‘आंखों में वैभव के सपने, मन में तूफानों सी गति हो’ ऐसे ही हृदय में उठते हुए ज्वार, परिवर्तन की ललक, अदम्य साहस, स्पष्ट संकल्प लेने की चाहत का नाम है युवावस्था। दुनिया को कोई भी आन्दोलन, दुनिया की कोई भी विचारधारा युवाशक्ति के बिना सशक्त नहीं बन सकते, वास्तव में वह युवा शक्ति ही है जिसके दम पर किसी निर्माण या विध्वंस की नींव रखी जाती है, विश्व में भारत सबसे ज्यादा युवा अवादी वाला देश है, सन् 2020 तक भारत की औसत आयु 29 वर्ष होगी, जबकि चीन की 37, अमेरिका की 45 और यूरोप और जापान की औसत आयु 48 वर्ष होगी, जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार भारत में 60 करोड़ 13 से 35 वर्ष की आयु के युवा है, इस आंकड़े से स्पष्ट है कि भारत में कामकाजी व्यक्तियों कि संख्या सबसे अधिक है, विशाल भारत के समग्र समावेशी विकास के लिए कामकाजी व्यक्तियों की विशाल जनसंख्या आवश्यकता होगी, अतः भारत को एक युवा राष्ट्र कहा जा सकता है, प्रश्न यह है कि कोई राष्ट्र अपनी युवा पूंजी का निवेश कैसे करता है, क्या वह विशाल युवा जनसंख्या को राष्ट्र पर बोझ मानकर उसे राष्ट्र कि कमजोरी के रूप में निरूपित करता है, अथवा सशक्त, समृद्ध, शक्तिशाली और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में उसका समुचित उपयोग करने के साधन कराता है।
1947 के बाद से अब तक भारत में जितने भी आम चुनाव हुये, उनमें जिस प्रकार का लोकतांत्रिक माहौल रहा है भिन्न-भिन्न मुद्दे, भिन्न-भिन्न वादे आधारित चुनाव लड़े गये। परन्तु 2014 का लोकसभा का ये चुनाव हटकर है जिसमें एक तरफ वो पार्टी है जिसने आजादी के बाद से अब तक 60 वर्ष तक देश की सत्ता को अपने पास रखा और दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी जिसके पास सत्ता के 13 दिन, 13 महीने और एक पूरा 5 वर्षीय कार्यकाल एनडीए के नेतृत्व करने का मौका मिला। किस प्रकार भारतीय जनता पार्टी ने शासन किया, विकास किया और जनता की जरूरतों के मुताबिक योजनाओं के साथ विकास किया। एनडीए शासित सरकार ने वैश्विक ताकतों को भारत की शक्ति से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने परमाणु परीक्षण करके भारत ने अपनी ताकत दिखाने का काम किया। 2014 का लोकसभा चुनाव युवा मतदाताओं का चुनाव है जिसमें भारत में मौजूदा 81 करोड़ मतदाताओं में से 14 करोड़ 93 लाख 60 हजार मतदाता ऐसे होंगे जिन्हें मतदान का पहला मौका मिलेगा। जबकि 18 से 35 साल के युवा मतदाताओं की सख्या 47 प्रतिशत है। निर्वाचन आयोग द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक देश में कुल युवा मतदाताओं की संख्या 39 करोड़ 50 लाख है। गिरती जन्म दर के कारण अब ऐसा अवसर कई दशकों तक आने वाला नहीं हैं जिसमें 18 से 35 आयु वर्ग के मतदाताओं को एक साथ इतनी बड़ी संख्या में मताधिकार का मौका मिले। लगभग 350 सीटों पर युवा मतदाताओं की संख्या किसी भी प्रत्यासी को जिताने या हराने की स्थिती तक पहुच गई है। उत्तर प्रदेश में तो हरेक लोकसभा क्षेत्र में सवा दो लाख से ज्यादा युवा मतदाता मताधिकार का उपयोग करेंगे। तय है कि नए मतदाताओं के हाथ इन सीटों पर खड़े होने वाले प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला होगा।
