संकल्प के प्रति समर्पित शख्सियत थे “डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार”

दीपक कुमार त्यागी

“डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार” एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में अपने दृढ़संकल्प के बलबूते देश को “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” के रूप में हिन्दू धर्म की विचारधारा से ओतप्रोत एक बेहद विचारशील व विशाल संगठन देने के कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम देने का कार्य संभव किया था। आज “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” के नाम से दुनिया भर में प्रसिद्ध इस सांस्कृतिक, बौद्धिक व स्वयंसेवी संगठन का एक बहुत बड़ा व बेहद मजबूत संगठनात्मक ढांचा देश से बाहर विदेशों तक में भी बना हुआ है, आज देश के साथ-साथ विदेशी धरती पर भी जगह-जगह संघ के विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम व शाखाएं सफलतापूर्वक संचालित हो रही हैं, आज संघ के लोगों की दिन रात की मेहनत का परिणाम यह है कि “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” भारत का एक ऐसा हिन्दू राष्ट्रवादी, अर्धसैनिक, स्वयंसेवक बहुत बड़ा संगठन बन गया है, जो मौजूदा समय में भारत के केंद्र में आसीन सत्तारूढ़ दल “भारतीय जनता पार्टी” का पैतृक संगठन माना जाता है‌। यह “डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार” के उस संकल्प व सपने का ही परिणाम है जो उन्होंने संघ की स्थापना करते वक्त देखा था, जो सपना कभी अपने बाल्यकाल नागपुर की गलियों में खेला करता था, आज वह सपना युवा होकर साकार हो गया है और देश की राजधानी दिल्ली की सत्ता पर सफलतापूर्वक काबिज है।

आज देश विलक्षण प्रतिभा के धनी “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” के संस्थापक और बाद में प्रथम सर संघचालक बने “डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार” की जयंती मना रहा है। इस महान शख्सियत का जन्म 1 अप्रैल सन् 1889 को नागपुर के एक साधारण गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था, इनके पिता का नाम पंडित बलिराम पंत हेडगेवार व इनकी माता का नाम रेवतीबाई था, डॉक्टर केशव के दो बड़े भाई महादेव पंत और सीताराम पंत भी थे। डॉक्टर केशव के पिता पंडित बलिराम पंत हेडगेवार वेद-शास्त्र के प्रख्यात विद्वान थे और वह वैदिक कर्मकांड यानी की पंडिताई करके अपना व अपने परिवारजनों का जीवन यापन व भरण पोषण करते थे। लेकिन जब केशव महज 13 वर्ष की आयु के थे, तभी उनके पिता पंडित बलिराम पंत हेडगेवार और माता रेवतीबाई का प्लेग की महामारी के चपेट में आने से अचानक निधन हो गया था। उसके बाद केशव की परवरिश दोनों बड़े भाइयों महादेव पंत और सीताराम पंत ने की थी। केशव की शुरुआती पढ़ाई नागपुर के नील सिटी हाईस्कूल में हुई थी। लेकिन एक दिन स्कूल में ‘वंदे मातरम्’ गाने की वजह से उन्हें निष्कासित कर दिया गया था। जिसके बाद उनके भाइयों ने उन्हें पढ़ने के लिए यवतमाल और फिर पुणे भेजा था। मैट्रिक के बाद हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी. एस. मूंजे ने उन्हें मेडिकल की पढ़ाई के लिए सन् 1910 में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) भेज दिया था। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉक्टर केशव सन् 1915 में नागपुर लौट आए और अपने संकल्प को सिद्धि तक पहुंचाने के लिए दिनरात कार्य करना शुरू कर दिया। कुछ वर्ष पश्चात “डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार” ने हिंदू राष्ट्र के अपने सपने को धरातल पर साकार करने के उद्देश्य से “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” की स्थापना 27 सितंबर सन् 1925 में पावन पर्व विजयादशमी के दिन की थी।
डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार के विचार हैं कि –

“हिंदू संस्कृति, हिंदुस्तान की धड़कन है। इसलिए ये साफ है कि अगर हिंदुस्तान की सुरक्षा करनी है तो पहले हमें हिंदू संस्कृति को संवारना होगा।”

कुछ वर्ष पश्चात वह “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” (आरएसएस) के पहले सरसंघचालक बने। उन्होंने आरएसएस को राजनीति से दूर रखते हुए हिंदू धर्म को संगठित और संस्कारित करने का काम बहुत तेजी के साथ करना शुरू कर दिया था। उन्होंने संघ के माध्यम से सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों को अपना मुख्य केंद्र बनाकर कार्य करना शुरू किया था। आज केशव के द्वारा लगाया गया आरएसएस नाम का एक बहुत छोटा सा पौधा एक बहुत विशाल वटवृक्ष में तब्दील हो चुका है। आज संघ की देश-दुनिया की राजनीति पर बहुत ही मजबूत निर्णायक पकड़ बन गयी है।

कवि हृदय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की कविता की यह पंक्तियां –

“हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!
मैं आदि पुरुष, निर्भयता का वरदान लिए आया भू पर।”

अपने संकल्प को सिद्धि तक पहुंचाने वाली महान शख्सियत
डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार के व्यक्तित्व पर एकदम सटीक बैठती हैं। वैसे भी देखा जाये तो धरा पर बहुत कम ही लोगों को ईश्वर ऐसा अवसर प्रदान करते हैं, जो अपने मन में चलने वाले विचारों व संकल्पों को धरातल पर अमलीजामा पहनाने में कामयाब हो पाते हैं। हालांकि यह लोग अपने संकल्प के प्रति हर वक्त जागृत होते हैं, सोचना या संकल्प करना हमारे जीवन की एक स्वाभाविक क्रिया है, मानकर अपने विचारों से कभी भी पल्ला नहीं झाड़ते हैं, उनको धरातल पर मूर्त रूप देने के लिए दिनरात कार्य करते हैं। सरसंघचालक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार दुनिया की एक ऐसी ही महान शख्सियत थे, हालांकि ईश्वर ने उनको आयु बहुत कम दी थी और उनका 21 जून सन् 1940 को बीमारी के चलते देहावसान हो गया था। आज हम जयंती पर महान शख्सियत पुण्यात्मा डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार को कोटि कोटि नमन करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार कहते थे कि –

“भावना के वेग तथा जवानी के जोश में कई तरुण खड़े हो जाते हैं, परन्तु दमन चक्र प्रारंभ होते ही वे मुंह मोड़ कर सदा के लिए सामाजिक क्षेत्रों से दूर हट जाते हैं, ऐसे लोगों के भरोसे देश की विकट तथा उलझी समस्याएँ कैसे सुलझ सकेगी?”

इस विचार पर हम लोगों को देश व समाज हित में आत्ममंथन अवश्य करना चाहिए ।।

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