जनता परिवार: उदय, पतन और विलय

janta pariwar

janta pariwar90 के दशक से भारतीय राजनीति थ्रड फ्रंट यानी तीसरे मोर्चे का गवाह बनती आ रही है..मगर देशभर में मोदी लहर का विकल्प खोजने और कांग्रेस की मौजूदा स्थिति को देखते हुए पुरानी समाजवादी पार्टियों को एक बार फिर से नई उम्मीद नजर आ रही है..लिहाजा वे अब थर्ड फ्रंट नहीं बल्कि मजबूत विपक्ष का विकल्प उभरने का सपना देख रही हैं…वजह साफ है, हालिया चुनावों में कांग्रेस की साख लगातार गिरी, लेकिन मोदी के विजय रथ को टक्कर देने के लिए जो विपक्ष खडा हुआ वह खुद में बंटा रहा, उत्तर से लेकर दक्षिण तक अलग अलग पार्टियां बीजेपी के खिलाफ झंडा बुलंद किए रही, लेकिन वक़्त बदला तो इन दलों का मन भी बदल गया और अब पुराने समाजवादी मतभेद भुलाकर एक ही झंडे के नीचे आने को तैयार हैं..एजेंडे में इनका अलग अलग छितरा हुआ वोट बैंक भी है, इसलिए कोशिश भी यही है कि दलित, मुस्लिम, ओबीसी वोटबैंक को एक साथ लाकर कड़ी चुनौती दी जाए

इतिहास
80 के दशक के आखिरी सालों में जनता पार्टी कांग्रेस के खिलाफ सशक्त विकल्प के तौर पर उभरी थी…लेकिन चंद्रशेखर के बाद इस मोर्चे का कोई खास झंडाबरदार नहीं था…हालांकि चंद्रशेखर कांग्रेसी थे…लेकिन इमरजेंसी के बाद से वे जनता पार्टी में आए और कांग्रेस विरोध की राजनीति शुरू कर दी थी..
दूसरी तरफ विश्वनाथ प्रताप सिंह का जनमोर्चा भी कांग्रेस विरोध की राजनीति में सक्रिय था…. समाजवादी गुट अलग अलग होकर एक ही राह चल रहे थे…आखिरकार चंद्रशेखर को इस बात का इल्म हुआ और जेपी के बर्थ डे पर 11 अक्टूबर 1988 को वी पी के जनमोर्चा, चंद्रशेखर के नेतृत्व वाला जनता पार्टी और लोकदल का विलय होकर जनता दल नाम से नई समाजवादी पार्टी बनाई गई.,…इस दौरान राजीव गांधी सरकार के खिलाफ बोफोर्स और अन्य भ्रष्टाचार के मामलों में सियासत गर्म थी…इसी का फायदा जनता दल को दिखा.,…जनता दल ने सभी कांग्रेस विरोधी पार्टियों से एकजुट होकर चुनाव लड़ने की अपील की जैसा कि 1977 में जेपी ने किया था…1989 में हुए लोकसभा चुनाव में इस दल ने अन्य दलों के समर्थन के साथ केन्द्र में सरकार का गठन किया, लेकिन दल के आन्तरिक मतभेद के कारण इसकी सरकार 11 माह में ही गिर गई..यहीं से जनता दल में कई विभाजनों का दौर शुरू हुआ

वी पी का पतन और समाजवादी जनता पार्टी
आम चुनाव के बाद वी पी सिंह की अगुआई में जनता दल को 143 सीटें मिली…लेकिन बीजेपी ने बाहर से समर्थन देकर नेशनल फ्रंट की सरकार बनाने मे मदद की….वी पी सिंह प्रधानमंत्री बन गए…लेकिन 1977 की तरह समाजवादी नेताओं में पद की लालसा से पार्टी में फूट उमड़ पड़ी…चंद्रशेखर हाशिए पर चले गए…इधर मंडल कमीशन का आग ने वी पी सिंह को कटघरे मे खड़ा किया तो बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई…इस बीच समाजवादियों में भी मनमुटाव हो गया…
जनता दल के गठन के कुछ ही महीनों बाद देवीलाल से तत्कालीन अध्यक्ष एस आर बोम्मई का विवाद हुआ और देवीलाल –चंद्रशेखर ने 54 सांसदों के साथ मिलकर जनता दल को तोड़ दिया . 5 नवंबर 1990 को चंद्रशेखर ने देवीलाल के साथ मिलकर समाजवादी जनता पार्टी बनाई .
कांग्रेस के सहयोग से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री भी बन गए…तब देवगौड़ा, मुलायम भी चंद्रशेखर के साथ थे. लेकिन समर्थन वापस लेने से 7 महीने में ही सरकार गिर गई और आम चुनाव का एलान हुआ…लेकिन सातवीं लोकसभा के खत्म होने तक देश में एक और समाजवादी पार्टी का उदय हो चुका था जिसकी अगुआई चंद्रशेखर कर रहे थे…साल 2007 में चंद्रशेखर की मौत तक इस पार्टी का वजूद रहा…लेकिन उसके बाद पार्टी का अस्तित्व सिमटता गया..

