अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मायने

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मनोज ज्वाला

खबर है कि मुम्बई विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ प्राध्यापक योगेश सोमण को महराष्ट्र राज्य सरकार के इशारे पर विश्वविद्यालय-प्रशासन ने सिर्फ इस कारण जबरन छुट्टी पर भेज दिया क्योंकि वे कांग्रेसी नेता राहुल गांधी के सावरकर-सम्बन्धी बयान पर नकारात्मक टिप्पणी करते हुए उन्हें सावरकर तो क्या सच्चा ‘गांधी’ मानने से भी इनकार कर दिया।प्रोफेसर साहब की टिप्पणी कहीं से भी आपत्तिजनक नहीं है। सच्चाई यह है कि उन्होंने राहुल के जिस बयान पर बेबाक टिप्पणी की, वह बयान आपत्तिजनक है। गत 14 जनवरी को प्रोफेसर योगेश ने अपने ट्विटर पेज पर राहुल गांधी के द्वारा विनायक दामोदर सावरकर के नाम से स्वयं को जोड़कर दिए बयान की तीखी आलोचना की थी। राहुल गांधी ने देश की राजधानी दिल्ली में आये दिन बलात्कार की घटनाओं पर प्रतिक्रिया जताते हुए दिल्ली को ‘रेप कैपिटल’ कह दिया था। उनके बयान की देशभर में निन्दा हुई। ऐसे में राहुल गांधी ने एक और बयान दिया था कि “ मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं, राहुल गांधी है ; इसलिए मैं माफी नहीं मांगूंगा।” राहुल ने पहले के मुकाबले और भी ज्यादा आपत्तिजनक बयान दे दिया जिसकी हर तरफ कड़ी आलोचना हुई।

मुम्बई यूनिवर्सिटी के ‘एकेडमी ऑफ थिएटर आर्ट्स’ के डायरेक्टर योगेश सोमण ने सावरकर से अपना नाम जोड़ने वाले राहुल को गलत भी नहीं कहा है। उन्होंने अपने ट्विटर पेज पर लिखा है- “आप सही कह रहे हैं राहुल, आप सावरकर नहीं हैं। आप में उन जैसा कुछ भी नहीं है। न समर्पण, न बलिदान और न ही वीरता। सच तो यह है कि आप सच्चे ‘गांधी’ भी नहीं हैं। मैं आपकी पप्पूगीरी का विरोध करता हूं।” सच तो यही है कि देश की स्वतंत्रता के निमित्त कालापानी के लिए कुख्यात अंडमान की जेल में एक ही साथ दो-दो आजीवन कारावास की कठोर सजा काटते हुए काल-कोठरी की दीवारों पर ऐतिहासिक महाकव्य तक लिख देने वाले सावरकर के बहुआयामी राष्ट्रीय व्यक्तित्व की पासंग में भी नहीं हैं राहुल। कहां सावरकर और कहां राहुल! आसमान-जमीन से भी बड़ा अन्तर है। प्रोफेसर योगेश ने उन्हें गलत नहीं कहा है; बल्कि यह कहा है कि “आप सच्चे गांधी भी नहीं हैं” तो इसमें भी पूरी सच्चाई है। अपने नाम के आगे-पीछे महात्मा सूचक ‘गांधी’ शब्द जोड़ लेने मात्र से कोई भला सच्चा गांधी कैसे हो सकता है?बावजूद इसके महाराष्ट्र भाजपा नेता आशीष शेलार के हवाले से जो खबर प्रसारित हुई, उसके मुताबिक मुम्बई युनिवर्सिटी में कायम कांग्रेसी-वामपंथी छात्र-संगठनों से सम्बद्ध छात्रों ने योगेश सोमन को धमकी दे डाली और उनके खिलाफ विश्वविद्यालय-प्रशासन में शिकायतें दर्ज करवाकर आन्दोलन-प्रदर्शन का मोर्चा खोल दिया। भाजपा नेता शेलार ने तो ठीक ही सवाल किया है कि यह ‘असहिष्णुता’ नहीं है क्या?