2009 के आम चुनाव में पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं की संख्या 10 करोड़ थी, लेकिन 2014 के आम चुनाव और युवा हो गए है। अब यह संख्या बढ़कर करीब 15 करोड़ हो गई है। इस मजबूत वोट बैंक का प्रतिशत 20 फीसदी है। जबकि 35 साल तक के युवाओं की इसमें और जोड़ दिया जाए तो ये 47 फीसदी हो जाते है। इस चुनाव की हवा का रूख जो भी हो, लेकिन यह तय है कि नव युग का यह मतदाता पुरानी जकड़नों और कुंठाओं से मुक्त होकर नवीन प्रगतिशील विचारों को महत्व देगा। क्योंकि यह रूढ़िवादी सांप्रदायिक और जातीय सोच से भिन्न सोच रखता है।
2004 से 2014 तक डॉ. मनमोहन सिंह नेतृत्व वाली संप्रग सरकार युवाओं को इसलिए आकिर्षित नहीं कर पा रही है, क्योंकि वहां एक ओर तो भ्रष्टाचार व महंगाई का चरम है, दूसरी ओर अनिर्णय की स्थिति है, राहुल गांधी अपनी सभाओं में जिस सुशासन और राजनीति में युवाओं के भागीदारी की बात करते हैं उसे वे कांग्रेस पार्टी में ही अमल में नहीं ला पा रहे है सरकार में भागीदारी की तो बात ही अलग है। वही दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार ने अपनी विकास सुशासन वाली छाप समूचे भारत में छोड़ी है, उसी का नतीजा जो भारत में अब जाति संप्रदाय से ऊपर उठकर कर युवा सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र मोदी जी को ही भविष्य का प्रधानमंत्री बनते देखना चाहता है।
सोशल मीडिया पर ऐसे करोड़ 10 लाख युवाओं का सीधा हस्तक्षेप है, जो कि भाजपा और नरेन्द्र मोदी जी के पक्ष में माहौल बनाने का काम कर रहे है। फेसबुक, ट्वीटर, वॉट्सएप जैसे सोशल मीडिया का उपयोग कर अपनी आवाज़ बुलन्द करने का काम कर रहा है। जो खबरें और जानकारियां मैनेज होकर मीडिया में नहीं आ पाती थीं, वो आज जन-जन तक इन सोशल मीडिया के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने लगी है। और कहा भी जाता है कि युवा दाम से ज्यादा काम करता है तो उसे सफल होने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती, आज दुनिया में कोई संगठन या कोई व्यक्ति सफल हुआ है तो इसी सिद्धांत के बल पर यदि कोई प्रण कर लें कि मुझे समाज देश से जितना मिला है उससे अधिक वापस करूंगा तो वह हर लक्ष्य को पा सकता है।
अब युवाओं को आज खाओ, पीयो, मौज करो की संस्कृति से निकलकर देश की सत्ता व्यवस्था में सक्रिय भागीदारी दिखानी होगी। वर्तमान भारत की स्थिति देखकर युवाओं की पूर्वग्रही सोच और पुरानी समझ बदल रही है। उनकी बढ़ती जागरूकता अनुत्तरित सवालों और मुद्दों पर पुनर्विचार की मांग करने लगी है उम्मीद है कि युवा व देश के अन्य मतदाताओं की परिपक्व होती सोच उपलब्ध विकल्पों के बीच से सर्वश्रेष्ठ का चयन करते हुए समझदारी का परिचय देंगे। तय है, देश के नए युवा भाग्य विधाताओं के हाथ नई लोकसभा के निर्माण की बागडोर है। वे अपनी मतों का उपयोग करते हुये देश को मजबूत और प्रगति की राह पर अग्रसर करते हुये अच्छी और साफ, स्वच्छ छवि के नेतृत्व को चुनने का और भारत को सशक्त नेतृत्व वाली सरकार देने का काम जरूर करेंगे।