सांस्कृतिक चेतना के अग्रदूत तथा ‘हरियाणवी साहित्य के पुरोधा’ डॉ रामनिवास ‘मानव’

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 डॉo सत्यवान सौरभ, 

 सांस्कृतिक चेतना के अग्रदूत तथा ‘हरियाणवी साहित्य के पुरोधा’ के रूप में सुप्रतिष्ठित डाॅ रामनिवास ‘मानव’ विश्वविख्यात साहित्यकार होने के साथ-साथ समर्पित शिक्षाविद् , निस्वार्थ समाज-सेवी और निष्पक्ष पत्रकार भी हैं। आप हरियाणा में रचित सृजनात्मक हिन्दी-साहित्य पर प्रथम पीएचडी, प्रथम डीलिट् तथा ये दोनों उपाधियाँ प्राप्त करने वाले अभी तक एकमात्र विद्वान हैं।  इन्होंने हरियाणवी बोली और साहित्य पर भी दो पुस्तकें लिखी हैं। इसीलिए प्रख्यात साहित्यकार डॉ बालशौरि रेड्डी ने इन्हें  ‘हरियाणवी साहित्य  का पुरोधा’ उपाधि से विभूषित किया था। साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यों के विकास हेतु आप राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के पाँच सौ से अधिक समारोह और  संगोष्ठियाँ आयोजित कर चुके हैं, जिनमें लगभग एक दर्जन देशों की विशिष्ट विभूतियों की सहभागिता रही है।

डाॅ ‘मानव’ विगत चार दशकों से  शिक्षा-जगत् से जुड़े हैं तथा एक आदर्श शिक्षक के रूप में इनकी  प्रतिष्ठा है। इनके दर्जनों शिष्य उच्च पदों पर कार्यरत हैं। आप देश के एक दर्जन विश्वविद्यालयों से शोध-निर्देशक, शोध-परीक्षक,  बोर्ड ऑफ स्टडीज, रिसर्च बोर्ड़ तथा ऐथिक कमेटी के सदस्य और  प्रोफेसर एवं अध्यक्ष के रूप में जुड़े हैं। इनके कुशल निर्देशन में देश के शताधिक शोधार्थी एमफिल्, पीएचडी और डीलिट्  की उपाधियाँ प्राप्त कर चुके हैं। डॉ ‘मानव’ ने नागरिक परिषद्,  हिसार के अध्यक्ष तथा नेहरू युवा केन्द्र, हिसार के सलाहकार के रूप में युवा-विकास, जन-जागृति,  समाज-सुधार तथा साम्प्रदायिक सद्भाव हेतु दशकों तक सराहनीय कार्य किया है। अस्सी के दशक में आप लोकवार्ता न्यूज एजेंसी तथा ‘वीर प्रताप’ और ‘दैनिक  ट्रिब्यून’ जैसे समाचार-पत्रों में जुड़े  रहे, वहीं आपने ‘अरुणाभ’ (मासिक),  ‘पक्षधर’ (पाक्षिक), ‘अंशुल  आवाज़’ (साप्ताहिक) और ‘नित्य  हलचल’ (सांध्य दैनिक) जैसी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन-संपादन भी किया।  ‘अनुमेहा’ (उन्नाव), ‘पंजाबी  संस्कृति’ (हिसार) तथा  ‘हरिगंधा’ (पंचकूला) जैसी पत्रिकाओं के लघुकथा, गज़ल और दोहा विशेषांकों का सौजन्य संपादन भी आपके द्वारा किया गया।

यही नहीं, डॉ ‘मानव’ एक आदर्श  पिता के रूप में भी जाने जाते हैं।  इनकी बेटी अनुकृति देश-विदेश की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा-संस्थाओं से  शिक्षा प्राप्त करके बीसी यूनिवर्सिटी, बोस्टन (अमेरिका) में  अर्थशास्त्र की प्रोफेसर रहीं, वहीं अब विश्वबैंक, वाशिंगटन  (अमेरिका) में अर्थशास्त्री के रूप में कार्यरत हैं। इनके सुपुत्र मनुमुक्त भी आईपीएस अधिकारी रहे, जिनका दुर्भाग्य से छह वर्ष पूर्व एक दुर्घटना में देहांत हो गया था।

