खुरशीद आलम
उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार द्वारा चुनावी वर्ष में अपनी उपलब्धियों को विज्ञापन में पूरे हुए वादे अब हैं नए इरादे का दावा किया जा रहा है। जबकि मुसलमानों के लिए जो वादे किए गए थे उनका पूरा होना तो दूर की बात है, काम भी शुरू नहीं हुआ है। एैसा ही एक विज्ञापन ’अल्पसंख्यकों की हितैषी सरकार’ है जिसके अर्न्तगत लगभत सात कामों को चिन्हित करने के साथ प्रदेश के 30 विभागों में संचालित 85 योजनाओं में अल्पसंख्यक समुदाय को सहभागिता एवं लाभ दिलाने के लिए 20 फीसदी मात्राकरण का उल्लेख किया गया है। इसके अतिरिक्त उर्दू शिक्षकों की भर्ती, शिक्षा एवं रोज़गार के अवसर पैदा करने को भी एक बड़ी उपलब्धि बताई गई है इस संदर्भ में यह जानना निश्चय ही दिलचस्पी का विषय होगा कि समाजवादी पार्टी ने 2012 के चुनावी घोषणा-पत्र में जो वादे किए थे वह कितने पूरे हैं अथवा उस से परे कुछ अन्य योजनाओं को शुरू कर विज्ञापन द्वारा उनका गुणगान किया जा रहा है।
2012 में उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के समय समाजवादी पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में अल्पसंख्यकों से संबंधित 14 वादे किए थे। उसके अनुसार देश में मुसलमानों की सामाजिक, शैक्षिक एवं आर्थिक स्थिति का अध्ययन हेतु गठित सच्चर कमेटी रिपोर्ट को लागू करके मुसलमानों के पिछड़ेपन को दूर करने और रंगानाथ मिश्रा आयोग के सुझावों को लागू करने के लिए सरकार पर पूरा दबाव डालेगी और जो राज्य सरकार से संबंधित सुझाव हैं उन्हें उत्तर प्रदेश में लागू करेगी। एक पेज का विज्ञापन इस पर मौन है। आर टी आई कार्यकर्ता आर पी शर्मा के मुताबिक राज्य सरकार ने सच्चर सुझावों को लागू करने के लिए कोई पहल नहीं की। 11 फरवरी 2015 के मिले जवाब में उत्तर प्रदेश सरकार ने अधिकारिक तौर पर कोई अध्यादेश जारी नहीं किया। उत्तर प्रदेश सूचना विभाग के अधिकारी आर एन द्विवेदी ने मुसलमानों को मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार ने क्या उपाए किए, के जवाब में ’शुन्य’ लिखा है।
मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए सच्चर कमेटी के सुझावों की रोशनी में सभी मुसलमानों को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन के आधार पर आबादी के अनुपात से अलग से आरक्षण देने की बात घोषणा-पत्र में शामिल है लेकिन सरकारी विज्ञापन से यह बिन्दु गायब है। समाचार के मुताबिक राज्य सरकार मुसलमानों को 13.5 फीसदी आरक्षण देने हेतु केन्द्र सरकार को संविधान संशोधन का प्रस्ताव देगी। राज्य में पहले से 27 फीसदी ओबीसी और 22.5 फीसदी एससी/एसटी का कोटा लागू है जो लगभग 50 फीसदी है एैसे में राज्य सरकार के प्रस्ताव का क्या हश्र होगा, पाठक भलीभांति समझ सकते हैं। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में नए शैक्षिक संस्थानों को खोलने का वादा किया गया है। इसके तहत विज्ञापन में पांच प्राइमरी स्कूलों का निर्माण/उच्चीकरण सहित नौ प्राइमरी स्कूलों को पूर्ण करने का लक्ष्य बताया गया है। यह पाँच स्कूल किन ज़िलों में और 9 प्राइमरी स्कूल किन मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हैं, का कोई ज़िक्र नहीं है।
