विश्वास और रिश्तों का परिणाम 

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मनोज कुमार

समाज की आम धारणा है कि चुनौती अपने साथ सफलता लेकर आती है और इस धारणा को परखें तो शिवराजसिंह सौफीसदी खरे उतरते हैं. 2023 का विधानसभा चुनाव उनके लिए चुनौती भरा था. आम आदमी के बीच वे लोकप्रिय और विश्वसनीय चेहरा हैं और ऐसे में उन्हें असफलता हाथ लगती तो यह धारणा ध्वस्त हो जाती लेकिन ऐसा नहीं हुआ. शिवराजसिंह चौहान ना केवल चुनौती का डटकर सामना किया बल्कि पांचवीं बार भाजपा को विजय दिलाकर उन्होंने इस बात को स्थापित कर दिया कि उनसा दूजा कोई नहीं. 1956 में मध्यप्रदेश का निर्माण हुआ तब मध्यप्रदेश की राजनीति में पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र राजनीति के चाणक्य कहे गए और इसके बाद इसी रूप में पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह ने अपनी छाप छोड़ी. इसके इतर अन्य मुख्यमंत्री अपनी-अपनी कार्यशैली से पहचाने गए लेकिन सबसे जुदा रहे शिवराजसिंह चौहान. राजनीति में सौहाद्र को तो बनाये रखा बल्कि अपनी विनयशीलता के कारण वे मध्यप्रदेश के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री के रूप में अपना स्थान बनाया. एक राजनेता की तरह वे चाणक्य के रूप में खुद को तो स्थापित नहीं किया लेकिन जनता की नब्ज पहचानने में उन्होंने कोई भूल नहीं की. 

2005 में जब वे मुख्यमंत्री बने तब उन्हें किसी ने सीरियस नहीं लिया था. भाजपा के पहले जनता पार्टी शासनकाल में मैं गया, तू आया की राजनीति चल रही थी. 2003 में यही जनता पार्टी भाजपा बनकर दस वर्ष पुरानी कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर रिकार्ड सीटों से सरकार बनायी. तब की फायरब्रांड एवं मध्यप्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री उमा भारती का कार्यकाल महज एक वर्ष के आसपास रहा. इसके बाद बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने लेकिन वे भी एक वर्ष तक ही मुख्यमंत्री रह सके. इसके बाद शिवराजसिंह चौहान की ताजपोशी होती है लेकिन इन्हें भी शार्टटर्म मुख्यमंत्री माना गया. पार्टी के भीतर और विपक्षी दलोंं ने उन्हें बहुत गंभीरता से नहीं लिया. तीन वर्ष मुख्यमंत्री के रूप में गुजारने के बाद पहली चुनौती के रूप में 2008 का चुनाव था. इसमें जय मिलती तो शिवराज के लिए रास्ता आसान था और पराजय मिलती तो नेपथ्य में चले गए होते. वे प्रदेश और जनता की नब्ज पहचानते थे और 2008 में वे पहला प्रयोग करते हैं मुख्यमंत्री पंचायत की. इस बहाने मुख्यमंत्री निवास का कपाट आम आदमी के लिए खोल दिया जाता है. इसके पहले यह कपाट एक तिलस्म की तरह था. यहां मुख्यमंत्री शिवराजसिंह समाज के हर वर्ग की पंचायत करते हैं और उनकी थाली में साथ बैठकर खाना खाते हैं. शिवराजसिंह की इस अदा पर जनता फिदा हो गई और तमाम कयासों पर पानी फेरते हुए वे सत्ता में वापसी करते हैं.

अब 8 वर्ष बाद फिर उनके सामने चुनौती थी कि सत्ता में वापसी कैसे हो? क्योंकि यह धारणा बना ली गई थी कि एंटीइनक्मबैंसी के चलते भाजपा की सरकार में वापसी संभव नहीं होगी. लेकिन दूरदृष्टि वाले शिवराजसिंह की रणनीति को राजनीतक विशषक भी समझ नहीं पाए. इस बार वे लाडली लक्ष्मी लेकर आए. यह योजना अपने आपमें एकदम अलग थी. लोगों, खासकर ग्रामीण और आदिवासी इलाकोंं में इसका असर ऐसा हुआ कि सबको धता बताते हुए शिवराजसिंह सत्ता में लौट आते हैं. 13 वर्ष के लम्बे कार्यकाल के बाद 2018 उनके लिए अग्रिपरीक्षा के भांति होता है और इस बीच वे प्रदेश के बुर्जुगजनों के लिए मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना लेकर आते हैं. सत्ता विरोधी व्यवहार और थोड़ी विपक्षी दल की आक्रमता के साथ बहुत मामूली अंतर से चुनाव हार जाते हैं. कोई 15 महीने के छोटे से कार्यकाल में सत्तासीन दल आपसी दंगल में सत्ता गंवा बैठते हैं और शिवराजसिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता की बागडोर सम्हालते हैं. 