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का झण्डा लहराते-फहराते रहने वाले वामपंथी-कांग्रेसी छात्र-संगठनों की मांग पर मुम्बई युनिवर्सिटी के कुलपति सुहास पेडेनकर ने 14 जनवरी को इस मामले में प्रदर्शन कर रहे छात्रों के दबाव में आ कर प्रोफेसर योगेश को जबरन छुट्टी पर भेज दिया। समझा जा सकता है कि इसके लिए राज्य-सरकार से भी उनपर दबाव पड़ा होगा, जिसमें सोनिया-राहुल की कांग्रेस भी एक घटक है। वामपंथियों-कांग्रेसियों की यह करतूत कोई नई करतूत नहीं है। इससे पहले भी वे अभी हाल ही में नागरिकता संशोधन अधिनियम पर कन्नूर विश्वविद्यालय में अपने विचार व्यक्त कर रहे केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को बोलने से बलपूर्वक रोकने की धृष्ठता कर चुके हैं। सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस और कम्युनिस्ट समर्थक नेताओं-वक्ताओं-अभिनेताओं-कलाकारों को ही कुछ भी बोलने का अधिकार ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के दायरे में आता है? वे किसी राष्ट्रीय व्यक्तित्व का भी अपमान कर दें तो वह उनकी आजादी है और दूसरा व्यक्ति कुछ बोले अथवा उनके किसी अनुचित बयान का विरोध भी करे तो ऐसा करने की उसे आजादी नहीं है?वामपंथियों और कांग्रेसियों की यही सबसे बड़ी त्रासदी है। वे अपनी सुविधा के अनुसार राजनीति की परिभाषा तय करते रहते हैं । वे लोग देश को जबरिया यह सिखाने-समझाने की कोशिश में लगे हुए हैं कि वे कुछ अनुछित-अवांछित बोलें-करें तो उसे चुपचाप सह लेना ही ‘सहिष्णुता’ है और उसका विरोध करना ‘असहिष्णुता’ है; जबकि कुछ भी बोलने की आजादी ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के दायरे में तभी आ सकती है, जब बोलने वाला कांग्रेसी या कम्युनिस्ट हो अथवा जिससे इनका हित सधता हो। यही कारण है कि ‘सहिष्णुता-असहिष्णुता’ की ‘माप-तौल’ अपने हिसाब से कर समय-समय पर सरकारी पुरस्कार-सम्मान वापस करते रहने का जो प्रहसन ये करते रहे हैं, उसे देश के आम-जनमानस का समर्थन कतई नहीं मिला।मुम्बई विश्वविद्यालय में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के इन झण्डाबरदारों की यह नई करतूत चिंताजनक है क्योंकि यह एक वरिष्ठ प्राध्यापक को अध्यापन कार्य से जबरिया वंचित कर देने और उनसे सम्बद्ध छात्रों की शिक्षा बाधित कर देने का मामला है। इससे मुम्बई युनिवर्सिटी के ‘जेएनयू’ करण की पृष्ठभूमि तैयार होती दिख रही है। कभी सावरकर को अपना आदर्श मानने वाले शिवसैनिक ‘ठाकरे’ आज अगर सत्ता-सुख के कारण राज्य के एक ऐतिहासिक विश्वविद्यालय के भीतर ऐसा अनैतिक होते देख रहे हैं तो यह उनके वैचारिक क्षरण का ताजा उदाहरण है। उद्धव ठाकरे सत्ता-सुख के लिए सोनिया-राहुल के मुख से छत्रपति शिवाजी का अपमान भी सुन सकते हैं; किन्तु कम से कम महाराष्ट्र के राज्यपाल को तो मुम्बई विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ प्राध्यापक के साथ हो रही इस ज्यादती के माममे में तुरंत हस्तक्षेप करना ही चाहिए।

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