आतंकवाद के खिलाफ कार्यवाही की आड़ में उत्तर प्रदेश में जिन बेकुसुर मुस्लिम युवाओं को जेल में डाला गया उन्हें न केवल तुरंत रिहा कराया जाएगा बल्कि मुआवज़े के साथ इंसाफ भी किया जाएगा। मुस्लिम संगठनों की ओर से सरकार से मांग की गई कि वह जस्टिस निमेष आयोग के अधार पर मुकदमों को वापस लेने की कार्यवाही शुरू करे लेकिन राज्य सरकार की कोशिश रही है कि विज्ञापन में निमेष आयोग की रिपोट्र का ज़िक्र न किया जाए जबकि मुस्लिम संगठनों के दबाव के नतीजे में सरकार ने इस रिपोर्ट को मंत्रीमंडल में मंजूर किया था, इसके बावजूद निमेष आयोग की रिपोर्ट को किस के दबाव में नज़र अंदाज किया जा रहा है, यह अहम सवाल है।
मुसलमानों के एक बहुत बड़े सम्मेलन में मुलायम सिंह के सामने समस्याऐं रखी गई और उन्हें हल करने की मांग की गई लेकिन मुलायम सिंह ने अपने भाषण में समस्याऐं हल करने की बात न करके उल्टे सवाल किया कि हमने 10 मुस्लिम मंत्री बनाए हैं। लिहाज़ा उनसे कहिए। सवाल यह हे कि कोई भी मंत्री-पूरे राज्य की जनता का होता है अथवा उस समुदाय विशेष का जिससे खुद उसका संबंध है। दूसरी बात यह है कि सरकार में शामिल सिर्फ एक मुस्लिम को सभी मुसलमानों का नुमाइंदा बना दिया गया है और बाकी मुस्लिम मंत्रियों को व्यावहारिक रुप से उसके अधीन कर दिया गया तो फिर 10 मंत्री बनाने का औचित्य अर्थहीन है।
उर्दू को बढ़ावा देने के लिए मुस्लिम बहुल ज़िलों में प्राइमरी, मिडिल और हाईस्कूल के स्तर पर सरकारी उर्दू मीडियम स्कूल खोले जाने के वादे के जवाब में 3500 उर्दू शिक्षकों की भर्ती का फैसला किया है, यह भर्ती कब होगी विज्ञापन खामोश है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा उर्दू को दूसरी भाषा का दर्जा दिए जाने के बावजूद राज्य सरकार ने इस पर कोई अमल नहीं किया इसके विपरीत ख्वाजा मुईनउद्दीन चिशती उर्दू, अरबी फारसी यूनिवर्सिटी से ही उर्दू को निकाल दिया। दरगाहों के सरंक्षण एवं उनके विकास हेतु दरगाह एक्ट बनाने और राज्य में स्थित सभी दरगाहों के विकास के लिए स्पेशल पैकेज देने के वादे पर सरकारी विज्ञापन मौन है। सभी सरकारी आयोगों, बोर्डों और कमेटियों में कम से कम एक अल्पसंख्यक नुमइंदा सदस्य के तौर पर मनोनीत किया जाएगा, पर भी कोई काम नहीं हुआ जिसकी वजह से विज्ञापन में इसका कोई ज़िक्र नहीं है।
वक़्फ़ जायदादों पर से अतिक्रमण हटाकर उन्हें वक़्फ़ बोर्ड के हवाले किया जाएगा। वक्फ़ जायदादों को भूमि अधिग्रहण कानून से बाहर रखा जाएगा के सदंर्भ में वक्फ़ जायदादां के सरंक्षण हेतु अलग कानून बनाना घोषणा पत्र में शामिल है। यह कानून कब बनेगा, उत्तर प्रदेश की हितैषी सरकार का विज्ञापन कुछ भी बताने में असमर्थ है। मदरसों में तकनीकी शिक्षा के लिए बजट की व्यवस्था की जाएगी, इस वादे को पूरा करते हुए राज्य सरकार ने मदरसा आधुनिकरण के तहत राज्य के लगभग 7000 मदरसों को आधुनिकरण के लिए मान्यता दी है लेकिन इसके लिए कितना अनुदान दिया गया, का कोई ज़िक्र नही हैं।
मुसलमानों के अंदर आत्मविश्वास पैदा करने के लिए राजकीय सुरक्षा बलों में मुसलमानों की भर्ती के लिए विशेष मुहिम चलाई जाएगी और इसके लिए कैम्प लगाकर भर्ती की जाएगी, के वादे पर विज्ञापन मौन है। कब्रिस्तान की जमीन पर अतिक्रमण रोकने और जमीन की चहार दीवारी के लिए बजट में विशेष पैकेज की व्यवस्था की जाएगी के तहत राज्य सरकार ने अब तक कुल 87696 कब्रिस्तानों और अन्त्योष्टि स्थलों की चहार दीवारी के निर्माण काम के सापेक्ष 5314 कब्रिस्तान और अन्त्योष्टि स्थलों की चहार दीवारी का काम कराया जा चुका है। इसके लिए 700 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया है।