समाजवादी पार्टी (1992)
चंद्रशेखर का कुनबा बढ़ रहा था लेकिन इससे पहले कि मोर्चा अपने दम पर सरकार बना पाता, मुलायम सिंह को उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपना उज्जवल भविष्य नजर आया…4 अक्टूबर 1992 को चंद्रशेखर की पार्टी में भी सेंध लग गई. मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली…चंद्रशेखर के जनता परिवार में टूट की यह क्रांतिकारी घटना थी…

समता पार्टी (1994)
लगातार जोड़तोड़ की राजनीति के चलते जॉर्ज फर्नांडिस जैसे वरिष्ठ समाजवादी नेता अपने आप को जनता दल मे घुटा सा महसूस करने लगे थे…लिहाजा जॉर्ज ने नीतीश कुमार, शरद यादव को साथ लेकर 21 जून 1994 को 14 सांसदों वाली समता पार्टी का गठन कर लिया..शुरू में इसका नाम जनता दल(ज) था..लेकिन बाद में समता पार्टी नाम रख दिया .

1996 का आम चुनाव
1996 के चुनाव में जब वाजपेई विश्वासमत हासिल नहीं कर पाए तो कांग्रेस ने जनता दल को सरकार बनाने के लिए समर्थन की घोषणा कर दी…तब जनता दल के पास केवल 46 सीटें थी…लेकिन क्षेत्रीय ताकतें तेलगूदेशम पार्टी और समाजवादी पार्टी भी क्रमश 16 और 17 सांसदों के साथ गैर बीजेपी –गैर कांग्रेसी सरकार बनाने के लिए साथ आए…वामपंथियों ने भी सरकार में शामिल होने के लिए जनता दल को सपोर्ट किया और यूनाइटेड फ्रंट का गठन किया… कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच डी देवगौड़ा को पीएम पद का उम्मीदवार चुना गया और कांग्रेस के बाहरी समर्थन से देवगौड़ा की अल्पमत सरकार एक साल से ज्यादा चलती रही…लेकिन वामपंथियों और समाजवादियों में वैचारिक मतभेद उभरे तो सरकार गिरने की नौबत आ गई…हालांकि चुनाव टालने के लिए कांग्रेस ने तब राज्यसभा के मेंबर इंद्र कुमार गुजराल को पीएम बना दिया…और यूनाइटेट फ्रंट की सरकार कुछ और दिन चलती रही…1998 मे जैन हवाला रिपोर्ट लीक होने और लालू के समर्थन वापस लेने से गुजराल सरकार भी गिर गई…

राष्ट्रीय जनता दल (1997)
1996 में जब केंद्र में जनता दल के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चे की सरकार थी तब पार्टी अध्यक्ष के सवाल पर लालू और शरद आमने सामने आ गए…लालू शरद को अध्यक्ष बनाए जाने पर भड़क गए… दूसरी तरफ गुजराल सरकार ने चारा घोटाले की जांच तेज करवा दी…जिससे लालू का सरकार से मोहभंग हो गया और लालू के नेतृत्व में 17 सांसद जनता दल से अलग हो गए…इस तरह 5 जुलाई 1997 को लालू यादव, रघुवंश प्रसाद सिंह और दूसरे नेताओं ने राष्ट्रीय जनता दल के नाम से नई पार्टी का गठन किया

