शैलेन्द्र चौहान
जम्मू एवं कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में 20,500 फीट की ऊंचाई पर सियाचिन ग्लेशियर के दक्षिणी हिस्से में 3 फरवरी को हुए हिमस्खलन में 10 सैन्यकर्मी बर्फ में जिंदा दफन हो गए थे। ग्लेशियर से 800 x 400 फीट का एक हिस्सा दरक जाने से बर्फीला तूफान आया था। यह हिस्सा ढह जाने के बाद बर्फ के बड़े बोल्डर्स बड़े इलाके में फैल गए। इनमें से कई बोल्डर्स तो एक बड़े कमरे जितने थे। हिमालय की रेंज में मौजूद सियाचिन ग्लेशियर दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध स्थल है। 1984 से लेकर अबतक करीब 900 जवान शहीद हो चुके हैं। इनमें से ज्यादातर की शहादत बर्फीले तूफानों और खराब मौसम के कारण ही हुई है। सियाचिन से चीन और पाकिस्तान दोनों पर नजर रखी जाती है। सर्दियों में यहां काफी एवलांच आते रहते हैं। सर्दियों के मौसम में यहां औसत 1000 सेंटीमीटर बर्फ गिरती है। यहां न्यूनतम तापमान शून्य से 50 डिग्री कम अर्थात माइनस 140 डिग्री फॉरेनहाइट तक हो जाता है। जवानों के शहीद होने की वजह ज्यादातर बर्फीले तूफान, भू स्खलन, ज्यादा ठंड के चलते टिश्यू ब्रेक, ऊंचाई के कारण होने वाली अस्वस्थता और पैट्रोलिंग के दौरान ज्यादा ठंड से हार्ट फेल हो जाने की वजह होती है। सियाचिन में अग्रिम पोस्ट पर एक जवान की तैनाती 30 दिन से ज्यादा नहीं होती। ऑक्सीजन का स्तर पर भी यहां कम रहता है। यहां टूथपेस्ट भी जम जाता है। सही ढंग से बोलने में भी काफी मुश्किलें आती हैं। अक्सर सैनिकों को यहां हाइपोक्सिया और हाई एल्टिट्यूड पर होने वाली बीमारियां हो जाती हैं। वजन घटने लगता है। भूख नहीं लगती, नींद नहीं आने की बीमारी। स्मृति क्षय का भी खतरा रहता है । 6 दिनों तक 30 फीट बर्फ के नीचे दबे रहने के बाद लांस नायक हनुमानथप्पा कोप्पड़ को सेना के बचाव अभियान दल ने जीवित पाया था। लांस नायक हनमनथप्पा लगभग 6000 मीटर की ऊंचाई पर सियाचिन ग्लेशियर में आठ मीटर बर्फ के भीतर दबे थे। इससे पहले सेना ने हिमस्खलन की चपेट में आए अपने किसी भी जवान के जीवित होने की उम्मीद छोड़ दी थी। सेना ने 5 फरवरी को उन 10 सैनिकों के नामों की सूची जारी की थी जो 3 फरवरी को सियाचिन ग्लेशियर में आए हिमस्खलन की वजह से मारे गए थे। जिन सैनिकों की मौत हुई है, उनके नाम हैं : सूबेदार नागेश टीटी (तेजूर, जिला हासन, कर्नाटक), हवलदार इलम अलाई एम. (दुक्कम पाराई, जिला वेल्लोर, तमिलनाडु), लांस हवलदार एस. कुमार (कुमानन थोजू, जिला तेनी, तमिलनाडु), लांस नायक सुधीश बी (मोनोरोएथुरुत जिला कोल्लम, केरल), सिपाही महेश पीएन (एचडी कोटे, जिला मैसूर, कर्नाटक), सिपाही गणेशन जी (चोक्काथेवन पट्टी, जिला मदुरै, तमिलनाडु), सिपाही राम मूर्ति एन (गुडिसा टाना पल्ली, जिला कृष्णागिरी, तमिलनाडु), सिपाही मुश्ताक अहमद एस (पारनापल्लै, जिला कुर्नूल, आंध्र प्रदेश) और सिपाही नर्सिग असिस्टेंट सूर्यवंशी एसवी (मस्कारवाडी, जिला सतारा, महाराष्ट्र) और लांस नायक हनुमानथप्पा कोप्पड़, (बेटाडुर, जिला धारवाड़, कर्नाटक)। सियाचिन में एवलांच के छह दिन बाद बचाए गए लांस नायक हनुमनथप्पा कोमा से बाहर नहीं आ सके। मल्टी ऑर्गन फेल्योर के बाद उन्हें 11 फरवरी गुरुवार दोपहर हार्ट अटैक आया और उन्हें बचाया नहीं