भिखारियों से शर्मिंदा है देश

        आत्माराम यादव पीव

आज की तारीख में दुनियाभर के देशों में भारत का नेतृत्व करने वाले ये राजनेता वोट की भीख मॉगते समय भिखारियों के आत्मविश्वास को धराशाही कर वोट की भीख पाकर अपने भाग्य को आजमा कर भाग्यशाली बन जाते है। असल में देखा जाए तो भारत मॉ के भाल पर विराजमान भिखारी ये ही राजनेतागण है और ये ही असल में भारत मॉ के असली लाल भी है, जिनसे देश शर्मिंदा है। आपको आश्चर्य होगा कि भारत का सविधान भी अजब,गजब और अनूॅठा है जहॉ जनता के समक्ष अपनी कमर को इस प्रकार झुकाकर कि मानों उनकी कमर में रीढ़ की हडड्ी ही गायब हो और सनातन परम्परा को मात देकर मतदाताओं के हाथजोड़कर, पैर छूकर वोट की भीख मॉगने वाले आखिरकर जीत के बाद अपने सिर पर सत्ता का राजमुकुट धारण कर सरकार चलाते है। एक और ऐसे गरीब,मजबूर, लाचार, दुखियारे बदनसीब लोग होतें है जिन्हें इन सरकारों की ओर से इनकी योग्यताओं को दरकिनार रखकर इनके रोजगार, स्वास्थ्य, पढ़ाई आदि की व्यवस्था न किए जाने पर वे अपने दिल से बेशर्मी को त्यागकर भीख मॉगने निकलते है, वहीं दूसरी ओर भारतीय संस्कृति में दान-पुण्य से मोक्ष पाने की देशना के रहते लोगों द्वारा खुलकर भीख दिए जाने पर अधिंकाश लोग इसे अपना व्यवसाय समझ कर भीख मॉगते हैं तो वहीं दूसरी ओर गिरोहों के रूप में बच्चों-महिलाओं को अगवा कर शारीरिक अपंग बनाकर भीख मॅगवाने का कारोबार चरम पर है। यह एक गंभीर अपराध है पर ऐसे गिरोहों के सरगनाओं पर देश के भिखारी राजनेताओं का बरदहस्त होने से प्रशासन खामोश रहता है।

देश समस्याओं से ग्रस्त है, इसलिए समस्याएॅ कभी खत्म नहीं होती है। सरकारें विकास के नए आयाम हासिल करने के लिए अरबों रूपये अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित कर अपने विकास का ढ़िढौरा पीटती है, विकास भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा धराशाही दिखाई देता है, सरकारें तत्काल दूसरों पर दोषारोपण कर अपना पल्ला झाड़ती है। एक ओर सामान्य भिखारी मंदिरों, चौराहों, होटलों, पार्को, राष्ट्रीय स्मारकों के आसपास विदेशी सैलानियों सहित अधिक भीड़वाले क्षैत्र में भीख मॉगने बैठते है कि भिखारियों के कारण देश की बदनामी न हो, स्थानीय प्रशासन सहित पुलिस प्रशासन भिखारियों को डण्डे के बल पर खदेड़ता दिख जाएगा। आश्चर्य की बात है कि देश के भीतर कटोरा लिए इन भिखारियों के कारण देश की बदनामी राजनेताओं को दिखाई दे जाती है पर उन राष्ट्रप्रमुख भिखारियों का क्या ? जो देश के विकास के नाम पर, प्रदेशों में मेट्रो, बिजली, पानी, सुरक्षा, विकास, शिक्षा, संस्कृति आदि तमाम बनती-बिगड़ती, योजनाओं के नाम पर अमीर देशों के सामने कटोरा लेकर भीख  मॉगकर लाते है क्या इससे देश बदनाम नहीं होता, क्या राजनेताओं का इस प्रकार भीख मॉगना देश-प्रदेश की गरिमा के विपरीत नही है?

प्रेमी हमेशा प्रेम, प्यार, शरीर की भीख मॉगता है। ग्रहणी घरों में शकर, चायपत्ती, आलू टमाटर, एक कटोरी दाल,बेसन आदि खत्म हो गए, कल लौटा देंगे कहकर भीख मॉगती है उनका कल नहीं होता, और कोई न कोई बहाना बनाकर घरों में सुबह शाम भीख के लिए खड़ी होती है, कारण बढ़ती मॅहगाई के समक्ष कईयों के चूल्हें एक टाईम सुलग ही नहीं पाते है और लोग भूखे सोने की बजाए अडौस-पड़ौस में ताकाझॉकी कर खुद के जीवित होने का यह उपाय सही समझते है। शिक्षा हो या खेल, सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या लेखन हर जगह भीख मॉगने वालों की भीड़ लगी है। महत्वाकांक्षी पद, प्रतिष्ठा की भीख मॉगता हैं। नेता टिकिट के लिए भीख देकर वोट की भीख मॉगता है, चमचा, भक्त आदि अपने नेता से नोटों की भीख मॉगकर वोटों की खरीदफरोक्त का ठेकदार होता है। लेखक, कवि, रचनाकार आदि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों से प्रकाशन की भीख मॉगता है। पत्रकार सनसनीखेज खबरों के पुरस्कारों का बाजार सजने पर पुरस्कारों की भीख, श्रेष्ठ रचनाओं, किताबों के लिए अकादमी से भीख, सरकार के अन्य बड़े पुरस्कारों के राग अलापनों वाले अधिकारियों द्वारा इन्हें प्राप्त करने की भीख मॉगी जाती है। हर घर में, मोहल्ले में, वार्ड में, कस्बे में, गॉव में, शहर में सभी ओर भिखारी ही भिखारी है। आप भीख देने से इंकार कर भी दे तो ऐसे भी बड़े पहुॅचे भिखारी मिल जायेंगे जो आपकी जेबों से ताकत से जर्वजस्ती भीख लूट ले।