बीजू जनता दल (1997)
1997 के चुनाव में जनता दल के कई ऐसे नेता थे जो बीजेपी को सरकार बनाने के लिए समर्थन देना चाहते थे…लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो मनमुटाव खुलकर बाहर आ गया…ऐसा ही ओडिशा के दिग्गज नेता बीजू पटनायक ने भी किया…पटनायक बीजेपी को समर्थन देना चाहते थे…लेकिन शरद यादव का खेमा नाराज था…पटनायक ने समाजवादी और सेकुलर सोच के नेता ने जनता दल से नाता तोड़ लिया…26 दिसंबर 1997 को बीजू पटनायक ने बीजू जनता दल के नाम से नई पार्टी का गठन कर लिया…इसके बाद 1998 से लेकर 2009 तक बीजेडी का बीजेपी के साथ केंद्र कते साथ साथ राज्य में गठबंधन रहा…लेकिन 2009 में सेकुलरिज्म के नाम पर नवीन पटनायक ने अलग होने का फैसला कर लिया

इंडियन नेशनल लोकदल (1998)
हरियाणा के कद्दावर नेता चौधरी देवीलाल ने अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे ओमप्रकाश चौटाला को सौंप दी…जनता दल की खिचड़ी सरकार में चौटाला फिट नहीं बैठे तो अपनी राह ही अलग कर ली…वैसे भी गुजराल के हटने के बाद नए चुनाव का माहौल बन रहा था…लिहाजा चौटाला चूकना नहीं चाहते थे…लिहाजा 29 अप्रैल 1998 को चौटाला ने इंडियन नेशनल लोकदल का गठन कर दिया…

जनता दल का चुनाव चिन्ह जब्त
1991 से 1998 तक चौटाला जनता दल, समाजवादी पार्टी जनता पार्टी होते हुए समता पार्टी के दरवाजे तक पहुंचे थे. 1999 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी से तालमेल को लेकर जनता दल फिर दो खेमों में बंटा . नतीजा हुआ कि बीजेपी के साथ नहीं जाने वाले नेताओं ने देवगौड़ा के साथ मिलकर जनता दल सेक्यूलर नाम से नई पार्टी बना ली. पार्टी तोड़ने के बाद देवगौड़ा असली जनता दल का दावा करते रहे. मामला चुनाव आयोग में गया और फिर आयोग ने चुनाव चिन्ह चक्र को जब्त कर लिया. इसी विवाद के साथ जनता दल खत्म हो गया. न नाम बचा और न पार्टी. शरद यादव की पार्टी का नाम जनता दल यूनाइटेड पड़ा और देवगौड़ा की पार्टी का जनता दल सेक्यूलर.

जनता दल (सेकुलर) 1999
प्रधानमंत्री पद पर दगा दिए जाने से नाराज देवगौड़ा और जनता दल के बचे खुचे नेताओं को साथ लेकर चलने लगे…जब केंद्र की बजाए हर राज्य में जनता दल के क्षेत्रीय क्षत्रप नई पार्टियों के साथ पनपने लगे…ऐसे में देवगौड़ा भी बड़ा कदम उठाने से नहीं चूके…1999 में जब कर्नाटक के सीएम जे एच पटेल ने केंद्र की एनडीए सरकार को समर्थन देने की कोशिश की तो देवगौड़ा नाराज हो गए और जुलाई 1999 में जनता दल सेकुलर नाम से अपनी नई पार्टी बना ली…इस तरह जनता दल के ताबूत में एक और कील ठोंक दी गई…

जनता दल- समता पार्टी का विलय
1999 में जनता दल यू और समता पार्टी का विलय हो गया. दोनों दल के नेताओं ने तीर चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा. लेकिन नतीजों के बाद एकता नहीं रही. अध्यक्ष के सवाल पर पार्टी फिर से जनता दल यू और समता पार्टी में बंट गया

लोकजनशक्ति पार्टी (2000)
नीतीश के समता पार्टी में जाने, लालू के अलग पार्टी बनाने के बाद अब एक और दलित समाजवादी नेता रामविलास पासवान की बारी थी…पासवान ने भी मौके को भांपते हुए 28 नवंबर2000 को लोकजनशक्ति पार्टी का गठन कर दिया…वे एनडीए सरकार में मंत्री रहे लेकिन गुजरात दंगों के बाद एनडीए से किनारा कर लिया…2004 में यूपीए के पाले में गए और मंत्री बने…लेकिन 2009 मे एक भी सीट नही जीत पाए..पांच साल इंतजार के बाद एक बार फिर से पासवान मोदी लहर पर सवार हुए और मंत्री बने