वर्तमान में डाॅ ‘मानव’ ने अपने सुपुत्र की स्मृति में मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट का गठन कर नारनौल ( हरि) में ‘मनुमुक्त भवन’ का निर्माण करवाया है, जिसमें  लघु सभागार, संग्रहालय और पुस्तकालय स्थापित किये गये हैं। ट्रस्ट द्वारा अढ़ाई लाख, एक लाख, इक्कीस हज़ार (2), ग्यारह हज़ार (3), ग्यारह सौ (अनेक) रुपए के पुरस्कार और सम्मान भी प्रतिवर्ष दिए जाते हैं। राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम भी नियमित रूप से चलते रहते हैं। इसीलिए नारनौल (हरि) का ‘मनुमुक्त भवन’ मात्र अढ़ाई वर्षों में ही ‘अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र’ के रूप में  प्रतिष्ठित हो चुका है।

 पुणे की शोध-छात्रा शीला घुले ने ‘डॉ रामनिवास ‘मानव’ का हायकु-काव्य : संवेदना और शिल्प’ विषय पर शोध-प्रबंध लिखकर डॉ बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद (महाराष्ट्र) से तथा मोगा की शोध-छात्रा अनीता रानी ने ‘डॉ रामनिवास ‘मानव’ के साहित्य का सांस्कृतिक मूल्यांकन’ विषय पर शोध-प्रबंध लिखकर गुरु काशी विश्वविद्यालय, तलवंडी साबो (पंजाब) से पीएचडी (हिंदी) की उपाधियां प्राप्त की हैं। इसके साथ ही वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रामनिवास ‘मानव’ के साहित्य पर शोध करने वाले शोधार्थियों की संख्या बढ़कर बहत्तर हो गई है, जिनमें से पचास ने एमफिल, इक्कीस ने पीएचडी और एक ने डी लिट की उपाधि प्राप्त की है। प्राप्त जानकारी के अनुसार डॉ ‘मानव’ संपूर्ण हिंदी-साहित्य के अकेले ऐसे साहित्यकार हैं, जिनके साहित्य पर इतना व्यापक शोध-कार्य हुआ है। दोनों शोध-छात्राओं ने डॉ ‘मानव’ को एक श्रेष्ठ साहित्यकार और आदर्श इंसान बताते हुए कहा कि उनके साहित्य पर शोध करना हमारे लिए गौरव और गर्व की बात है।

उल्लेखनीय है कि पचपन पुस्तकों के लेखक और संपादक डॉ रामनिवास ‘मानव’ एक सिद्धहस्त कवि, लेखक, संपादक और शिक्षक होने के साथ-साथ हरियाणा में रचित समकालीन हिंदी-साहित्य के प्रथम शोधार्थी, अधिकारी विद्वान तथा कुशल शोध-निर्देशक भी हैं। ‘हरियाणवी साहित्य के पुरोधा’ के रूप में विख्यात डॉ ‘मानव’ हरियाणा के समकालीन हिंदी-साहित्य पर पीएचडी और डीलिट्की  दोनों प्राप्त करने वाले देश के प्रथम और एकमात्र विद्वान हैं। इनके कुशल निर्देशन में  शताधिक शोधार्थी एमफिल्, पीएचडी और डीलिट् की उपाधियां प्राप्त कर चुके हैं। यही नहीं, आधा दर्जन बोर्डो़ और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में इनकी विविध रचनाओं और पुस्तकों को शामिल किया गया है। विश्व की सत्तर प्रमुख बोलियों और भाषाओं में डॉ ‘मानव’ की अनेकानेक रचनाएं अनूदित हो चुकी हैं तथा दस अनूदित पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।

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