वर्ष 2018 से आगे चलकर 2023 का विधानसभा चुनाव शिवराजसिंह के लिए अग्रिपरीक्षा की तरह होता है. तमाम पूर्वानुमानों में शिवराजसिंह सरकार की पराजय की भविष्यवाणी की जाने लगी. एकबारगी तो लगा कि यह पूर्वानुमान सच साबित हुआ तो 18 वर्ष के मुख्यमंत्री को नेपथ्य में जाना पड़ सकता है लेकिन एक बार फिर शिवराजसिंह चौहान का जादू चल गया. इस बार प्रदेश की हजारों बहनों के लिए उन्होंने ‘लाडली बहना’ स्कीम लांच की. पहले एक रुपये नेग के दिए और उसके बाद एक हजार और फिर 1250 रुपये हर महीने महिलाओं के खाते में जमा होता रहा. शिवराजसिंह चौहान स्वयं कहते हैं कि यह पैसा इमदाद नहीं है बल्कि बहनों के आत्मविश्वास और उनके सशक्तिकरण का एक नेग है. भाई-बहन के विश्वास और मामा-भांजी के रिश्तों की डोर इतनी मजबूत हो चुकी थी, इसका कोई पूर्वानुमान नहीं लगा सका. वो सारे पूर्वानुमान धराशायी हो गया जो शिवराजसिंह को सत्ता से बेदखल कर रहे थे. 2023 के चुनाव परिणाम में रिकार्ड सीटों से जीतकर शिवराजसिंह चौहान ने बता दिया कि उनकी टक्कर में कोई नहीं.

शिवराजसिंह ने स्वयं को कभी भी मध्यप्रदेश की जनता के बीच मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत नहीं किया. किसी का बेटा, तो किसी का मामा तो किसी का भाई बनकर एक परिवार के रूप में प्रदेश को चलाने की कोशिश की. चुनाव के दरम्यान झाबुआ से लेकर मंडला तक रोज कई-कई सभा कर रहे थे. वे कोई कोर-कसर नहीं छोडऩा चाहते थे. वे कुशल संचारक हैं और अपनी बात पहुंचाने में कामयाब रहे. लोगों को लगा कि एक बार शिवराजसिंह को खो दिया तो उनकी चिंता करने वाला दूसरा कोई नहीं मिलेगा. इस एक विश्वास ने शिवराजसिंह चौहान को घर-घर का चहेता बना दिया. इस बात के लिए भी शिवराजसिंह चौहान बधाई के पात्र हैं कि वे महिलाओं की इतनी चिंता करते रहे हैं कि अपनी योजनाओं के माध्यम से सामाजिक कलंक भू्रण हत्या पर भी नियंत्रण पा लिया. ताजा आंकड़ें बताते हैं कि मध्यप्रदेश एकमात्र राज्य है जहां लिंगानुपात की जो खाई बढ़ रही थी, वह सिमट रही है. यह कहना फिजूल की बात होगी कि उनकी योजनाएं लोकप्रिय हैं लेकिन यह बात दावे से कही जा सकती है कि उनकी योजनाओं में सामाजिक सरोकार की बुनियाद है जो नए मध्यप्रदेश की संरचना में योगदान कर रही हैं. 

हिन्दीपट्टी में रिकार्ड शिवराज के नाम : हिन्दीपट्टी राज्यों में आमतौर पर पांच वर्ष में सत्ता परिवर्तन का व्यवहार देखने को मिलता है. एक पांच साल यह तो एक पांच साल वह का रिवाज रहा है. छत्तीसगढ़ में रमन सरकार ने 15 साल सत्ता में रहने का रिकार्ड बनाया तो बिहार और यूपी में दस वर्ष का कार्यकाल रहा है. . बंगाल और उड़ीसा जो गैर-हिन्दीभाषी राज्य हैं वहां सरकार लम्बे समय तक चलती रही हैं.  लेकिन मध्यप्रदेश में शिवराजसिंह सरकार ने इन सारे रिकार्ड को ध्वस्त करते हुए आगे निकल गए हैं 

उनके अपने ही विरोधी बन गए थे : शिवराजसिंह चौहान की यह जीत अनेक मायनों में उपलब्धि भरा है. चौथी बार सीएम की कुर्सी सम्हालते ही उनके अपने उनके विरोधी हो चले थे. अनेक बार यह अफवाह उड़ायी गई कि शिवरासिंह को कभी भी सत्ता से बेदखल किया जा सकता है. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. विनयशील शिवराजसिंह इन सबसे बेखबर नहीं थे लेकिन जवाब पलटकर नहीं दिया. वे अपनी उपलब्धियों का सारा श्रेय पार्टी, अपने नेता नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और नड्डा को देते रहे. मोदी और शाह की टीम में शिवराजसिंह ने अपनी विनम्रता के चलते ऐसा स्थान बना लिया जिसे आप विश्वास का रिश्ता कह सकते हैं. पांचवीं बार शिवराजसिंह की ताजपोशी होती है या नहीं, इसका फैसला पार्टी करेगी लेकिन भरोसा किया जाना चाहिए कि वाजिब हकदार शिवराजसिंह चौहान हैं.

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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