
किसी भी देश की उन्नति के लिए सबसे आवश्यक तत्व है शिक्षा, रोजगार व स्वास्थ्य। जब तक इन चीजों पर देश के नीति निर्माणकर्ता नहीं सोचेंगे तब तक किसी भी देश का विकास गतिशील नहीं हो सकता। सरकार की सभी योजनाओं का केंद्र बिंदु देश का अंतिम व्यक्ति होना चाहिए । जब सरकारें ऐसा सोचेंगी तभी एक नए भारत का निर्माण किया जा सकेगा।
हम अपने प्रतिभाशाली अतीत से भयावह वर्तमान का सफ़र तय कर चुके हैं। भारत अपने प्राचीनकाल में शिखर पर था। हम राजनीति में सर्वोपरी थे क्यूंकि हमारे पास चन्द्रगुप्त मौर्य, समुद्रगुप्त, हर्ष जैसे सम्राट थे। वहीं चाणक्य जैसे आचार्य जो एक दुष्ट को गद्दी पर देखना भी पसंद नहीं करते थे।
शिक्षा के मामले में हम अन्य देशों से कोसों आगे थे। हमारे पास नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय थे जिसके शिक्षा के स्तर का पता ऐसे लगता है कि वहां पढने की आकांक्षा रखने वाले छात्र को विश्वविद्यालय के द्वारपाल से शास्त्रार्थ करना पड़ता था। तब कहीं जाकर शिक्षार्थी को मुख्य परिसर में प्रवेश मिलता था।
विज्ञान के क्षेत्र में भी प्राचीन भारत की उपलब्धियां कम नहीं है। जहाँ पहले विमान को बनाने के श्रेय भारतीय को जाता है। वहीं सुश्रुत और शल्य जैसे चिकित्सक भी इसी वसुंधरा पर जन्मे। गणित में भारत की देन को तो कोई भूल ही नहीं सकता। क्यूंकि आर्यभट्ट के शून्य के बिना किसी वस्तु की कल्पना ही नहीं हो सकती। ऐसा बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन का मत है। हमने कभी भी अपनी बात को उच्च साबित नहीं किया और बाकयदा इसके लिए एक सिद्धांत ‘अनेकान्तवाद’ (जैन दर्शन) का प्रतिपादन किया। रोजगार के लिए सभी को साधन उपलब्ध थे । समाज में सभी व्यक्तियों की अपनी अहमियत थी सभी नागरिक एक दूसरे पर समाज की आवश्यकतानुसार निर्भर थे ।
लेकिन कालांतर में भारत पर मुस्लिम आक्रमण, उपनिवेशवाद के जनक देशों का भारत को उपनिवेश बनाना, समाज सुधारक लोगों द्वारा एक पक्षीय आकलन द्वारा संस्कृति को दूषित करने का आरोप लगाना जैसे कुछ कार्य हुये। इसके अलावा हमारी समाज की ओर जो दायित्व थे उन दायित्व का निर्वहन भी अपने अशुद्ध आचरण के कारण नहीं कर सके।
जिस कारण हमारी जाग्रति, समाज जागरण का कार्य आदि विलुप्त होते गये। भारत को अगर विश्व शक्ति बनने की तरफ बढ़ना है तो उसे अपने समाज अर्थात नगरवासी से लेकर ग्रामवासी ऊँची-ऊँची कोठियों में रहने वाले अमिर वर्ग से लेकर सुदूर वन में रहने वाले वनवासी सभी को ध्यान में रख अपनी योजनाओ को विस्तार देकर उनके क्रियान्वयन का सपना साकार करना होगा।
भारत की वर्तमान की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार रही है । यह प्राचीनकाल से ही हमारे समाज में दीमक की तरह व्याप्त है । राजीव गाँधी ने कहा था कि सरकारी पैसा का हाल ऐसा है कि 1 रुपये में से मात्र 10 पैसा ही योग्य व्यक्ति तक पहुँचता है । मनमोहन सरकार में यह भ्रष्टाचार अपनी अति की अवस्था में पहुँच गया था। मोदी सरकार ने इस दिशा में काम करना शुरू किया स्कीमों को बाबुओं के भरोसे ना रख सीधे लाभार्थी के खाते तक सरकारी योजना के पैसे पहुंचाने शुरू किये।
भारत की आत्मा गाँव में बसती है। लेकिन गाँव में रहने वाले व्यक्तियों के जीवन यापन का स्तर सबसे निकृष्ट स्तर पहुँच गया है । किसान रोज आत्महत्या की ओर अग्रसर हो रहे हैं। किसान को अपनी फसल का लागत मूल्य मिलने में भी परेशानी हो रही है । यह समस्या सिर्फ छोटी जोत के किसानों के लिए ही है । बड़ी जोत का किसान अपनी फसल को स्टोर कर देता है ताकि जब फसल का मूल्य बढे तब वह अपनी फसल का उचित मूल्य प्राप्त कर सके । किसान सम्मान निधी इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