मुसलमानों के वह शैक्षिक संस्थान जो यूनिवर्सिटी की शर्तों पर पूरा उतरते हैं उन्हें कानून के तहत यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया जाएगा के सदंर्भ में कहा गया है कि 2016-17 में 87 इंटर कालेज को पूर्ण करने का लक्ष्य है। यह इंटर कालेज किन क्षेत्रो ंमें कौन से हैं, का कोई विवरण नहीं दिया गया है। तीन वर्ष पूरा होने पर सरकार का जो विज्ञापन आया था उसमें मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी में मेडिकल कालेज और आधुनिक शिक्षा व्यवस्था को सरकारी विज्ञापन में कार्रकदगी के तौर पर पेश किया गया था। सवाल यह है कि प्राइवेट शैक्षिक संस्थान में मेडिकल और आधुनिक शिक्षा को सरकारी काम कैसे माना जा सकता है।
अल्पसंख्यक मंत्रालय जिसके आज़म खाँ मंत्री हैं, के अन्तर्गत अल्पसंख्यक वित्तीय विकास निगम आता है इसके द्वारा अल्पसंख्यकों को रोज़गार शुरू करने के लिए कर्ज़ दिया जाता है। इसमें 70 फीसदी केन्द्र सरकार और 30 फीसदी राज्य सरकार का हिस्सा होता है लेकिन केन्द्र और राज्य झगड़े के कारण यह विभाग बंद है। बसपा का आरोप है कि एैसा आज़म खाँ के अड़ियल रवैय्ये के चलते हुआ है जो सिर्फ भड़काऊ बयान देकर सियासत करते हैं लेकिन अल्पसंख्यकों के प्रति गंभीर नहीं है यही कारण है कि इसका बजट कई बार वापस हो चुका है। मुस्लिम छात्र-छात्राओं की छात्रवृत्ति के लिए निर्धारित राशि में से 137 करोड़ रुपए की कटौती कर दी गई। 48 महीने की अखिलेश सरकार में काफी भर्ती हुई लेकिन उनमें मुसलमानों का फीसदी न के बराबर है जबकि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित पी जी एस के 86 पदो ंमें से 54 यादव चुने गए हैं।
जिन औद्योगिक क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों की बहुलता है, जैसे हथ करघा, हस्त कला, हैण्डलूम, कालीन उद्योग, चूडी, ताला, कैंची उद्योग उन्हें राज्य सरकार सहायता देकर प्रोत्साहित करेगी। करघों पर बिजली के बकाया बिलों, लगने वाले ब्याज, दण्ड ब्याज को माफ कर बुनकरों को राहत दी जाएगी। छोटे और कुटीर लद्योगों में कुशल कारीगरों की कमी को पूरा करने के लिए प्रत्येक विकास खण्ड स्तर पर एक आई टी आई की स्थापना के जवाब में 40 राजकीय आई टी आई और 20 राजकीय पालीटेक्निक को पूरा कराया जा रहा है का विज्ञापन में आश्वासन दिया गया है लेकिन यह किन क्षेत्रों में बनाए जाऐंगे, इसकी कोई चर्चा नहीं है और न कर्ज़ माफी जैसे मुददे पर सरकारी पक्ष को रखा गया है।
10वीं पास मुस्लिम बालिकाओं को आगे की शिक्षा ग्रहण करने अथवा विवाह हेतु 10 हज़ार रुपए के अनुदान का ज़िक्र सरकारी विज्ञापन में है लेकिन यह योजना तो राज्य में शिक्षा हासिल कर रही सभी 10वीं पास लड़कियों के लिए है तो फिर इसे मुस्लिम बालिकाओं से जोड़कर क्यों पेश किया जा रहा है। तीन साल पूरे होने पर सरकार की यह उपलब्धि थी लेकिन वर्तमान में यह मुददा विज्ञापन से गायब है इसके स्थान पर बालक एवं बालिकाओं के विकास हेतु इंटरमीडिएट तक की शिक्षा एवं रोजग़ार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शैक्षिक हब की स्थापना के लिए दो माडल इंटर कालेज की स्थापना नई योजना संचालित की गई है। यह माडल इंटर कालेज किस जिले में और कब तक बनकर तैयार होंगे का सवाल अनुतरित है।
उत्तर प्रदेश सरकार के कामों की यह एक संक्षिप्त समीक्षा है जिससे उसकी कथनी और करनी का फर्क स्पष्ट हो जाता है। अहम सवाल यह है कि पार्टी के मुस्लिम नेता इस पर मौन क्यों हैं। कहीं एैसा तो नहीं कि पार्टी यह मान कर चल रही है कि मुसलमान समाजवादी पार्टी को छोड़कर कहाँ जाऐंगे। हालात बदल चुके हैं मुसलमानों का वोट लेकर अथवा शोषण कर सत्ता हासिल होगी, 2017 का चुनाव बता देगा।