ब्रह्मानंद मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार
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जमीनी हकीकत से कोसों दूर हो चुकी कांग्रेस ने अपने चुनावी वादे में इस बार गरीबों के साथ ‘न्याय’ करने का एक नया शिगूफा छोड़ा है. जिस तरह से सत्ता पर काबिज होने का उतावलापन लिये कांग्रेस एक से बढ़कर एक वादे कर रही है, उसमें सच्चाई और ईमानदारी की कल्पना तो कांग्रेसी भी नहीं कर रहे होंगे. कांग्रेस जनता को जो सपने 2019 में आकर दिखा रही है, वही तथाकथित समाजवादी सपने इंदिरा गांधी के समय से दिखाये जाते रहे हैं. गरीबी हटाओ की जो कवायद 50 साल पहले शुरू हुई थी, अब नये रंग-रोगन के साथ प्रस्तुत है। तस्वीर बदल गयी है अब इंदिरा गांधी की जगह राहुल की मुस्कराती तस्वीर लग गयी है. देश और दुनिया के आर्थिक हालातों को देखकर अगर कांग्रेस के रणनीतिकार फैसला करते, तो शायद गरीबी उन्मूलन और रोजगार सृजन को लेकर बेहतर और दूरगामी दृष्टिकोण प्रस्तुत कर पाते. उत्साहित होकर कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने तो यहां तक कह दिया कि कांग्रेस की घोषणा से मौजूदा चुनावी मिजाज ही बदल जायेगा. चिदंबरम ने दावा किया कि बेरोजगारी, कृषि समस्या और महिला सुरक्षा कांग्रेस की तीन शीर्ष प्राथमिकताएं हैं.
इससे कौन असहमत हो सकता है कि इस दौर में भी बेरोजगारी सबसे बड़ी चिंता का विषय है. यह समस्या अकेले आज नहीं उठ खड़ी हुई है, ये कांग्रेसी सरकारों की नीतिगत अपंगता का ही परिणाम है. अगर कृषि में लगे छोटे किसानों और खेतिहर मजदूरों को वैकल्पिक रोजगार दिलाने वाली नीतियों पर समय रहते काम किया गया होता, तो शायद समस्या इतनी भयावह नहीं होती. लंबे अरसे से खेती-किसानी नजरअंदाज होती रही, रोटी-रोजगार की तलाश में मजदूरों का पलायन होता रहा, जिससे शहरों में आबादी का बोझ बढ़ा और रोजगार का संकट भी. लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों ने इस समस्या को इतना बड़ा माना ही नहीं कि उस पर कोई ठोस पहल हो सके.
कांग्रेस के चुनावी वादे संशय पैदा करते हैं, जिसके पीछे मुख्य रूप से दो कारण है- पहला यूपीए की पूर्ववती सरकारों का अकंठ भ्रष्टाचार और ठोस नीति को बनाने तथा उसको लागू करने की प्रशासनिक अक्षमता. साल 2012-13 का आर्थिक सर्वेक्षण स्पष्ट रूप से कहता है कि उद्योग जगत में असंतोष और गिरावट की मुख्य वजह सरकार द्वारा पैदा की गयी अनिश्चितता और भ्रष्टाचार के शृंखलाबद्ध कारनामे थे. यही वजह थी कि यूपीए-2 के अंतिम वर्षों में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में निवेश में लगातार गिरावट आती रही. उसी दौर में रोजगार संकट की आहट होने लगी थी. महंगाई को नियंत्रित कर पाने में सरकार असफल रही. आर्थिक समस्याओं से निपटने और भविष्य में विकास के लिए निवेश को प्रोत्साहन के बजाय कांग्रेस लोकलुभावन नीतियां बनाती रही. सरकार और कांग्रेसी आर्थिक विशेषज्ञ देश की आर्थिक समस्याओं के लिए वैश्विक मंदी को दोष देते रहे, जबकि योजना आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष मांटेक सिंह अहलूवालिया ने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में यह स्वीकार कर लिया था कि भारत की विकास दर में गिरावट की प्रमुख वजह घरेलू स्तर की समस्याएं हैं.
कांग्रेस ने अपने नये वादे में 2030 तक गरीबी खत्म करने का लक्ष्य रखा है. साथ ही न्यूनतम आय योजना के तहत देश के पांच करोड़ गरीब परिवारों को 72000 रुपये सलाना दिये जाने का वादा किया है. एक अनुमान के मुताबिक इस योजना के लागू होने से लगभग 3.6 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च आयेगा. यह कैसे लागू होगा और जरूरतमंदों को लाभ कैसे मिलेगा, घोषणापत्र से कुछ स्पष्ट नहीं है. वर्तमान में सरकार खाद्य, उर्वरक, किसान और आयुष्मान भारत जैसी तमाम कल्याणकारी योजनाओं पर सलाना 5.34 लाख करोड़ रुपये खर्च करती है. सरकार पहले से प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) की दिशा में आगे बढ़ चुकी है, जो निश्चित ही स्वागतयोग्य है. इससे भ्रष्टाचार के मामलों में कमी आयी है. जब कोई सरकारी योजना आती है, तो उसको लागू करने में बड़ी लागत आती है और इसी दौरान हेराफेरी और भ्रष्टाचार जैसे मामले पनपते हैं. बढ़ते ऑटोमेशन और वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों की संरक्षणवादी नीतियों के चलते रोजगार की समस्या बढ़ रही है. ऐसे में नयी स्किल के जानकारों जरूरत है, जो जॉब मार्केट की मांग की अनुरूप काम करने में सक्षम हों, उसके लिए कार्य योजना बनाकर शिक्षण-प्रशिक्षण की बेहतर व्यवस्था करनी होगी. दुर्भाग्य से कांग्रेस के घोषणापत्र में इसका कोई जिक्र नहीं है. कौशल विकास की दिशा में नये सिरे से सोचने और नया कुछ करने की जरूरत है, तभी रोजगार के संकट से पार पाया जा सकता है. चुनावी मौसम में हितैषी बनने का ढोंग देश की जनता वर्षों से देखती आयी है और उम्मीद है कि जनता तमाम दलों के जुमलों को समझकर ही मतदान करेगी.
साभार : https://www.academics4namo.com
न्याय के नाम पर ठगने जा रही व् भा ज पा के घोषणा पत्र को झांसा पत्र बताने वाली कांग्रेस का घोषणा पात्र भी झांसा पत्र ही है क्योंकि इस प्रकार के लाभ देने के लिए संसादन हैं ही नहीं और भारी टेक्स लगाने के बिना यह संभव नहीं हैं कांग्रेस अचछी तरह जानती है कि वह चुनाव में बहुमत तो प्राप्त करेगी नहीं इसलिए वाडे करने में कोई कमी नहीं रहना चाहिए भा ज पा को ही इसका नुक्सान होगा उसे भी ऐसे लोक लुभावन नारे देने होंगे
चुनाव के बाद कोई भी दल इन सब्जबागों को पूरा नहीं करता , जनता पूरा न कर पाने पर उनका कुछ बिगाड़ भी नहीं सकती। धर्म, जातितथा सम्प्रदाय के नाम पर वोट देने वाले मत दाताओं पर इन झांसों का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता हालांकि मुफ्त का खाना सब चीजों को मुफ्त मुहैया करने वाले दल मुफ्तखोर भारतियों को सदा ही अकचे लगते हैं , 2014 में दिल्ली में केजरी का आना इसका सर्वोत्तम उदाहरण है