आजकल भीख का चलन बदला है, इन्टरनेट से, टीव्ही आयोजनों से मोबाइल नम्बर, बैंक खाता नम्बर देकर भीख मॉगी जा रही है। दूसरे चलन को आप स्वयं अपने जिले की तहसील,जनपदों, ग्रामपंचायतों में देख लीजिए प्रशासन के आला अफसर से लेकर, संस्थाओं के अध्यक्ष, मंत्री आदि तमाम तरह के सफेदपोश मिल जाएगे जो जिलों के अधिकारियों को रसीद गड्डिया थमाकर, नहरों, कृषि संस्थानों से शुरूआत कर शहरी-ग्रामीण सभी राशन दुकानों, सहकारी समितियों, ग्राम पंचायतों, पुलिस थानों, आरटीओ आदि अनेकों को वितरित कर साल में एक दो बार करोड़ों रूपये की भीख चंदे के रूप में एकत्र कराकर सरकार के मंत्रियों की उपस्थिति में सम्मान समारोह सहित, सात दिवसीय कथा-प्रवचन कराकर भीड़ एकत्र कराएेंंगे फिर भव्य आयोजन, प्रसादी-भण्डारा होगा, लाखों खर्च होगा करोड़ की भीख इकटठी होगी। नामी-गिरामी बड़े लोगों एवं नेताओं द्वारा भीख मॉगने के लिए रसीद बुक का प्रयोग करना धर्मपरायण समझा जाकर धर्मध्वजा की रक्षा हेतु कहा जाता है, पर चन्दे के नाम पर  मॉगी गई यह राशि भीख ही तो कहलायेगी।

देश के विकास के लिए केन्द्र सरकारें दूसरे देशों से, प्रदेश के विकास की योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए प्रदेश सरकारें देश की दिल्ली सरकार के सामने अपना खाली कटोरा लिए हमेशा भीख मॉगने के लिए खड़े होते है पर इन सरकारों की अकर्मण्यता के कारण, अशिक्षित ही नहीं अपितु स्नातक,स्नातकोत्तर तक की शिक्षा के बाद व्यक्ति भीख मॉगकर अपने घर-परिवार का पालन-पोषण करने को विवश हो तो उस पर पाबन्दी क्यों? दाता के नाम पर खुद के स्वाभिमान को चूर -चूर करने वाले इन अशिक्षित-पड़े लिखे भिखारियों को सम्मानजनक जीवन प्रदान करने में अक्षम साबित हुई सरकारें इनके लिये अभिश्राप है, क्योंकि अपना सर्वस्य दॉव पर लगाकर रोज-रोज भीख मॉगकर घर परिवार चलाते हुऐ कई लोग शर्मसार हो समय  से पहले ही मर-खप जाते है।  

अंत में स्मरण कराना चाहॅूगा कि जिस प्रकार मैंने अपने बचपन में एक गीत सुना था,दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया, उसे आपने भी सुना होगा। जिसका अर्थ होता है कि  भगवान देने वाला दाता है और दुनिया का हर प्राणी उसके समक्ष मात्र हाथ पसार कर मॉगने वाला एक भिखारी की औकात से ज्यादा कुछ भी हैसियत नहीं रखता है। हॉ अगर भगवान देना चाहे तो पात्र होने पर तीनों लोक का साम्राज्य किसी एक को भीख में दे सकता है, जिसमें दो लोक की संपत्ति अपने मित्र सुदामा को देने का प्रसंग जगजाहिर है।  एक अन्य  प्रसंग के अुनसार इन्द्रासन से इन्द्र को हटाकर सभी देवताओं से असुरराज राजा बलि ने त्रिलोक पर विजय प्राप्त कर ली, तब यही दाता कहलाने वाले भगवान बामन के रूप में असुरराज बलि से दान मॉगने अर्थात भीख मॉगने पहुॅच जाते है और तीन पग में उसका सर्वस्य भीख में प्राप्त कर भिखारी बन चुके देवताओं को लौटा देते है। स्पष्ट है इस दुनिया में सभी भिखारी है और जन्म देने वाला दाता/मालिक है जो सबका प्रारब्ध लिखकर उन्हें पारितोषित देता है, जिसमें अगर प्रारब्ध कर्मानुसार कोई कर्म से हारकर सीधे-सरल मार्ग से भीख में मिलने वाली दो रोटी की जुगाड़ करने हेतु शर्म त्याग कर भीख मॉगे, यह उसके लिए शर्मिदा करने वाली बात होगी पर इसके लिये जिम्मेदार कौन है? मॉ भारती के कपाल पर असली भिखारी वे है जो देश का नेतृत्व करने के दरम्यान योग्य शिक्षितों तक को भिखारी बनने के लिए मजबूर कर बेशर्मी साधे है और अंतरराष्ट्रीय देशों के समक्ष अपना कटोरा रखने में शर्म महसूस नहीं करते है, ऐसे भिखारी नेताओं से यह देश शर्मिंदा है और शर्मिंदा रहेगा।

आत्माराम यादव पीव

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