जा सका। आर्मी ने इतनी ऊंचाई पर पेनिट्रेशन रडार भेजे जो बर्फ के नीचे 20 मीटर की गहराई तक मेटैलिक ऑब्जेक्ट्स और हीट सिग्नेचर्स पहचान सकते हैं। एयरफोर्स और आर्मी एविएशन हेलिकॉप्टर के इस्तेमाल में लाए जाने वाले रेडियो सिग्नल डिटेक्टर्स भी भेजे गए। इनसे ऑपरेशन में मदद मिली। तेज हवाओं के चलते बार-बार रेस्क्यू ऑपरेशन में अड़चनें आईं। छठे दिन हनुमनथप्पा मिल गए। बाकी 9 जवानों के शव भी मिले। आर्मी की 19वीं मद्रास रेजिमेंट के 150 जवानों और लद्दाख स्काउट्स और सियाचिन बैटल स्कूल के जवानों को 19600 फीट की ऊंचाई पर रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए तैनात किया गया था। इनके साथ दो स्निफर डॉग्स ‘डॉट’ और ‘मिशा’ भी थे। दिन में टेम्परेचर माइनस 30 डिग्री और रात में माइनस 55 डिग्री चला जाता था। इसके बावजूद जवान और दोनों खोजी डॉग डॉट और मिशा ऑपरेशन में लगे रहे। स्निफर डॉग्स उस लोकेशन पर आकर रुक गए, जहां हनुमनथप्पा फंसे हुए थे। हीट सिग्नेचर्स ट्रेस करने वाले पेनिट्रेशन रडार ने भी यही लोकेशन ट्रेस की। इसके बाद एक लोकेशन फाइनल कर सोमवार शाम 7.30 बजे बर्फ को ड्रिल करने का काम शुरू हुआ। लांस नायक को 8 फरवरी को सुबह 9 बजे धरती में सबसे ऊंचाई पर मौजूद सेल्टोरो रिज हेलिपैड से रवाना किया गया और उन्हें सियाचिन बेस कैम्प लाया गया। यहां से उन्हें विशेष एयर एंबुलेंस विमान के जरिए दिल्ली के रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल ले जाया गया जहां उनका इलाज किया जा रहा था। लांस नायक हनुमनथप्पा कोप्पड़ की मृत्यु पर प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया, ‘‘वह हमें उदास और व्यथित छोड़ गए हैं। लांस नायक हनुमनथप्पा की आत्मा को शांति मिले। आपके अंदर जो सैनिक था वह अमर है। हमें गर्व है कि आप जैसे शहीदों ने भारत की सेवा की।’’ वहीँ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हनुमनथप्पा की मृत्यु पर गहरा दुख जताते हुए कहा, ‘‘अपने जीवन काल में भारत के इस वीर सपूत ने पूरे देश की जनता को एकजुट कर दिया। पूरे देश ने उनकी सलामती के लिए दुआएं मांगी और आज हर नागरिक उनके लिए दुखी है। राहुल गांधी ने भी उनके निधन पर दुख जताया। राहुल ने कहा, ‘हनुमनथप्पा वीरता और साहस की मिसाल हैं। देश के अनेक नेताओं ने भी दुःख व्यक्त किया। भारत के संवेदनशील नागरिक भी इस दुर्घटना से आहत थे। चूंकि हनुमनथप्पा बर्फ में छह दिन दबे रहने के बावजूद शारीरिक रूप से जीवित थे अतः संभव था कि वे बच जाते। इसी कारण पूरे देश में उनके जीवन की आशा की जा रही थी। लेकिन जो अन्य नौ सैनिक इस हिम स्खलन में शहीद हो गए उनका बलिदान भी तो कम नहीं था। क्या उनकी सुध नहीं ली जानी चाहिए थी। उनके परिवार और सगे संबंधियों तक सांत्वना के दो शब्द नहीं पहुंचाए जाने चाहिए थे। वे सभी एक ही काम में लगे थे। एक ही कर्तव्य निभा रहे थे पर शेष नौ लोगों के नाम किसी को याद नहीं रहे। मीडिया और नेता सिर्फ हनुमनथप्पा पर केंद्रित हो गए। राष्ट्रवाद की दुंदुभि बजाने लगे। इस तरह के व्यवहार को संतुलित व्यवहार नहीं माना जा सकता। सभी शहीद सैनिकों का उतना ही महत्त्व है हमें यह नहीं भूलना चाहिए। देश के लिए मिटने वाला हर सैनिक एक जैसे ही सम्मान का पात्र है।