‘स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है’ बचपन से यह कहावत सुनते चले आ रहें है । किसी भी देश को विकसित होने के लिए आवश्यक है कि वहां के नागरिक स्वस्थ रहें अगर उनमे किसी भी प्रकार का रोग हो तो वहां की सरकार उन रोगों के निराकरण में पूर्णरुपेण सक्षम हो तथा भविष्य में ऐसी किसी भी प्रकार की बीमारी से निपटने के लिए सरकार नागरिकों को जागरुक करती रहे। देश में उच्च गुणवत्तापूर्ण इलाज व अच्छे प्रशिक्षित डॉक्टर भी भरपूर मात्रा में देश में उपलब्ध हो तभी किसी भी देश का निर्माण हो सकेगा ।
किसी भी परिवार को संसार में जीवन यापन के लिए धन की आवश्यकता होती है । सरकार सभी को धन मुहैया नहीं करवा सकती लेकिन उसका परम कर्तव्य है कि अपने नागरिकों को उनकी क्षमता, क्रियाशीलता आदि के आधार पर उनके जीवन यापन के लिए उचित धन प्राप्त हो सके। ऐसा रोजगार मुहैया करवाया जाये। ऐसा होना देश व समाज दोनों के लिए हितकर है ।
भारत सैकड़ों साल की गुलामी के बाद आज़ाद हुआ है । अगर इस देश के युवा इसका नेतृत्व नहीं करेंगे तब किसी भी स्थिति में भारत एक नए भारत में परिणित नहीं हो पायेगा । जब भी हम नए भारत की बात करें तो वहां के नागरिक गरीबी, रोजगार की चिंता,स्वास्थ्य आदि की चिंताओं से घिरे हुए न हो ।
आकाश अवस्थी, परास्नातक, दिल्ली विश्वविद्यालय
साभार : https://www.academics4namo.com/
आपके सुन्दर व ज्ञानवर्धक निबंध में मैं दो बातों को विशेषकर ध्यान में रख अपने विचार व्यक्त करना चाहता हूँ| आपने बहुत ठीक कहा है, सरकार की सभी योजनाओं का केंद्र बिंदु देश का अंतिम व्यक्ति होना चाहिए लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न सदैव बना रहेगा कि वह अंतिम व्यक्ति बिना किसी अनुवादक (अनुपस्थित) के सरकार की सभी योजनाओं को स्वयं किस भाषा में समझ उनका लाभ उठा पाएगा?
दूसरी बात है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना जैसे महत्वपूर्ण कदम द्वारा उसे सम्मान देने से पहले किसान में आत्म-विश्वास कैसे उत्पन्न किया जाए? मैं मानता हूँ कि राष्ट्र-विरोधी राजनैतिक तत्वों के हाथों अब तक अखिल भारतीय किसान सभा विभिन्न रूप से उस सरलमति व गरीब किसान को नियंत्रित करती रही है| भारत में विश्वविद्यालयों व अनुसंधान केन्द्रों में शोधकर्ताओं द्वारा आरम्भ से अब तक किसान सभा की समस्त सामाजिक व राजनीतिक गतिविधियों व किसान के जीवन में उनके द्वारा हस्तक्षेप पर शोध कर पहचानी सच्चाई आज के किसान में आत्म-सम्मान व आत्म-विश्वास उत्पन्न कर उसे देश के विकास में योगदान देने को प्रोत्साहित कर सकती है|
आपके लेख में अंतिम व्यक्ति यदि दलित है, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का है, किसान है, जाट है, पटेल है, अथवा किसी और नाम से जाना जाता हो, उस अंतिम व्यक्ति को स्वयं समझना होगा कि आज इक्कीसवीं शताब्दी में वह कुछ और नहीं केवल भारत का नागरिक है और उसे अपने उत्तरदायित्व व अधिकारों का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए| ऐसा कुछ हो पाने हेतु समाज में अग्रणियों को उचित सामाजिक व राजनीतिक वातावरण बनाना होगा और उस अलौकिक वातावरण में कार्यरत हमारा मूल-मंत्र सहानुभूति नहीं परानुभूति होना चाहिए|