चोरी का राष्ट्रीय उद्यम

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एक समय था जब चोरी करना या चोरी होना बहुत बड़ी घटना होती थी। मेरे गांव में जब चोरी होती थी तो महीनों तक चर्चा चलती रहती। जिस घर चोरी होती थी अक्सर उस घर की कोई बूढ़ी अपने बुढ़े मुंह से कई दिनों तक सुबह-शाम, दिन-दोपहर चोरों को दिव्य श्राप दिया करती। ये श्राप चोरों को कितना हानि पहुँचाते यह तो पता नहीं मगर हां साल फिरते फिरते चोर उसी घर में फिर से अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करा जाते। उस समय चोर चावल गेहूँ जैसे अनाज चुराया करते थे। फिर चोरों ने जरुरत के अनुसार अपना स्तर ऊँचा किया और वे गाय, भैस, बैल, बकरी जैसे चौपाया पशु चुराने लगे।समय और तकनीक के साथ चोरी की प्रक्रिया में नए-नए वस्तु जुड़ने लगे।साइकिल और मोटरसाइकिल से लेकर आदमी तक चोरी ( अपहरण ) होने लगे। हमारे देश के एक विख्यात प्रांत ने तो आदमी चोरी को डेढ़ दशकों तक अघोषित उद्योग के रुप में पुरे जोर शोर से चलाया-बढ़ाया। उसी प्रांत के एक नेता ने लोगों को हँसाते हँसाते पशुओं से न जाने किस जनम का बैर निकाला कि अपने कई पवित्र चोर-आत्मा सहोदरों के साथ मिलकर लाख़ों करोड़ो रुपये का चारा चुराकर चबा डाला।कानून के लम्बे हाथ जब उनके गिरेबान तक आते आते बौने पड़ गये तो मूक पशुओं द्वारा दिया गया श्राप असर कर गया। फिलहाल बेचारे ससम्मान कारागार की शोभा बढ़ा रहे हैं।वैसे भारत एक महान देश है इसलिए यहां चोरी का भी एक महान इतिहास रहा होगा। लेकिन आजादी के बाद जिस तरह से चोरी का प्रसार हुआ वह स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाने योग्य है। चोरी राष्ट्रीय उद्योग का स्वरुप ग्रहण कर चुका है।तभी तो जीप से लेकर साइकिल, कोयला से लेकर चीनी , जूता से लेकर स्पेक्ट्रम, यूरिया से लेकर ताबूत तक चोरी हो गए। फिलहाल चोरी का यह उद्योग समस्त भारतवर्ष में पूरे जोर शोर से फलफूल रहा है। हर जगह चोरी हो रही है। मंत्रालयों से फाइल चोरी हो रही है, अख़बारों से ख़बरें चोरी हो रही हैं, विश्वविद्यालयों से विद्यार्थियों की प्रतिभाएं चोरी हो रही हैं, सुप्रीम कोर्ट से न्याय चोरी हो जा रही है, बैंकों से रुपये चुराये जा रहे हैं। रेलगाड़ियों से बर्थ गायब हो रहे हैं, सड़कों से अलकतरा चुराया जा रहा है। जंगल से पेड़ चोरी हो रहे है। संसद से मुद्दे चोरी हो रहे हैं, समाज से सद्भाव चुराया जा रहा है। मत से लेकर मन तक हर चीज चोरी हो रही है और निकट भविष्य में इस चोरी के रुकने या थमने की कोई संभावना दूरबीन से देखने पर भी दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही है।मैं देश की जनता से आह्वान करता हूँ कि अब वो दिन नहीं रहे जब जीवन का लक्ष्य भद्र पुरुष ( जेंटलमैन ) होना हुआ करता था।अब व्यापार का युग है, उद्योग का जमाना है। इसलिए श्रम कीजिए और चोर बनिये पक्ष और विपक्ष के बीच, सच और झूठ के बीच, एक चोर मार्ग भी है इसे चुनिये और सुखी न सही सम्पन्न बनिये, सफल रहिए। इसे आप मेरे द्वारा बुद्ध के मध्यम मार्ग की नवीन ” दिनकटुवा व्याख्या ” मान सकते हैं।अब वह दिन दूर नहीं जब आप सुनेंगे कि संविधान से नियम चोरी हो गये, देश से जनता गायब हो गयी, धर्म से ईश्वर चुरा लिए गये, प्रेमी-प्रेमिकाओं के हृदय से प्रेम चोरी हो गया, हवाओं से नमी गायब हो गयी, सूरज की रौशनी चुराई जा रही है। और आप यूंही हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। इसलिए हे ! चोरलोक के अचोर प्राणियों , उठो ! चोर बनो, चोरी करो और इस राष्ट्रीय उद्यम में सहयोग कर अपना जीवन सार्थक करो !

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