जनता दल यूनाइटेड (2003)
यूं तो देवगौड़ा के अलग होने के बाद से ही शरद यादव जनता दल के एक गुट का नेतृत्व करते रहे…दिसंबर 1999 में शरद यादव ने कर्नाटक में जनता दल के बागी धड़े लोकशक्ति पार्टी और बिहार से समता पार्टी को साथ लाने की कोशिश की..औऱ इस फ्रंट को जनता दल यूनाइटेड नाम दिया…लेकिन लोकशक्ति पार्टी के शामिल होने का जोरदार विरोध हुआ…जिसके बाद शरद को बैकफुट पर आना पड़ा…आखिरकार 30 अक्टूबर 2003 को जॉर्ज फर्नांडिस औऱ नीतीश कुमार की समता पार्टी, और लोकशक्ति पार्टी का शऱद यादव वाले जनता दल में विलय हो गया और इसे जनता दल यूनाइटेड नाम दिया गया…जेडीयू ने भी बीजेडी की तरह एनडीए का साथ निभाया…शरद और नीतीश ने केंद्र में मंत्री पद हासिल किया तो बिहार में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन ने लालू परिवार का 15 साल का शासन उखाड़ फेंका…इस गठबंधन ने 2010 में शानदार सफलता हासिल की…लेकिन 2014 के चुनाव से पहले दोनों पार्टियों में मोदी के नाम पर तलाक हो गया.

2 COMMENTS

  1. यह परिवार ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है, पहली बात तो यह कि ये चले हुए कारतूस हैं, जिन्हे बारूद भर कर चलाने पर फुस्स ही होने हैं, दूसरे ये भाई भाई का लालू व नीतीश का दौर चुनाव आने तक खत्म हो जायेगा या कमजोर पद जायेगा क्योंकि टिकट वितरण पर सींग लड़ने ही हैं ,लालू राबड़ी को लाना चाहेंगे और नीतीश खुद बनना चाहेंगे , विलय होने वाले दूसरे दलों को बिहार राजनीति में खास रूचि नहीं है , मुलायम भी समधी के दबाव में रहेंगे और यही से सिरफुटौवल चालू हो जाएगी
    अगले कुछ दिन इस परिवार की इस लड़ाई ही देखने को मिलेगी अख़बारों में यही छाये रहेंगे ,अभी तो झंडा चुनाव चिन्ह पोस्टर्स पर नाम आदि को ले कर शुरुआत होगी , और यह सब देखना बड़ा दिलचस्प रहेगा

  2. वैसे समय के हिसाब से और अपने वजूद को बचाने के लिए यह गठबंधन बना है. इस नए मोर्चे में वे लोग हैं जो अपनी अपनी महत्त्वाकांक्षाओं से पीड़ित है. इनमे शरद यादव हैं जो जबलपुर से भाजपा के कंधे या सहारे मैदान में आये. मुलायमसिंघ जी हैं जिनका कुनबा भाई,बेटा ,बहु,भतीजा ,मित्र सब किसी नकिसी पद पर विराजित हैं,लालूजी भी स्वयं और धर्मपत्नी मुख्यमंत्री रह चुके हैं ये भी न्यायालय के एक फैसले से परेशान हैं. इनकी सुपुत्री लोकसभा चुनाव लड़ चुकी हैं. और एक रिश्तेदार भी राजनीती में हैं. देवगौड़ा जी के बारे में एक चुटकुला प्रसिद्द है की ये पटकनी देने में माहिर हैं. नीतीश कुमारजी को लालूजी घमंडी कहा करते थे अब इनका ह्रीदय परिवर्तन प्रशंसनीय है. अब तो लालूजी और नेताजी सम्बन्धी हैं. यदि ये मोर्चा कामयाब रहा और भगवन करे ऐसा हो तो भाजपा के सामने एक तगड़ा विकल्प होगा ,जो प्रजातंत्र के लिए जरूरी है. इन नेताओं में से अधिक से अधिक सत्ता सुख भोग चुके हैं ,अब इन्हे चाहिए की ये सत्ता से दूर रहें और युवकों को जोड़े ता की मोर्चा मजबूत बन सके. और अपने परिवार के अलावा भी अन्य कार्यकर्ताओं को अवसर देंनेताजी ,लालूजी और नीतीशजी से इस मोर्चे को ताकतवर बनाये रखने की उम्मीद की जा सकती है.

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