प्रकृति का संदेश

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न करो तुम दोहन मेरा ,
न करो तुम दूषित मुझको |
हे ! मानव मै कोई वायरस नहीं
प्रकृति का संदेश है तुझको ||

सदियो से मनमानी करता आया ,
मनमुटाव मुझसे करता है आया |
जल और वायु जो जीवन उपयोगी ,
उनको सदा तू दूषित करता आया ||

धरा और गगन को तूने न छोड़ा ,
उच्चे उच्चे शिखरो को न छोड़ा |
उनको काट कर सुरंग बनाई ,
जीव जन्तुओ को भी न छोड़ा ||

किए तूने नये नये कारनामे ,
गगन पर किए नये फसाने |
चाँद मंगल को भी है घेरा ,
बनाना चाहता है उन पर डेरा ||

सागर का भी मंथन किन्हा,
उसमे रहने वालो का जीवन छीना |
इसमे भी बारूद की सुरंग बिछाई ,
मुश्किल हो गया उनका जीना ||

नये नये अन्वेष्ण है करता ,
अपनी कब्र खुद ही खोदता |
फिर करता प्रकृति पर दोषारोपण ,
नासमझी के काम तू है करता ||

दे रही है प्रकृति तुझको चेतावनी ,
बन्द कर मानव तू अपनी शैतानी |
वरना ये वायरस तुझको खा जायेगा,
फिर तू अपने हाथ मलता रह जायेगा ||

आर के रस्तोगी

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जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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