस्त्र समूहों द्वारा बच्चों व किशोरों को भर्ती किए जाने और उनका इस्तेमाल आत्मघाती हमलों मेें किए जाने की लगातार खबरें मिल रही हैं। जनवरी-17 में तहरीक-ए-तालिबान ने एक विडीयो जारी किया था, जिसमें लड़कियों सहित बच्चों को सिखाया जा रहा है कि आत्मघाती हमले किस तरह किए जाते हैं। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनियाभर में बाल अधिकारों के हनन के 21,000 मामले सामने आए हैं। पिछले साल दुनियाभर में हुए संघर्षों में 10,000 से भी ज्यादा बच्चे मारे गए या विकलांगता का शिकार हुए। आठ हजार से ज्यादा बच्चों को आतंकियों, नक्सलियों और विद्रोहियों ने अपने संगठनों में शामिल किया है। ये बच्चे युद्ध से प्रभावित सीरिया, अफगानिस्तान, यमन, फिलीपिंस, नाईजीरिया, भारत और पाकिस्तान समेत 20 देषों के हैं। भारत के जम्मू-कश्मीर में युवाओं को आतंकवादी बनाने की मुहिम कश्मीर के अलगाववादी चलाते रहे थे, लेकिन अब उनकी कमर टूट गई है और यासीन मलिक जैसे आतंकी तिहाड़ जेल की हवा खा रहे है।

दरअसल कष्मीरी युवक जिस तरह से आतंकी बनाए जा रहे हैं, यह पाकिस्तानी सेना और वहां पनाह लिए आतंकी संगठनों का नापाक मंसूबा है। पाक की अवाम में यह मंसूबा पल रहा है कि ‘हंस के लिया पाकिस्तान, लड़के लेंगे हिंदुस्तान।‘ इस मकसदपूर्ति के लिए मुस्लिम कोैम के उन गरीब और लाचार बच्चों, किशोर और युवाओं को इस्लाम के बहाने आतंकवादी बनाने का काम में किया जा रहा है, जो अपने परिवार की आर्थिक बदहाली दूर करने के लिए आर्थिक सुरक्षा चाहते हैं। पाक सेना के भेश में यही आतंकी अंतरराश्ट्रीय नियंत्रण रेखा को पार कर भारत-पाक सीमा पर छद्म युद्ध लड़ रहे हैं। कारगिल युद्ध में भी इन छद्म बहरुपियों की मुख्य भूमिका थी। इस सच्चाई से पर्दा संयुक्त राष्ट्र ने तो अब उठाया है, किंतु खुद पाक के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल एवं पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के सेवानिवृत्त अधिकारी रहे, शाहिद अजीज ने ‘द नेषनल डेली अखबार‘ में पहले ही उठा दिया था। अजीज ने कहा था कि ‘कारगिल की तरह हमने कोई सबक नहीं लिया है। हकीकत यह है कि हमारे गलत और जिद्दी कामों की कीमत हमारे बच्चे अपने खून से चुका रहे हैं।‘ कमोबेष आतंकवादी और अलगाववादियों की षह के चलते यही हश्र कश्मीर के युवा आज भी भोग रहे हैं। यहां सवाल यह भी उठता है कि वारदातों के बाद जो दरिंदे पकड़े जाते हैं, उनकी अदालती लड़ाई कौन लड़ता है ? यह धन कहां से आता है ? इनके बच्चों और परिजनों के दायित्व का बोझ कौन उठाता है ? तीस्ता सीतलवाड़ जैसी सामाजिक कार्यकर्ताओं और ऑल्ट न्यूज़ के पत्रकार जुबैर खान की हकीकत तो अब सामने आ ही गई है, लेकिन ऐसे लोगों की एक पूरी संस्थागत श्रृंखला है, जिसका खुलासा होना आवश्यक है।

       उदयपुर की इस हृदयविदारक घटना से निपटने का साहस अषोक गहलोत जैसे मुख्यमंत्री के बस की बात नहीं है। यदि वे मजहबी उन्माद से उपजी वारदातों को काबू में ले पाते तो वहां बार-बार सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने वाली घटनाएं देखने में नहीं आती। क्योंकि सरकार वोट-बैंक के लालच में तुष्टिकरण की नीति के चलते कबीलाई दौर की मानसिकता पर अंकुशलगाने में नाकाम रही है। तुष्टिकरण के चलते ही गहलोत ने कन्हैया की सुरक्षा तक वापस ले ली थी। इसीलिए कन्हैया के पुत्र रोहित ने पुलिस पर सजग नहीं रहने के आरोप लगाए हैं। हालांकि घटना के बाद अनेक मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने इस वारदात को कानून ही नहीं इस्लाम की नजर में गलत मानते हुए इन्हें पवित्र पैगंबर की शिक्षाओं के खिलाफ माना है। बहरहाल राजस्थान में बढ़ती आतंकी वारदातों पर अंकुश के लिए केंद्र सरकार को ही कठोर उपाय करने होंगे।

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